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केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों पर दंगल जारी है. पंजाब-हरियाणा के हजारों किसान दिल्ली की सीमा पर पिछले बीस दिनों से डेरा जमाए हुए हैं, किसानों की जिद है कि केंद्र अपने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले. लेकिन मोदी सरकार कानून वापस नहीं ले रही है, हालांकि किसानों की मांग पर कुछ संशोधन करने को तैयार है. लेकिन किसान संशोधन पर नहीं मान रहे हैं, ऐसे में गतिरोध बरकरार है. ऐसे में अबतक किस पक्ष के क्या तर्क और मांग हैं और ये लड़ाई कहां जाती दिख रही है, इसपर नज़र डालते हैं.
किसानों की मांग और जिद?
केंद्र ने जब तीन कृषि कानूनों को पास किया, उसके बाद से ही पंजाब में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया था. लेकिन जब किसानों ने दिल्ली कूच किया तो इसकी आग देशभर में फैली. अब बीस दिनों से अधिक हो गया है, जब किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. किसानों का कहना है कि तीनों कानून वापस होने चाहिए.
किसान संगठनों ने तर्क दिया है कि किसानों की ओर से कभी भी ऐसे कानूनों की मांग ही नहीं की गई, तो सरकार इन्हें वापस ले ले. नए कृषि कानूनों से MSP, मंडी सिस्टम खत्म होगा, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान सीधे कंपनी के टच में होगा, लेकिन कुछ गड़बड़ी होने पर कोई जवाबदेही नहीं होगी.
ऐसी ही कई गलतियां गिनाकर किसानों ने केंद्र के तीनों कृषि कानूनों को खारिज किया और अपने आंदोलन को जारी रखा. अबतक किसान अपने आंदोलन के तहत देशव्यापी बंद बुला चुके हैं, उपवास रख चुके हैं, टोल-नाकों को मुक्त कराने का प्लान है, बीजेपी के नेताओं की घेराबंदी का ऐलान किया हुआ है और कृषि कानूनों की वापसी तक इनपर अड़े हैं.
सरकार संशोधनों पर अड़ी
कोरोना काल में लाए गए कानूनों के बीच सरकार को उम्मीद नहीं होगी कि इतना विरोध झेलना होगा. तीनों कृषि कानूनों को मोदी सरकार ने ऐतिहासिक करार दिया है और किसानों के जीवन में बदलाव लाने की बात कही है. लेकिन किसान इन बातों से मेल नहीं खा रहे हैं. लगातार हो रहे विरोध के बाद केंद्र ने किसानों से बात करने और कानून में कुछ बदलाव करने का प्रस्ताव रखा.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में सरकार और किसान संगठनों के बीच 6 दौर की बात हो चुकी है, गृह मंत्री अमित शाह भी किसानों से मिले हैं, सरकार ने लिखित संशोधन प्रस्ताव भी भेजा है. लेकिन किसानों ने हर मोर्चे पर पीछे हटने से इनकार कर दिया.
किसानों की मांगों और विरोध को देखते हुए केंद्र ने तीनों कानूनों में कुछ बदलाव की बात कही है. जिसमें MSP की लिखित गारंटी, मंडी सिस्टम को मजबूती देना, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में स्थानीय कोर्ट जाने का रास्ता, आंदोलन से जुड़े किसानों पर हुए केस वापस लेना, बिजली बिल-प्रदूषण कानून में ढील जैसे संशोधन शामिल हैं. सरकार ने इनके अलावा अन्य मुद्दों पर बातचीत का रास्ता खुला रखने की बात कही है. साथ ही सरकार ने इरादे स्पष्ट किए हैं कि कानून वापस नहीं होंगे.
कहां जाती दिख रही है ये लड़ाई?
सरकार और किसानों के बीच अबतक जो वाद-विवाद चल रहा है, उससे ये आंदोलन अधर में लटकता हुआ दिख रहा है. क्योंकि दोनों ही पक्ष अपनी मुद्दों पर अड़े हैं और कोई पीछे नहीं हटता दिख रहा है, एक वक्त जब सरकार ने संशोधनों की बात कही तो कुछ बात बनती नज़र आई लेकिन किसानों ने उन्हें नकार दिया.
अब अगर आंदोलन के नज़रिए से देखें, तो किसान कानून वापसी की मांग पर अड़े हैं. कड़ाके की ठंड के बीच भी किसानों का हौसला बरकरार है और उनका साफ कहना है कि कानून वापसी तक वो नहीं हटेंगे. किसान संगठन अपनी तैयारी के साथ भी आए हैं, उनके पास लंबे वक्त तक रुकने के लिए राशन है, साथ ही अन्य राज्यों और संगठनों से मदद भी मिल रही है.
दूसरी ओर सरकार के रुख को देखें, तो सरकार संशोधन से आगे नहीं बढ़ती दिख रही है. इससे अलग पार्टी स्तर पर भारतीय जनता पार्टी ने अलग-अलग राज्यों के किसानों को साधना शुरू किया है. बीजेपी देशभर में प्रेस कॉन्फ्रेंस, किसान सम्मेलन और अन्य संपर्क साध कर किसानों को अपने पक्ष में करना चाहती है ताकि आंदोलन बड़े स्तर पर ना जा सके.
ऐसे में दोनों पक्षों का रुख सख्त है, बातचीत का रास्ता भी कुछ वक्त से रुका हुआ है. यही वजह है कि आने वाले दिनों में भी दिल्ली की सर्दी में राजनीतिक गर्मी के बढ़ने के आसार हैं.