कृषि कानून के विरोध में जारी किसानों का आंदोलन अभी भी जारी है. बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार को लिखित में जवाब दिया गया है. किसान मोर्चा ने सरकार से अपील की है कि वो उनके आंदोलन को बदनाम ना करें और अगर बात करनी है तो सभी किसानों से एक साथ बात करें. केंद्र सरकार द्वारा किसान संगठनों के सामने गए लिखित प्रस्ताव के जवाब में ये चिट्ठी लिखी गई है.
संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल को ये चिट्ठी भेजी है. किसान संगठन ने लिखा है, ‘आपसे प्राप्त किये गए प्रस्ताव और पत्र के संदर्भ में आपके माध्यम से सरकार को सूचित करना चाहते हैं कि किसान संगठनों ने उसी दिन एक संयुक्त बैठक की और आपकी तरफ से दिए गए प्रस्ताव पर चर्चा की और इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि 5 दिसंबर 2020 को सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा मौखिक प्रस्ताव का ही लिखित प्रारूप था.’
संयुक्त किसान मोर्चा ने अपनी चिट्ठी में लिखा, ‘हम अपनी मूल बातें पहले ही विभिन्न दौर की बातचीत में मौखिक तौर पर रख चुके थे, इसीलिए, लिखित जवाब नहीं दिया. हम चाहते हैं कि सरकार किसान आंदोलन को बदनाम करना बंद करे और दूसरे किसान संगठनो से समानांतर वार्ता बंद करे.’
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आपको बता दें कि किसानों और केंद्र सरकार के बीच अबतक 6 दौर की बातचीत हो गई है, लेकिन दोनों ही किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. इन वार्ता के अलावा केंद्र सरकार द्वारा किसानों को लिखित प्रस्ताव भेजा गया था, जिसमें किसानों की मांगों के अनुसार कुछ संशोधनों की बात कही थी.
हालांकि, किसानों ने तभी सरकार के संशोधनों को नकार दिया था. किसान आंदोलन से अलग सरकार लगातार अलग-अलग राज्यों के किसान संगठनों से बात कर रही है. हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी के कुछ किसान संगठनों ने सरकार का समर्थन किया है, कानूनों की तारीफ की है और आंदोलन से हटने की बात कही है.
गौरतलब है कि सरकार ने अपने संशोधन प्रस्ताव में MSP, मंडी सिस्टम पर लिखित गारंटी, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कुछ बदलाव, किसानों पर दर्ज किए गए केस वापसी की बात कही थी. हालांकि, किसान संगठन अब तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर अड़ गए हैं. इसी के बाद से सरकार और किसान संगठनों के बीच कोई आधिकारिक बातचीत नहीं हो रही है.