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किसान आंदोलनः किसानों ने ठुकरा दिया सरकार का प्रस्ताव, जानें क्या था जिसे किया नामंजूर

कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने की मांग पर सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया था कि कानून के वे प्रावधान जिन पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है. हालांकि किसानों ने सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.

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सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को लेकर चर्चा करते किसान (पीटीआई)
सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को लेकर चर्चा करते किसान (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • केंद्र सरकार ने किसानों को सौंपा था अपना प्रस्ताव
  • विवाद समाधान हेतु कोर्ट में जाने का विकल्प भी दिया
  • चर्चा के बाद किसानों ने ठुकरा दिया सरकार का प्रस्ताव

केंद्र सरकार ने 3 कृषि कानूनों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों को लिखित में प्रस्ताव भेजा है. दरअसल, किसानों की ओर से सरकार से लिखित में प्रस्ताव देने की मांग की गई थी. सरकार ने अपने प्रस्ताव में कृषि से जुड़े नए कानूनों में कुछ संशोधन भी सुझाए हैं. लेकिन प्रस्ताव पर विचार करने के बाद किसानों ने सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. किसानों का कहना है कि उनकी मांग तीनों कानूनों को हटाने की है.

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आइए, जानते हैं कि सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में क्या है और सरकार ने किसानों के लिए लिखित में क्या कुछ करने को कहा था.

1. मंडी समितियों द्वारा स्थापित मंडियां कमजोर होंगी और किसान निजी मंडियों के चंगुल फंस जाएगा की शंका पर सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि अधिनियम में संशोधित करके यह प्रावधानित किया जा सकता है कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सके. साथ ही ऐसी मंडियों से राज्य सरकार एपीएमसी मंडियों में लागू सेस/शुल्क की दर तक सेस/शुल्क निर्धारित कर सकेगी.

2. कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने की मांग पर सरकार की ओर से कहा गया कि कानून के वे प्रावधान जिन पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है.

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कोर्ट में जाने का विकल्प!

3. किसान को विवाद समाधान हेतु सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प नहीं होने के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु विवाद निराकरण की नए कानूनों में प्रावधनित व्यवस्था के अतिरिक्त सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है.

4. किसानों की भूमि की कुर्की हो सकेगी के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया है कि प्रावधान में स्पष्ट है, फिर भी किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो तो उसे जारी किया जाएगा.

5. किसान की भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे. किसान भूमि से वंचित हो जाएगा के मुद्दे पर कहा गया है कि प्रावधान पूर्व से ही स्पष्ट है फिर भी यह और स्पष्ट कर दिया जाएगा कि किसान की भूमि पर बनाई जाने वाली संरचना पर खरीददार द्वारा किसी प्रकार का ऋण नहीं लिया जा सकेगा और न ही ऐसी संरचना उसके बंधक द्वारा रखी जा सकेगी.

6. कृषि अनुबंधों के पंजीकरण की व्यवस्था नहीं है, के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्टीकरण की व्यवस्था नहीं बनाती हैं तब तक सभी लिखित करारों की एक प्रतिलिपि करार पर हस्ताक्षर होने के 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम कार्यालय में उपलब्ध कराने हेतु उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी.

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बिल भुगतान व्यवस्था में बदलाव नहीं

7. बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को समाप्त किए जाने पर सरकार की ओर से कहा गया कि किसानों की विद्युत बिल भुगतान की वर्तमान व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होगा.

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8. पैन कार्ड के आधार पर किसानों से फसल खरीद की व्यवस्था होने पर धोखे की आशंका को लेकर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु राज्य सरकारों को इस प्रकार के पंजीकरण के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान की जा सकती है जिससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार राज्य सरकारें किसानों के हित में नियम बना सकें.

9. समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसी के माध्यम से फसल बेचने का विकल्प समाप्त होने की आशंका और उपज का व्यापार निजी हाथों में जाने की आशंका को लेकर सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था के संबंध में लिखित आश्वासन देगी.

10. सरकार की ओर से कहा गया कि देश के किसानों के सम्मान में और पूरे खुले मन से केंद्र सरकार द्वारा पूरी संवेदना के साथ सभी मुद्दों के समाधान का प्रयास किया गया है. अतः सभी किसान यूनियनों से अनुरोध है कि वे अपना आंदोलन समाप्त करें.

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