किसान संगठनों का दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन जारी है. सिंघु बॉर्डर पर बुधवार शाम को प्रदर्शनकारी किसानों ने लोहड़ी के अवसर पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने बताया कि कानून की प्रतियां जलाईं गईं.
किसान समिति ने बताया कि तीन कृषि कानून और बिजली बिल 2020 को रद्द करने की किसानों की मांग पर सरकार का रवैया अड़ियल है. उसके खिलाफ अभियान तेज करते हुए देशभर में 20 हजार से ज्यादा स्थानों पर कृषि कानून की प्रतियां जलाईं गईं. सभी स्थानों पर किसानों ने एकत्र होकर कानून की प्रतियां जलाईं और उन्हें रद्द करने के नारे लगाए.
#WATCH | Farmers protesting at Singhu Border burn copies of the #FarmLaws#Lohri pic.twitter.com/t6eY6aNLOo
— ANI (@ANI) January 13, 2021
किसान समिति ने दिल्ली के आसपास 300 किमी के दायरे में स्थित सभी जिलों के किसानों से अपील की है कि वे दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड की तैयारी में जुटें और बॉर्डर पर जमा हों. जहां 18 जनवरी को सभी जिलों में महिला किसान दिवस मनाया जाएगा, वहीं बंगाल में 20 से 22 जनवरी, महाराष्ट्र में 24 से 26 जनवरी, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में 23 से 25 जनवरी और ओडिशा में 23 जनवरी को महामहिम (राज्यपाल) के कार्यालय के समक्ष महापड़ाव आयोजित किया जाएगा.
एआईकेएससीसी ने कहा कि केंद्र सरकार यह बता पाने में नाकाम रही है कि कैसे ये कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं जबकि आंदोलन को 50 दिन से ज्यादा हो गए. समिति ने कहा कि केंद्र का ये तर्क कि नए कृषि कानून से तकनीकी विकास, पूंजी का निवेश, मूल्य वृद्धि होगी. लेकिन ये कानून इन कामों की जिम्मेदारी बड़े कॉरपोरेट को देते हैं तो इससे इस कानून का अर्थ नहीं रह जाएगा.
एआईकेएससीसी ने जारी बयान में कहा कि इसी तर्क के अनुसार सरकार ने निजी निवेशकों को मदद देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. लेकिन तकनीकी विकास, पूंजीगत निवेश और मूल्य वृद्धि के लिए आश्वस्त बाजार के विकास को लेकर अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में वह इस धन को नहीं लगाना चाहती. कॉरपोरेट जब यह निवेश करेगा तो उसका लक्ष्य ऊंचा मुनाफा कमाना और भूमि व जल स्रोतों पर कब्जा करना होगा.
देखें: आजतक LIVE TV
किसान समिति ने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में किसान नेताओं पर गलत आरोप लगाए. किसान बता चुके हैं कि इन कानूनों से उनके बाजार, जमीन की सुरक्षा पर हमला होगा, लागत व सेवाओं के दाम बढ़ेंगे, उपज के दाम घटेंगे, किसानों पर कर्ज और आत्महत्याएं बढ़ेंगी, राशन व्यवस्था भंग होगी, खाने के दाम बढ़ेंगे. केंद्र सरकार न केवल किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रही है बल्कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के सामने सही तथ्य पेश नहीं किए हैं.