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आखिर आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हो रहे पंजाब के खेतों में काम कर रहे ज्यादातर किसान? पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

किसानों के आंदोलन के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पंजाब के कुछ ही किसान आंदोलन पर क्यों हैं? क्या बाकी किसानों को एमएसपी की गारंटी नहीं चाहिए? आजतक की टीम इसका पता लगाने के लिए पंजाब पहुंची, जहां पता चला कि किसानों के बड़े संगठन आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं. इतना ही नहीं बड़े संगठनों के नेता आंदोलन पर उतारू किसानों की आलोचना भी करते हैं. पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट

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किसान आंदोलन | PTI
किसान आंदोलन | PTI

पंजाब के हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के रास्ते पर हैं. 'दिल्ली चलो' की अपील करने वाले किसान बड़े संगठनों से सलाह के बगैर ही आंदोलन पर उतारू हैं. यूनियनों के भीतर वैचारिक मतभेदों ने किसानों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा की है. भारतीय किसान यूनियन उगराहा और राजेवाल जैसे संगठनों ने आंदोलन से किनारा कर रखा है.

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एक अध्ययन से पता चलता है कि केवल छोटे और सीमांत किसान, खेत मजदूर और वरिष्ठ नागरिक ही विरोध का हिस्सा हैं. जिम्मेदार किसान अपने खेतों में काम कर रहे हैं. दिल्ली चलो मार्च का नेतृत्व कर रहे किसान संघ पंजाब के कृषक समुदाय के सिर्फ एक तिहाई का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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बड़े संगठनों ने क्यों बनाई आंदोलन से दूरी?

किसान आंदोलन 2.0 में न सिर्फ ताकत, बल्कि तीव्रता की भी कमी नजर आती है. मसलन, जगजीत सिंह डल्लेवाल की अगुवाई में भारतीय किसान यूनियन - सिधुपुर और सरवन सिंह पंढेर की अगुवाई में किसान मजदूर संघर्ष समिति आंदोलन पर हैं. इनके अलावा जोगिंदर सिंह उगराहा के नेतृत्व वाली बीकेयू-एकता उगराहा और बलबीर सिंह राजेवाल की अध्यक्षता वाले बीकेयू-राजेवाल जैसे पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठनों ने दिल्ली कूच से किनारा कर रखा है.

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आपको बता दें कि जोगिंदर सिंह उगराहा खनौरी सीमा पर जमे पंढेर और डल्लेवाल की आलोचना भी की. उन्होंने कहा, "दिल्ली चलो की अपील दो किसान यूनियनों ने की है. अब ये विरोध जायज है या नहीं या मांगें वास्तविक हैं या नहीं, इसके लिए केवल ये यूनियनें ही जिम्मेदार हैं." दिलचस्प बात यह है कि उगराहा और राजेवाल समूहों से जुड़े किसान भी अपने गेहूं और सरसों के खेतों के प्रबंधन में व्यस्त थे.

अमृतसर के किसान गुरुदेव सिंह बारपाल कहते हैं, "हम किसानों की मांगों का समर्थन करते हैं, लेकिन जो लोग विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने सभी किसान यूनियनों से सलाह नहीं ली. उन्हें उन किसानों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए, जिन्होंने इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान अपनी जान गंवाई."

फिरोजपुर जिले के वाजिदपुर गांव के 58 वर्षीय मंगत राम क्रांतिकारी किसान यूनियन के सदस्य हैं. वह भी विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए और अपनी 12 एकड़ कृषि भूमि के प्रबंधन में जुटे हैं. वे कहते हैं, "किसान आंदोलन 1.0 ने सभी पूर्व यूनियनों को एक बैनर के नीचे ला दिया था लेकिन किसान आंदोलन 2.0 में लाखों लोग तो एकजुट हुए, जो लोग दिल्ली चलो मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने गलती की."

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किसानों का एक छोटा समूह ही कर रहा आंदोलन!

जहां तक प्रति किसान परिवार की औसत मासिक आय का सवाल है, पंजाब इस मामले में दूसरे स्थान पर है. राज्य में प्रत्येक परिवार प्रति माह कम से कम 26,701 रुपये कमाता है. विडंबना यह है कि सबसे अमीर और साधन संपन्न होने के बावजूद पंजाब के किसान कर्ज माफी, मासिक पेंशन और एमएसपी गारंटी की मांग को लेकर सड़कों पर हैं. दिलचस्प बात यह है कि बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में रहने वाले देश के सबसे गरीब किसानों को शायद ही कभी विरोध करते देखा जाता है.

हजारों किसान वर्तमान में अपनी मांगों को लेकर पंजाब और हरियाणा की दो अंतरराज्यीय सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन इस सच्चाई के बारे में कम ही लोग जानते हैं कि यह पंजाब के 10.53 लाख मजबूत कृषि परिवारों का एक हिस्सा मात्र है. पंजाब के अधिकांश किसानों को अभी भी अपने गेहूं और सरसों के खेतों में सिंचाई और खाद डालते देखा जा सकता है.

खेतों में काम कर रहे किसानों का आंदोलन को समर्थन!

यह जानने के लिए कि पंजाब के ज्यादातर किसानों ने विरोध-प्रदर्शनों से दूरी क्यों बनाई है? आजतक की टीम ने संगरूर, फिरोजपुर, अमृतसर और गुरदासपुर सहित पंजाब के कई जिलों में किसानों से बात की. पंजाब के खेतों में काम करने वाले कुछ किसानों का रुख स्पष्ट है. वे आंदोलन का हिस्सा तो हैं लेकिन दिल्ली नहीं आ रहे हैं. 

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खेतों में काम कर रहे कुछ किसान कहते हैं कि एमएसपी की गारंटी तो उन्हें भी चाहिए लेकिन आंदोलन पर गए तो फिर खेती कौन देखेगा? इसलिए बड़ी संख्या में किसान खेतों में काम करते दिखे और वे सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि पड़ोसी के खेतों की भी देखभाल कर रहे है. पंजाब के किसान फसल के डायवर्सिफिकेशन यानी विविधीकरण के पक्षधर हैं. खुद किसान मानते हैं कि चावल की ज्यादा खेती से पंजाब का ग्राउंड वाटर लेवल नीचे चला गया है और इनपर एमएसपी मिलती है इसलिए वे चावल उपजाते हैं.

34% गरीबी रेखा के नीचे, किसानों पर लाखों कर्ज

आजतक से बातचीत में पंजाब यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के चेयरमैन प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने बताया, "दिल्ली चलो मार्च का नेतृत्व करने वाले दो किसान यूनियनों से जुड़े प्रदर्शनकारी सिर्फ एक तिहाई किसान हैं." उन्होंने कहा कि सरवन सिंह पंढेर पंजाब के माझा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं जगजीत सिंह डल्लेवाल फरीदकोट जिले के डल्लेवाल गांव के रहने वाले हैं.

पंजाब यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च रिपोर्ट से पता चलता है कि पंजाब के 34% से अधिक सीमांत किसान गरीबी रेखा से नीचे हैं. राज्य के 20% छोटे किसान 1-2 हेक्टेयर भूमि के मालिक हैं और गरीबी रेखा से नीचे हैं. इन किसानों की प्रति व्यक्ति आय 935 रुपये है. किसान की घटती आमदनी, मुनाफा और खेती किसानी की स्थिरति से किसानों के बीच तनाव भी पैदा हुआ है.

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पंजाब के 89 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हुए हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते-पहुंचते और बढ़ जाता है. अनुमान है कि पंजाब में किसानों का कुल कर्ज 70,000 करोड़ रुपये से 1,00,000 करोड़ रुपये के बीच है. नाबार्ड द्वारा जारी आंकड़ों में राज्य में आढ़तिया कहे जाने वाले निजी साहूकारों द्वारा दिया गया लोन शामिल नहीं है. नाबार्ड की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में प्रत्येक किसान परिवार पर वित्तीय संस्थानों का अनुमानित 2.95 लाख रुपये बकाया है - जो 28 राज्यों के किसानों में सबसे ज्यादा है.

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पंजाब के किसान खेती छोड़कर मजदूर बन रहे थे. 2012-13 के दौरान किए गए एक अध्ययन से पता चला कि 1991 के बाद से 14.39% किसानों ने खेती छोड़ दी. 2000 के बाद यह प्रतिशत बढ़कर 63.6% हो गया. अधिकांश किसानों के अपने खेतों में व्यस्त रहने का एक और कारण यह है कि वे पट्टे पर दिए गए खेतों में फसल उगा रहे हैं. खेत छोड़ने से नुकसान हो सकता है, क्योंकि गेहूं की फसल को नियमित सिंचाई की जरूरत होती है.

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डब्ल्यूटीओ और स्वामीनाथन पैनल की शर्तें समझते हैं किसान

दिलचस्प बात यह है कि, आजतक ने जिन किसानों से बात की वे यह समझा पाने में सक्षम थे कि डब्ल्यूटीओ, स्वामीनाथ पैनल की रिपोर्ट, बिजली अधिनियम-2020 और अन्य शर्तों का क्या मतलब है. ज्यादातर किसान एमएसपी के बारे में जानते हैं. संगरूर के किसान जसबीर सिंह ने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है कि हम केवल खेतों में काम करते हैं और नहीं जानते कि हम किसके लिए लड़ रहे हैं."

फिरोजपुर के वजीदापुर में रहने वाले किसान जितेंद्र सिंह उन कुछ किसानों में से थे, जिन्होंने किसान यूनियनों द्वारा उठाई जा रही लगभग सभी मांगों की लिस्टिंग की थी. कई किसानों ने मांगों पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि उनके नेता जो भी मुद्दा उठा रहे हैं, वे उसका समर्थन करते हैं. आपको साथ ही बता दें कि संयुक्ति किसान मोर्चा ने इस बीच अपना आंदोलन 29 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया है और आगे का फैसला इस डेडलाइन के बाद लिया जाएगा.

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