मोदी सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के ऐलान के बाद भी गाजीपुर में किसान सड़कों पर डटे हुए हैं. ऐसे में आगे वो क्या करेंगे इसको लेकर संशय बना हुआ है.
वहीं सरकार के कानून वापस लेने के फैसले के बाद गाजीपुर में किसानों ने कहा कि हम बॉर्डर पर बैठे रहना नहीं चाहते हैं. हम 'आंदोलनजीवी' भी नहीं है और घर जाकर वापस खेती करना चाहते हैं लेकिन कई अनसुलझे सवाल हैं और बिना उसका जवाब मिले सरकार की घोषण अधूरी है.
किसानों ने कहा, सरकार ने 1 साल से कोई बातचीत नहीं की है, सरकार बैठकर बताए कि उसका इरादा क्या है? एमएसपी को व्यापक और पारदर्शी करने की बात सरकार ने कही है. जीरो बजट खेती और छोटे किसानों के लिए क्रॉपिंग पैटर्न सरकार कैसे बदलेगी ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसको लेकर किसान और सरकार के बीच लड़ाई है.
बता दें की जब सरकार तीनों कृषि कानून लेकर आई थी तो इसके जरिए साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाने का दावा किया था.
अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के महासचिव डॉक्टर आशीष मित्तल ने कहां की सरकार यह बताए कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने कि उसकी क्या नीति है. इस पर कमेटी बनाने की घोषण भी एकतरफा फैसला है.
किसानों ने केंद्र सरकार से अपील की है कि सरकार बैठकर बातचीत करे तभी समझ में आएगा की घोषणा से क्या फायदा है और क्या नुकसान. किसानों ने कहा, यही वजह है कि प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानूनों को खत्म करने की घोषणा एक तरफा और अधूरा फैसला है.
बिल वापसी की घोषणा के बाद संयुक्त मोर्चे की पहली बैठक के बाद प्रतिक्रिया देते हुए राकेश टिकैत ने कहा की किसान तब तक बॉर्डर नहीं छोड़ेंगे जब तक सभी मुद्दों का हल नहीं होगा. टिकैत ने एमएसपी पर गारंटी कानून और किसानों पर हुए मुकदमों को भी वापस लेने की मांग की है.
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