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'दिल्लीवालों के साथ फिर सौतेला बर्ताव', बजट पर बोले सीएम केजरीवाल 

अरविंद केजरीवाल ने कहा दिल्लीवालों के साथ फिर सौतेला बर्ताव किया गया है. दिल्ली वालों ने पिछले साल 1.75 लाख करोड़ से ज़्यादा इनकम टैक्स दिया. उसमें से मात्र 325 करोड़ रुपये दिल्ली के विकास के लिए दिए. ये तो दिल्लीवालों के साथ घोर अन्याय है.  

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सीएम केजरीवाल (फाइल फोटो)
सीएम केजरीवाल (फाइल फोटो)

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आज देश का आम बजट पेश किया. इस बजट में टैक्स, विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रेलवे और डिफेंस समेत कई सेक्टर में बड़े ऐलान किए हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि दुनिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चमकता हुआ सितारा माना है. एक ओर सत्ता पक्ष इसे ऐतिहासिक बता रहा है, वहीं दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने कहा कि बजट में दिल्लीवालों के साथ सौतेला बर्ताव किया गया है.

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अरविंद केजरीवाल ने कहा दिल्लीवालों के साथ फिर सौतेला बर्ताव किया गया है. दिल्ली वालों ने पिछले साल 1.75 लाख करोड़ से ज़्यादा इनकम टैक्स दिया. उसमें से मात्र 325 करोड़ रुपये दिल्ली के विकास के लिए दिए. ये तो दिल्लीवालों के साथ घोर अन्याय है.  

इसके अलावा सीएम केजरीवाल ने कहा कि इस बजट में महंगाई से कोई राहत नहीं, उल्टे इससे महंगाई बढ़ेगी. बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना नहीं है. सीएम ने कहा कि शिक्षा बजट घटाकर 2.64 % से 2.5 % करना दुर्भाग्यपूर्ण है. वहीं स्वास्थ्य बजट घटाकर 2.2 % से 1.98 % करना हानिकारक है.  

अखिलेश यादव ने साधा निशाना 

इससे पहले यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि भाजपा अपने बजट का दशक पूरा कर रही है, पर जब जनता को पहले कुछ न दिया तो अब क्या देगी. भाजपाई बजट महंगाई और बेरोज़गारी को और बढ़ाता है. किसान, मजदूर, युवा, महिला, नौकरीपेशा, व्यापारी वर्ग में इससे आशा नहीं निराशा बढ़ती है, क्योंकि ये चंद बड़े लोगों को ही लाभ पहुंचाने के लिए बनता है. 

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मायावती ने बजट पर क्या कहा? 

देश में पहले की तरह पिछले 9 वर्षों में भी केन्द्र सरकार के बजट आते-जाते रहे, जिसमें घोषणाओं, वादों, दावों और उम्मीदों की बरसात की जाती रही, लेकिन वे सब बेमानी हो गए, जब भारत का मिडिल क्लास महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि की मार के कारण लोवर मिडिल क्लास बन गया, अति-दुखद. इस साल का बजट ज्यादा अलग नहीं है. पिछले साल की कमियां कोई सरकार नहीं बताती और नए वादों की फिर से झड़ी लगा देती है, जबकि जमीनी हकीकत में 100 करोड़ से अधिक जनता का जीवन वैसे ही दाव पर लगा रहता है जैसे पहले था. लोग उम्मीदों के सहारे जीते हैं, लेकिन झूठी उम्मीदें क्यों? 

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