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Fistula या भगंदर क्या है? पाइल्स, फिशर और फिस्टुला में क्या अंतर है? डॉक्टर से जानिए इनके लक्षण, कारण और बचाव

Fistula Bhagandar Treatment In Hindi: आमतौर पर लोग फिस्टुला को पहचान नहीं पाते. कई पेशेंट ऐसे होते हैं जिन्होंने कभी इस बीमारी का नाम ही नहीं सुना. फिस्टुला या भगंदर क्या है, ये क्यों होता है, इसका इलाज क्या है, इससे कैसे बचें इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हमने डॉक्टर से बात की है.

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फिस्टुला के लक्षण, कारण, इलाज- प्रतीकात्मक तस्वीर
फिस्टुला के लक्षण, कारण, इलाज- प्रतीकात्मक तस्वीर

Anal Fistula Symptoms Treatment Surgery: फिस्टुला जिसे भगंदर या नासूर भी कहते हैं...एक ऐसी बीमारी है जो आमतौर पर घरों तक में शर्मिंदगी की वजह बन जाती है. पति-पत्नी तक ये समस्या साझा करने से कतराते हैं. बीमारी छुपाने और चुपचाप दर्द सहते रहने का नतीजा ये होता है कि जान तक पर बन आती है. कई ऐसे पेशेंट देखे गए हैं जो इस बीमारी के इलाज के लिए 20-22 डॉक्टरों तक को दिखा चुके मगर ठीक नहीं हो पाए. फिस्टुला या भगंदर कई बार तो कैंसर का रूप ले लेते हैं. इस गंभीर बीमारी के कारण, इलाज और बचाव के तरीकों पर हमने बात की और के सर्जन डॉक्टर आशीष भनोट से. डॉक्टर भनोट के पास इस फील्ड में 20 वर्षों का लंबा एक्सपीरियंस है. आइए उन्हीं से जानते हैं फिस्टुला से जुड़े सभी सवालों के जवाब... 

Fistula क्या है, क्यों होता है?
Fistula या भगंदर में मलाशय के नजदीक एक छेद बनता है. कई बार गांठ भी बन जाती है और उस गांठ से पस निकलना शुरू हो जाता है. जब पस बनता है तो मरीज को बहुत दर्द होता है. पस बाहर निकलने के बाद ही मरीज को आराम मिलता है. पस के अलावा कई बार खून तो कई बार टिशू भी निकलते हैं. कई बार मलाशय में संक्रमण के कारण Fistula की समस्या होती है. मल त्यागने के समय जब ज्यादा जोर लगाया जाता है तो उस स्थान पर हल्का सा कट लग जाता है. कई बार वह कट खुद ठीक हो जाता है और कई बार इन्फेक्शन के बाद फिशर से फिस्टुला में तब्दील हो जाता है.

फिस्टुला में एनल कैनाल के भीतर छेद हो जाता है और वहां से फिस्टुला ट्रैक बनकर स्किन के ऊपर आता है, जिससे कि आसानी से इसका पता चल जाता है. लेकिन कई बार यह स्किन पर नहीं आता और ट्रैक भीतर ही अलग-अलग जगहों पर चला जाता है, जिसे इंटरनल फिस्टुला कहते हैं. कई बार ये स्क्रोटम और रीढ़ की हड्डी तक चला जाता है. शुरुआत में इसका पता लगाना मुश्किल होता है. अधिकतर केसों में ये देखा गया है कि डॉक्टर मरीज का इलाज दूसरी बीमारी समझकर करते हैं और बाद में पता चलता है कि पेशेंट को फिस्टुला था जो रीढ़ की हड्डी तक चला गया है, या पेनिस या घुटनों तक फैल गया है. जो फिस्टुला रीढ़ की हड्डी तक पहुंच जाए उसका इलाज बहुत मुश्किल होता है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर


पाइल्स, फिशर और फिस्टुला में अंतर
पाइल्स कई बार आनुवांशिक होता है. पाइल्स को पहचानने में भी भूल हो जाती है. आमतौर पर लोग जिसे पाइल्स समझते हैं वो फिशर होता है. फिशर में मलाशय के भीतर हल्का सा कट लग जाता है, जिससे कि खून निकलता है. फिशर आगे चलकर खराब रूप ले लेता है और वह फिस्टुला में बदल जाता है. पाइल्स में मसा बाहर निकल आता है. पाइल्स में कई बार दर्द नहीं होता है और मरीज को पाइल्स का पता नहीं चलता है. जबकि फिस्टुला में मुख्य तौर पर गुदा में बार-बार फोड़े होना, गुदा के आसपास दर्द और सूजन, मलद्वार से खून निकलना, शौच करने में दर्द, बुखार, ठंड लगना जैसे लक्ष्ण दिखते हैं. इसके अलावा थकान होना, कब्ज होना, मल नहीं हो पाना और गुदा के आसपास से बदबूदार खून या पस निकलना भी देखा जाता है. पाइल्स आनुवांशिक होता है, लेकिन फिस्टुला आनुवांशिक नहीं होता है. एक घर में तीन-तीन लोगों को फिस्टुला हो जाता है, लेकिन इसे आनुवांशिक नहीं कह सकते.

क्या सिर्फ सर्जरी से ठीक होता है फिस्टुला?
दवा देकर सप्रेस करने में कई बार मरीज को कई साल तक दिक्कत नहीं होती, फिस्टुला साइलेंट हो जाता है, बीमारी दब गई है तो मरीज को लगता है कि वह ठीक हो गया है. लेकिन बीमारी भीतर रहती है और आने वाले समय में वह और खराब रूप में सामने आ सकती है. फिस्टुला का इलाज सर्जरी है. MRI जांच रिपोर्ट में फिस्टुला ठीक निकले तभी इसे ठीक मानना चाहिए. फिस्टुला या भगंदर में कई बार मरीज के पेट में छेद कर वहां से मल का रास्ता बनाया जाता है. जब केस बहुत बिगड़ गया हो तो इस विकल्प को आजमाते हैं. 

ठीक होने के बाद दोबारा भी हो जाता है फिस्टुला?
कोई भी बीमारी जब आधी, अधूरी ठीक हुई है तो वह कुछ महीनों बाद, या एक-दो साल बाद दोबारा हो जाएगी. कई पेशेंट कई-कई सर्जरी करा चुके होते हैं. दरअसल, ये बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई होती है, इसलिए उन्हें दोबारा, तीन बार, चार बार या कई बार हो जाती है. ऐसे में पेशेंट भी डिप्रेशन में चला जाता है. इसका सही ढंग से इलाज किया जाए, मरीज के भीतर फैले इसके सारे रूट्स को बंद कर दिया जाए तो इसके दोबारा होने के चांस बहुत ही कम हैं. हालांकि, कोई भी पूरी गारंटी से नहीं कह सकता है कि कोई भी बीमारी एक बार हो गई है तो वह दोबारा नहीं होगी. बुखार आज हुआ है तो कल भी हो सकता है. इसका मतलब ये नहीं कि इलाज न कराएं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

फिस्टुला से बचने खान-पान, लाइफस्टाइल कैसी हो?
कुछ भी खाने की मनाही नहीं है. सब कुछ खाना है, लेकिन अगर ज्यादा प्रोटीन लेते हैं तो कब्ज की समस्या हो सकती है. कब्ज बनेगा तो इंजरी का खतरा रहेगा. मैदा से बनी चीजें कम से कम खाना है. नॉनवेज भी खा सकते हैं. नॉनवेज कम खाया करें. क्योंकि ये प्रोटीन का सोर्स है. ज्यादा प्रोटीन वाली चीजें खाने से कब्ज बनने की समस्या हो सकती है. अगर ज्यादा प्रोटीन खा लिया है तो फाइबर सोर्स वाले फल खा लें या फिर इसबगोल का पाउडर भी खा सकते हैं. इससे पेट में कब्ज की समस्या नहीं होगी और स्टूल नॉर्मल होगा. स्टूल को हमेशा सॉफ्ट रखने की कोशिश करें. ज्यादा हार्ड स्टूल और बहुत ज्यादा सॉफ्ट स्टूल दोनों ही ठीक नहीं है. कब्ज न बनने दें. बहुत ज्यादा मीठा और बहुत स्पाइसी बहुत मसालेदार चीजें कम खाएं. थोड़ा व्यायाम रोज करें.

आयुर्वेद में क्षारसूत्र कितना कारगर है?
क्षारसूत्र से भी इसका इलाज किया जाता है. ये भी कारगर है. लेकिन इसमें मरीज को होने वाला दर्द असहनीय हो जाता है. मल त्यागने वाले रास्ते में धागा डालते हैं, हर सात या दस दिन पर मेडिकेटेड धागा बदलते हैं. ये धागा बदलने की प्रक्रिया और उसके बाद होने वाला दर्द बहुत असहनीय होता है. इस वजह से कई मरीज बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं. फिर बाद में वह मरीज सर्जरी की ओर जाते हैं.

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पांच बातें जो याद रखनी हैं

-ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है. आजकल यूथ में ज्यादा केस सामने आ रहे हैं. 
-फिस्टुला का नॉनवेज खाने से कोई संबंध नहीं है. ये बीमारी किसी को भी हो सकती है. 
-देर तक बैठे रहेंगे तो कब्ज हो सकती है, कब्ज इस बीमारी को दोबारा उखाड़ सकता है .
-फिस्टुला के लक्षण हों तो गूगल पर सर्च करके राय न बनाएं, तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
-रोग को जितना छुपाएंगे उतना ही बिगड़कर ये सताएगा इसलिए इलाज कराएं, शर्माएं न.

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