निशिकांत दुबे की ओर से 'मुस्लिम आयुक्त' कहे जाने के बाद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने सोमवार को बीजेपी सांसद पर पलटवार किया है. कुरैशी ने कहा कि वह ऐसे आइडिया ऑफ इंडिया में विश्वास रखते हैं जहां व्यक्ति को उसके योगदान से पहचाना जाता है. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान उनकी नफरत की राजनीति को आगे बढ़ाने के काम आती है. कुरैशी ने जोर देकर कहा कि भारत अपनी संवैधानिक संस्थाओं और सिद्धांतों के लिए हमेशा खड़ा रहेगा और लड़ता रहेगा.
'काम से होनी चाहिए पहचान'
पीटीआई के मुताबिक एसवाई कुरैशी ने कहा, 'मैंने चुनाव आयुक्त के संवैधानिक पद पर अपनी पूरी क्षमता के साथ काम किया है और आईएएस के रूप में मेरा लंबा करियर रहा है. मैं ऐसे भारत के विचार में भरोसा रखता हूं जहां किसी व्यक्ति को उसकी धार्मिक पहचान से नहीं बल्कि उसकी प्रतिभा और योगदान से परिभाषित किया जाता है.' उन्होंने कहा, 'लेकिन मेरा अनुमान है कि कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान उनकी नफरत की राजनीति को आगे बढ़ाने का मुख्य साधन है.'
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इससे पहले सुबह में बिना किसी का नाम लिए कुरैशी ने X पर पोस्ट किया था, 'मैंने बहुत पहले ही सीख लिया था कि सुअर के साथ कभी कुश्ती नहीं लड़नी चाहिए. आप गंदे हो जाते हैं और इसके अलावा, सुअर को यह पसंद है - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ. महान लेखक का एक बहुत ही बुद्धिमानी भरा वचन'
निशिकांत के बयान की आलोचना
इस बीच दिल्ली प्रशासनिक अधिकारी फोरम के मानद अध्यक्ष आईएएस के. महेश ने कुरैशी का समर्थन किया और कहा कि चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त दोनों के रूप में वह एक अभूतपूर्व व्यक्ति हैं. महेश ने कहा, 'उन्होंने इन महान जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया और कई सुधारों को लागू करके चुनाव आयोग की संस्था को मजबूत बनाया. उदाहरण के लिए, उन्होंने मतदाता एजुकेशन डिविजन, खर्च पर कंट्रोल के लिए डिविजन की स्थापना की'
निशिकांत दुबे के साथ विवाद के बाद कई राजनेताओं और दलों ने भी कुरैशी का समर्थन किया है और बीजेपी सांसद की टिप्पणी की आलोचना की है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निशिकांत दुबे पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें ऐसे पूर्व संवैधानिक अधिकारी पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए, जिन्होंने देश की सेवा की है.
विपक्ष ने बीजेपी को भी घेरा
एक्स पर एक पोस्ट में अखिलेश ने लिखा, 'जो व्यक्ति अपनी ही पार्टी की ओर से अपनी 'व्यक्तिगत राय' के कारण बदनाम हो चुका है, जो समर्थन के योग्य नहीं है, उसे एक रिटायर्ड संवैधानिक अधिकारी पर चुप्पी बनाए रखनी चाहिए, यह ज्यादा सम्मानजनक होगा.' सीपीएम महासचिव डी राजा ने दुबे की टिप्पणी की निंदा की और आरोप लगाया कि बीजेपी का संविधान के प्रति कोई सम्मान नहीं है.
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शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि कुरैशी, टीएन शेषन के बाद देश के सर्वश्रेष्ठ चुनाव आयुक्तों में से एक हैं. उन्होंने कहा, ‘वह बेस्ट लोगों में से एक थे. मैंने उन्हें काफी करीब से देखा है, जब वह आयुक्त थे, तब शिवसेना-बीजेपी गठबंधन था, उस समय भी हमारा नजरिया यही था. राउत ने कहा, 'मोदी-शाह ने इस देश में कैसी भाषा फैलाई है? ये लोग इस देश में रहने के लायक नहीं हैं, जो देश को तोड़ने की कोशिश करते हैं.'
निशिकांत ने बताया था 'मुस्लिम आयुक्त'
जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि निशिकांत दुबे ने कुरैशी के खिलाफ जो कुछ भी कहा है और उनकी पिछली टिप्पणी से बीजेपी असहज है और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बयान से पार्टी को अलग कर लिया है. उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी को भी उसी तरह देखा जाना चाहिए, एसवाई कुरैशी, जो बहुत महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं, उन पर धार्मिक टिप्पणी करना ठीक नहीं है.
भारत के चीफ जस्टिस के खिलाफ अपनी टिप्पणी से हंगामा खड़ा करने के बाद बीजेपी सांसद दुबे ने रविवार को कुरैशी पर निशाना साधते हुए कहा था कि वह चुनाव आयुक्त नहीं बल्कि 'मुस्लिम आयुक्त' थे. इससे पहले कुरैशी ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम की आलोचना करते हुए इसे मुस्लिमों की जमीन हड़पने के लिए सरकार का भयावह प्लान बताया था. कुरैशी जुलाई 2010 से जून 2012 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी से बवाल
निशिकांत दुबे ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त पर बयान ऐसे समय दिया है जब एक दिन पहले ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना पर तीखा हमला किया था और उन्हें भारत में 'धार्मिक युद्धों' के लिए जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद बीजेपी ने उनकी आलोचना को खारिज कर दिया था और विवादास्पद टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया था.
सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस के खिलाफ दिए बयान को लेकर निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही हो सकती है. अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा की तरफ से चीफ जस्टिस को लेटर लिखा गया था. इसमें निशिकांत दुबे के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की गई थी. लेटर में कहा गया था कि दुबे की ओर से सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ दिए गए सार्वजनिक बयान अपमानजनक और भड़काऊ हैं और ये आपराधिक अवमानना के बराबर हैं. कोर्ट ने इसे लेकर कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता को अटॉर्नी जनरल की इजाजत लेनी होगी.