अयोध्या विवाद में फैसला सुनाने वाले पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद भारत के कानूनी इतिहास में सर्वाधिक तीखे तरीके से लड़े गए मुकदमे में से एक था. इस केस में दोनों वकीलों के बीच तीखी जिरह हुई और दोनों पक्षों ने जी-जान लगाकर अपने-अपने तर्क रखे. रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने ही पिछले साल अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसला सुनाया था.
वकीलों ने बेंच को भरपूर सहयोग दिया
जस्टिस गोगोई ने कहा कि 40 दिनों तक बड़े-बड़े वकीलों ने बेंच को भरपूर सहयोग दिया और ये अभूतपूर्व था. रंजन गोगोई ने पत्रकार माला दीक्षित की पुस्तक 'अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम' के विमोचन के मौके पर भेजे गए अपने वीडियो संदेश में ये बातें कहीं.
9 नवंबर 2019 को आया फैसला
बता दें कि 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसले में अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि का अधिकार राम लला को सौंपा. राम लला विराजमान इस मामले में खुद एक पक्षकार थे. अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी जाए.
अंतिम फैसले पर पहुंचना चैलेंजिंग था
पूर्व सीजेआई ने कहा कि बहुआयामी मुद्दों का निर्णय भारी-भरकम रिकॉर्ड के आधार पर लिया गया. जस्टिस गोगोई, जिन्होंने इस मामले पर 40 दिनों तक सुनवाई की, ने कहा कि अंतिम फैसले पर पहुंचना कई कारणों से एक चुनौतीपूर्ण काम था. उन्होंने कहा कि इस केस में हर बिंदु पर तीखी बहस हुई और दोनों पक्षों के वकीलों ने पूरी शिद्दत से अपने-अपने तर्क रखे.
अयोध्या मामले का विशेष स्थान रहेगा
जस्टिस गोगोई ने कहा कि अयोध्या मामला, भारत के कानूनी इतिहास में पूरी ताकत से लड़े गए मुकदमों में से एक था. इसका हमेशा ही एक विशेष स्थान रहेगा. उन्होंने कहा कि मौखिक और विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराए गए दस्तावेजी साक्ष्यों सहित भारी-भरकम रिकॉर्डों के आधार पर बहुआयामी मुद्दों का एक अंतिम समाधान निकला.