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पूर्व CJI यू यू ललित ने नए आपराधिक कानूनों को सराहा, गिनाई क्रिमिनल लॉ की खूबियां

नए बनाए आपराधिक कानूनों की तुलना आतंकवादी अपराधों से निपटने वाले पिछले कानूनों से करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा कि ये कानून आगे का रास्ता बताते हैं. बता दें कि जस्टिस ललित के पिता जस्टिस उमेश रंगनाथ ललित बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) के पूर्व न्यायाधीश और एबीएपी के सदस्य रहे हैं.

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पूर्व सीजेआई ने नए आपराधिक कानूनों को सराहा.
पूर्व सीजेआई ने नए आपराधिक कानूनों को सराहा.

नए क्रिमिनल लॉ को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. लेकिन इन कानूनों का सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने स्वागत किया है. इन नए आपराधिक कानूनों में भीड़ द्वारा हत्या के अपराधों पर दंडात्मक प्रावधान शामिल करना, आंशिक या समग्र रूप से 15 दिनों की पुलिस हिरासत की अनुमति देना और औपनिवेशिक राजद्रोह कानून को खत्म करना शामिल है.

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नए बनाए आपराधिक कानूनों की तुलना आतंकवादी अपराधों से निपटने वाले पिछले कानूनों से करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा कि ये कानून आगे का रास्ता बताते हैं. बता दें कि जस्टिस ललित के पिता जस्टिस उमेश रंगनाथ ललित बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) के पूर्व न्यायाधीश और एबीएपी के सदस्य रहे हैं. 

क्या बोले पूर्व सीजेआई ललित

पूर्व सीजेआई ने इन कानूनों की तारीफ करते हुए मकोका, टाडा और पोटा का हवाला देते हुए कहा कि नए कानून यह दर्शाते हैं कि एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज का व्यवहार और आचरण कैसा हो. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि हमारे पास निरंतर गैरकानूनी गतिविधि और आतंकवादी कृत्यों जैसे शब्दों को परिभाषित करने वाले कानूनों का एक सेट था. उनमें यह सिद्धांत भी शामिल था कि पुलिस अधिकारी रिकॉर्ड कर सकते हैं. हालांकि, बीएनएस इन शब्दों को संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसी आक्रामक प्रक्रियाओं को शामिल किए बिना परिभाषित करता है.

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उन्होंने यह भी कहा कि मकोका में पहली बार एक कठोर विचार पेश किया गया था कि पुलिस अधिकारी किसी आरोपी के अन्य व्यक्ति के साथ टेलीफोन बातचीत को टैप कर सकते हैं. इसे सबूत के विश्वसनीय साधन के रूप में पेश कर सकते हैं. भले ही यह व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन हो. उन्होंने कहा कि इस विचार को मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान जैसे राज्यों ने अपनाया था.

पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने मसल्टी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1964) में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले की भी याद दिलाई जिसमें 40 व्यक्तियों पर हत्या करने और गैरकानूनी सभा का हिस्सा होने के कारण दायित्व के अपराध का आरोप था. अदालत के समक्ष तब यह प्रश्न आया कि क्या ऐसे व्यक्तियों को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए या नहीं. हालांकि, अदालत ने भीड़ के सभी सदस्यों को मौत की सजा सुनाई, तीन युवकों को छोड़कर, जिनके बारे में अदालत ने पाया कि वे अपने परिवार के बुजुर्गों के दबाव में आकर गैरकानूनी सभा में शामिल हुए थे.

उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा किया कि किस प्रकार बड़ी संख्या में आरोपी जांच में बाधा डालने के लिए स्वयं को अस्पताल में भर्ती करवाकर गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करते हैं. जस्टिस ललित ने कहा कि प्रारंभिक 40-60 दिनों की हिरासत के दौरान किसी भी समय मजिस्ट्रेट को 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत का आदेश देने की अनुमति देना एक अच्छा कदम है.

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धारा 106 (2) बीएनएस के तहत हिट-एंड-रन पर प्रावधान के बारे में उन्होंने कहा, 'अगर ड्राइवर पीड़ित को बिना किसी मेडिकल सहायता के छोड़कर घटनास्थल से भाग जाता है, तो उसे 10 साल की कैद की सजा हो सकती है. हालांकि, अगर आरोपी सामान्य मानवीय परिस्थितियों में गाड़ी चला रहा है तो सजा कम होनी चाहिए. अगर वह वहीं रुकता है, घायल व्यक्ति की मदद करता है और घटनास्थल से भागता नहीं है, तो उसके लिए सजा 10 की बजाय 5 साल होगी.

बता दें कि आलोचकों ने नए आपराधिक कानूनों में इन प्रावधानों को शामिल किए जाने पर चिंता जताई है. खास तौर पर आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए. जनवरी में, केंद्र ने 10 साल की कैद और जुर्माने के प्रावधान के बारे में ट्रक चालकों की चिंताओं का संज्ञान लिया और ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा की. केंद्र ने यह भी कहा कि वह ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के साथ परामर्श के बाद ही इस प्रावधान को लागू करेगा.

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