मोदी सरकार 3.0 में सुब्रह्मण्यम जयशंकर को एक बार फिर से विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाई है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी जयशंकर को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. ब्यूरोक्रेट से पॉलिटिशियन बने जयशंकर गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं. वह कैबिनेट मंत्री के रूप में विदेश मंत्रालय का नेतृत्व करने वाले पहले पूर्व विदेश सचिव हैं.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जहां सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री की भूमिका निभाई थी. वहीं दूसरे कार्यकाल में यह जिम्मेदारी एस जयशंकर को मिली. इस दौरान उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जो सुर्खियों में बने रहे. एक ओर सत्ता पक्ष के लोग उनके फैसलों को समर्थन करते आए. वहीं दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों ने जयशंकर के फैसलों की कड़ी आलोचना की. दरअसल जयशंकर ने कई बार नेहरू से लेकर इंदिरा की विदेश नीतियों का भी विरोध किया था.
तीन साल विदेश सचिव रहे जयशंकर
एस जयशंकर ने जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव के रूप में कार्य किया है. जयशंकर ने अपनी स्कूली शिक्षा द एयर फोर्स स्कूल, सुब्रतो पार्क, नई दिल्ली से पूरी की थी. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से रसायन विज्ञान में स्नातक हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से राजनीति विज्ञान में एमए, एम.फिल. और उसके बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की.
कई देशों में उच्चायुक्त रहे जयशंकर
जयशंकर ने जापानी मूल की क्योको से शादी की है और उनके दो बेटे, ध्रुव और अर्जुन और एक बेटी, मेधा है. वह रूसी, अंग्रेजी, तमिल, हिंदी, संवादी जापानी और कुछ हंगेरियन बोलते हैं. वह 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए और 38 वर्षों से अधिक के अपने राजनयिक करियर के दौरान, उन्होंने 2007 से 2009 तक सिंगापुर में उच्चायुक्त, 2001 से 2004 तक चेक गणराज्य, 2009 से 2013 तक चीन और 2014 से 2015 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में चेक गणराज्य में राजदूत रहे. जयशंकर ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत करने में अहम भूमिका निभाई. उन्हें 2019 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया.