साल था 2001. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तब जुलाई में भारत आए. मुशर्रफ भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के साथ एक समझौते के चलते भारत आए थे. लेकिन इससे पहले ही भारत के तत्कालीन डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी के साथ हुई एक बैठक में मुशर्रफ का चेहरा तमतमा गया था. दरअसल, इस मुलाकात के दौरान आडवाणी ने मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड डॉन और आतंकी दाऊद इब्राहिम को भारत के हवाले करने की मांग कर डाली थी. आडवाणी की इस बात ने परवेज मुशर्रफ को खासा नाराज कर दिया था.
लाल कृष्ण आडवाणी ने इस घटना का जिक्र अपनी जीवनी माई कंट्री माई लाइफ में भी किया है. मीटिंग में उन्होंने मुशर्रफ से कहा था कि भारत ने अभी-अभी तुर्की के साथ प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किया है. उन्हें लगता है कि भारत और पाकिस्तान को भी ऐसे समझौते पर साइन करना चाहिए. ताकि एक-दूसरे के देश के गुनहगारों को कानून के मुताबिक सजा मिल सके.
आडवाणी की बातों पर पहले तो मुशर्रफ उनकी हां में हां मिलाते रहे. लेकिन इस बीच ही आडवाणी ने कहा कि इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले पाकिस्तान को दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप देना चाहिए. ये सुनते ही मुशर्रफ गुस्से से तमतमा गए. भारत के रॉ चीफ एएस दुलत ने भी 2015 में एक इंटरव्यू में इस बात की पुष्टि की थी. उन्होंने कहा कि आडवाणी ने आगरा शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के लिए आयोजित रात्रिभोज में दाऊद इब्राहिम के मुद्दे को उठाया था. मुशर्रफ चौक गए थे और उन्होंने आडवाणी से कहा था, 'हमें कम से कम आगरा तो जाने दें'.
भारत के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने भी आगरा शिखर सम्मेलन का जिक्र अपनी किताब में किया था. जसवंत सिंह का मानना है कि पाकिस्तानी नेतृत्व किसी भी तरह अपनी बात मनवाना चाहता था. जसवंत सिंह ने लिखा कि 'पाकिस्तानी नेता इस बात को नहीं समझ पा रहे थे कि करगिल एपिसोड का पूरे माहौल पर क्या असर पड़ा था. वे इस तथ्य को नहीं समझ पा रहे थे कि वाजपेयी 'नई शुरुआत' की पेशकश कर रहे थे.
जसवंत सिंह ने लिखा है कि बैठक में मुशर्रफ ये बताना चाहते थे कि पाकिस्तान से भारत में कोई आतंकवाद प्रायोजित नहीं हो रहा है. जसवंत सिंह के मुताबिक ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी नेता 'किसी भी तरह' किसी समझौते पर पहुंचने की जल्दी में थे. जब आगरा घोषणा पत्र का मसौदा वाजपेयी और उनके मंत्रिमंडल के चुनिंदा सदस्यों को दिखाया गया था, तो उनका सामूहिक दृष्टिकोण यह था कि इसमें 'आतंकवाद पर पर्याप्त और स्पष्ट जोर' देने की कमी है और पाकिस्तान की ओर से यह भी जोर देकर नहीं कहा जा रहा है कि यह बंद होना चाहिए.
सवाल यह था कि सिर्फ उन्हीं चीजों पर आगे कैसे बढ़ा जा सकता था जो सिर्फ पाकिस्तान के मुद्दे थे. मुशर्रफ ने भी अपनी किताब में उस समय को याद किया है, जब वो आगरा छोड़ने से पहले वाजपेयी से मिलने पहुंचे थे. मुशर्रफ के अनुसार 'मैंने उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसा लगता है कि हम दोनों के ऊपर कोई है, जो हमें ओवररुल करना चाहता है. मैंने यह भी कहा कि आज हम दोनों को अपमानित किया गया है.