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करगिल युद्ध के बीच वाजपेयी ने नवाज शरीफ से की थी 5 बार बात, RAW ने टैप किया था मुशर्रफ का फोन

ये दावा एक नई किताब में किया गया है. इस किताब को पूर्व ब्यूरोक्रेट शक्ति सिन्हा ने लिखा है. शक्ति सिन्हा कई सालों तक वाजपेयी के निजी सचिव रह चुके हैं. इसके अलावा करगिल युद्ध के दौरान वे प्रधानमंत्री कार्यालय में अहम रोल निभा रहे थे.

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पूर्व पीएम वाजपेयी और पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ (AP फाइल फोटो)
पूर्व पीएम वाजपेयी और पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ (AP फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • वाजपेयी के निजी सचिव की किताब में खुलासे
  • वाजपेयी मानते थे मुशर्रफ ने नवाज को झांसा दिया
  • पाक पीएम को सता रहा था फोन टैपिंग का डर

1999 के करगिल युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक दूसरे से 4 से 5 बार टेलिफोन पर बातचीत की थी. इस बातचीत के दौरान पूर्व पीएम वाजपेयी को समझ में आ रहा था कि नवाज शरीफ की आंखों में पाकिस्तान आर्मी के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने धूल झोंकी थी और भारत के साथ युद्ध की स्थिति पैदा कर दी थी. 

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ये दावा एक नई किताब में किया गया है. इस किताब को पूर्व ब्यूरोक्रेट शक्ति सिन्हा ने लिखा है. शक्ति सिन्हा कई सालों तक वाजपेयी के निजी सचिव रह चुके हैं. इसके अलावा करगिल युद्ध के दौरान वे प्रधानमंत्री कार्यालय में अहम रोल निभा रहे थे. Vajpayee: The Years That Changed India नाम की इस किताब में शक्ति सिंह दावा करते हैं कि वाजपेयी ने डेढ़ महीने की उस अवधि के दौरान शरीफ से 4 से 5 बार बात की थी. 

अंग्रेजी वेबसाइट द हिन्दू ने इस किताब के कुछ अंश को प्रकाशित किया है. वाजपेयी-नवाज की इस बीतचीत के पीछे भी एक कहानी है. शक्ति सिंह बताते हैं कि वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ बैक चैनल डिप्लोमेसी के लिए आरके मिश्रा नाम के अधिकारी को चुना था. आरके मिश्रा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व प्रमुख थे. आरके मिश्रा ने नवाज शरीफ के बारे में जो बात वाजपेयी को बताई उसके बाद वाजपेयी ने शरीफ से संवाद जारी रखने का फैसला किया.

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घर में टैपिंग का अंदेशा...चलिए गार्डन में बात करते हैं 

इस किताब में शक्ति सिंह लिखते हैं, "...शरीफ की स्थिति कमजोर राजनेता की तरह थी, और बाद की एक मीटिंग में उन्होंने मिश्रा को संकेत दिया कि उन्हें गार्डन में टहलते हुए बात करनी चाहिए. निश्चित रूप से उन्हें शक था कि उनके अपने ही घर में टैपिंग हो रही थी. जब मिश्रा ने इस घटना को वाजपेयी को बताया तो वाजपेयी ने इसे एक इशारे के रूप में समझा कि नवाज शरीफ उस वक्त परिस्थितियों के दास बनकर रह गए थे."  

4 से 5 बार दोनों नेताओं के बीच हुई बात 

किताब में शक्ति सिंह आगे लिखते हैं, "मध्य मई से 4 जुलाई तक डेढ़ महीने की अवधि में वाजपेयी ने निश्चित रूप से शरीफ से 4 से 5 बार बात की होगी, उस समय पाकिस्तान के पीएम सार्वजनिक रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन के सामने घोषणा कर चुके थे कि पाकिस्तान अपनी ओर की नियंत्रण रेखा से अपने सैनिकों को वापस कर लेगा."

...नवाज शरीफ को फोन लगाइए

दोनों प्रधानमंत्रियों की बीच बातचीत का ब्यौरा देते हुए शक्ति दास बताते हैं कि इनमें से एक टेलिफोनिक वार्ता श्रीनगर से मध्य जून में हुई थी, तब वाजपेयी करगिल दौरे पर थे. शक्ति सिंह किताब में लिखते हैं, "श्रीनगर पहुंचने के बाद वाजपेयी ने मुझसे कहा कि नवाज शरीफ को फोन लगाइए. मेरी छोटी सी टीम और मैंने कोशिश की लेकिन हमलोग फोन नहीं लगा सके. लेकिन तभी एक स्थानीय ऑफिसर ने कहा कि जम्मू और श्रीनगर से पाकिस्तान (+92) कॉल करने पर रोक लगा दी गई थी. तब दूरसंचार विभाग के अधिकारियों को कहा गया कि इस सुविधा को कुछ देर के लिए बहाल करें, ताकि दोनों प्रधानमंत्री बात कर सकें."

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जब RAW ने रिकॉर्ड किया मुशर्रफ का फोन

करगिल युद्ध के दौरान LoC से पाकिस्तानी सैनिकों की वापसी के पीछे RAW के अधिकारियों की अहम भूमिका रही. किताब में लिखा गया है कि RAW के तत्कालीन चीफ अरविंद दवे 2 टेलिफॉनिक रिकॉर्डिंग को लेकर पीएम वाजपेयी के पास पहुंचे थे. ये रिकॉर्डिंग पाक आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ और पाकिस्तान के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ ले. ज. मोहम्मद अजीज के बीच की थी. इस रिकॉर्डिंग को सुनने के बाद ये स्पष्ट हो गया था कि करगिल वार में पाकिस्तान की सेना शामिल थी.

पाकिस्तान के दावे के विपरित मुजाहिदों का इसमें छोटा सा रोल था. इस टेप को बाद में मीडिया को दिया गया. यही नहीं इस रिकॉर्डिंग को  डिप्लोमैटिक रूट के जरिए नवाज शरीफ के लिए पाकिस्तान भी भेज दिया गया. इस काम में राजनयिक विवेक काटूज और आरके मिश्रा का अहम रोल था. इस टेप के सार्वजनिक हो जाने से पाकिस्तान की बड़ी किरकिरी हुई थी.

 

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