भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया है. वे 84 वर्ष के थे. कुछ दिन पूर्व ही ब्रेन सर्जरी के लिए उन्हें दिल्ली के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सर्जरी के बाद से ही वे वेंटिलेटर पर थे. प्रणब कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए थे.
जन्म
प्रणब मुखर्जी स्वतंत्रता सेनानी कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के पुत्र थे. पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में छोटे से गांव मिराती में, 11 दिसंबर, 1935 को उनका जन्म हुआ. उनके पिता कांग्रेस नेता के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण कई बार जेल गए. कामदा किंकर अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952- 64) के सदस्य और जिला कांग्रेस समिति, बीरभूम (पश्चिम बंगाल) के अध्यक्ष रहे.
परिवार
मुखर्जी का विवाह रवींद्र संगीत की निष्णात गायिका और कलाकार शुभ्रा मुखर्जी से हुआ था. शुभ्रा मुखर्जी का 18 अगस्त 2015 को निधन हो गया था. उनके दो पुत्र अभिजीत मुखर्जी, इंद्रजीत मुखर्जी और एक पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी हैं. अभिजीत मुखर्जी दो बार के लोकसभा सांसद रहे हैं जबकि शर्मिष्ठा कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं.
शिक्षा
प्रणब मुखर्जी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गृहजिले बीरभूम में ही की. बाद में वे कोलकाता चले गए और वहां से उन्होंने राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की.
करियर
1963 में प्रणब मुखर्जी के करियर की शुरुआत कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के कार्यालय में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में हुई. इसके बाद उन्होंने अपने ही कॉलेज विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया. राजनीति में प्रवेश करने से पहले देशर डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में एक पत्रकार के रूप में भी काम किया. बाद में 1969 में वे राजनीति में आए और राष्ट्रपति पद तक पहुंचे.
राजनीति में एंट्री
प्रणब मुखर्जी को राजनीति में लाने का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है. वर्ष 1973-74 में इंदिरा ने उन्हें उद्योग, जहाजरानी एवं परिवहन, इस्पात एवं उद्योग उपमंत्री तथा वित्त राज्य मंत्री बनाया. 1982 में वे इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में भारत के वित्त मंत्री बने और 1980 से 1985 तक राज्य सभा में सदन के नेता रहे.
संसदीय जीवन
प्रणब मुखर्जी 1969 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए. वे पांच बार संसद के उच्च सदन के सदस्य रहे. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल कर वे संसद के निचले सदन में पहुंचे. मुखर्जी 23 साल तक पार्टी की सर्वोच्च नीति-निर्धारक संस्था कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे. वे 8 साल तक लोकसभा में सदन के नेता रहे.
उपलब्धियां
सातवें और आठवें दशक में प्रणब ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) तथा भारतीय एक्जिम बैंक के साथ ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में भूमिका निभाई. मुखर्जी ने 1991 में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे का जो फार्मूला तैयार किया उसे आज भी गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के नाम से जाना जाता है.
न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाले जर्नल ‘यूरो मनी’ द्वारा आयोजित सर्वे में उन्हें 1984 में विश्व के सर्वोत्तम पांच वित्त मंत्रियों में शुमार किया गया था. विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए जर्नल ऑफ रिकार्ड, ‘एमर्जिंग मार्केट्स’ द्वारा उन्हें 2010 में एशिया के लिए ‘वर्ष का वित्त मंत्री’ घोषित किया गया.
पदभार
1991 से 1996 तक प्रणब योजना आयोग के उपाध्यक्ष, 1993 से 1995 तक वाणिज्य मंत्री, 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री, 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री तथा 2006 से 2009 तक विदेश मंत्री रहे. वे 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे. 2012 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया.
मनमोहन सरकार में प्रणब मुखर्जी के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे 2004 से 2012 के बीच प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल आदि की स्थापना जैसे विभिन्न मुद्दों पर गठित 95 से अधिक मंत्री समूहों के अध्यक्ष रहे.
पुरस्कार-सम्मान
मुखर्जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था तथा राष्ट्र निर्माण पर कई पुस्तकें लिखीं हैं. उन्हें बहुत से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. इनमें 2008 में पद्म विभूषण, 1997 में सर्वोत्तम सांसद तथा 2011 में भारत में सर्वोत्तम प्रशासक पुरस्कार शामिल है. दुनिया के कई विश्वविद्यालयों ने उनको डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया. 2019 में उन्हें मोदी सरकार ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देकर सम्मानित किया.
कांग्रेस से मतभेद
1984 में राजीव गांधी से मतभेद के चलते प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री का पद छोड़ना पड़ा. वे कांग्रेस से दूर हो गए और एक समय ऐसा आया जब प्रणब मुखर्जी ने एक नई राजनीतिक पार्टी बना ली. उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. हालांकि ये पार्टी कुछ चमत्कार नहीं कर पाई दूसरी और वीपी सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस की स्थिति भी डावांडोल हो गई. बाद में राजीव ने प्रणब मुखर्जी पर फिर भरोसा जताया और उन्हें मनाकर पार्टी में लाया गया. उनकी पार्टी 'राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस' का कांग्रेस में विलय हो गया.
प्रणब मुखर्जी को एक ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाएगा जिसका सम्मान आपसी मतभेद भुलाकर हर राजनीतिक दल किया करता था. मोदी सरकार द्वारा भारत रत्न के लिए उनके नाम का चयन इसका सबूत है. वे कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति और संसदीय परंपराओं की गहन जानकारी रखने वाले राजनेता थे. राष्ट्रपति के रूप में भी उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जो मिसाल बने. उनकी कमी भारतीय राजनीति में हमेशा महसूस की जाएगी.