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शाहजहां शेख की जमानत याचिका खारिज, ED ने सीज की 3 लग्जरी कार

ईडी की टीम ने गुरुवार को सुबह-सुबह शाहजहां शेख के ठिकानों पर छापेमारी की. इस दौरान ईडी की टीम केंद्रीय सुरक्षाबल के जवानों के साथ संदेशखाली पहुंची. ईडी ने शाहजहां के ईंट भट्ठे के साथ-साथ धमखाली में उसके ठिकाने पर छापेमारी की. यहां से ईडी ने शेख शाहजहां और उसके करीबियों की 3 लग्जरी कार को सीज किया है. साथ ही कुछ दस्तावेज भी जब्त किए हैं.

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शाहजहां शेख पर सीबीआई का शिकंजा कसता जा रहा है
शाहजहां शेख पर सीबीआई का शिकंजा कसता जा रहा है

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में ईडी टीम पर हमले के आरोपी शाहजहां शेख पर शिकंजा कसता जा रहा है. एक तरफ ईडी ताबड़तोड़ आरोपी के ठिकानों पर छापेमारी कर रही है तो वहीं दूसरी ओर कोर्ट ने उसकी जमानत खारिज कर दी है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने उसकी सीबीआई कस्टडी 8 दिनों के लिए बढ़ा दी है. वहीं ईडी पर हमले के 7 अन्य आरोपियों को भी पांच दिन की सीबीआई कस्टडी में भेज दिया गया है.

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ईडी की टीम ने गुरुवार को सुबह-सुबह शाहजहां शेख के ठिकानों पर छापेमारी की. इस दौरान ईडी की टीम केंद्रीय सुरक्षाबल के जवानों के साथ संदेशखाली पहुंची. ईडी ने शाहजहां के ईंट भट्ठे के साथ-साथ धमखाली में उसके ठिकाने पर छापेमारी की. यहां से ईडी ने शेख शाहजहां और उसके करीबियों की 3 लग्जरी कार को सीज किया है. साथ ही कुछ दस्तावेज भी जब्त किए हैं.

बता दें कि ईडी ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल के राशन वितरण घोटाले में करीब 10 हजार करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है. इस मामले में ईडी ने सबसे पहले बंगाल के पूर्व मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक को गिरफ्तार किया था. बाद में टीएमसी नेता शाहजहां शेख और बनगांव नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन शंकर आद्या की भी संलिप्तता सामने आई थी. इसी सिलसिले में 5 जनवरी को ईडी की टीम जब शाहजहां शेख के आवास पर छापा मारने पहुंची तो वहां कुछ लोगों ने ईडी अधिकारियों पर हमला कर दिया था. हमले के बाद शाहजहां शेख फरार हो गया था, जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया. फिलहाल, वह सीबीआई की हिरासत में है.

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क्या है राशन घोटाला?

ED ने खुलासा किया था कि पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) के तहत बांटे जाने वाले राशन का करीब 30 फीसद राशन बेच दिया गया. ED के मुताबिक, राशन को बेचने से जो पैसा आया, उसे मिल के मालिकों और PDS डिस्ट्रीब्यूटर्स के बीच बांट दिया गया. आरोप है कि ये सारा खेल, कुछ सहकारी समितियों की मिली भगत से हुआ. इसके लिए चावल की मिलों के मालिकों ने किसानों के फर्जी खाते खोले. और उनके अनाज के बदले उन्हें दिया जाने वाला तय MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का पैसा अपनी जेबों में भर लिया. जबकि सरकारी एजेंसियां, अनाज को सीधे किसानों से खरीदने वाली थीं.

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