कर्नाटक विधानसभा के लिए मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं, इस बीच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिससे पता चलता है कि विधायक जनता के मुद्दों लेकर को सदन में कितने गंभीर रहे. एडीआर की रिपोर्ट में कर्नाटक विधानसभा के कामकाज को लेकर कई अहम बातें निकलकर सामने आई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2023 के बीच कर्नाटक विधानसभा में प्रति वर्ष केवल 25 दिन ही काम हुआ और फरवरी-मार्च 2022 के दौरान सबसे लंबा सत्र 26 बैठकों का रहा था.
विधायकों (2018-23) के प्रदर्शन का विश्लेषण करने पर यह बात सामने निकलकर आई कि कुल 150 दिनों में से सबसे अधिक जेडीएस विधायक 107 दिन सदन में उपस्थित रहे, जबकि कांग्रेस विधायक सबसे कम 95 दिन उपस्थित रहे.
भाजपा मंत्री सुनील कुमार और कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी के विधायक आर शंकर की उपस्थिति सबसे कम रही जो महज चार दिन ही सदन में उपस्थित रहे. भाजपा विधायक रमेश जरकीहोली की उपस्थिति 10 दिनों की रही और भाजपा विधायक तथा स्वास्थ्य मंत्री डॉ के सुधाकर 150 दिनों में से केवल 15 दिन ही सदन में उपस्थित रहे. बेलूर के विधायक के एस लिंगेश और कलाघाटगी के विधायक चन्नप्पा मल्लप्पा निंबन्नावर ऐसे विधायक रहे जिनकी उपस्थिति 100 फीसदी रही.
एडीआर के अध्यक्ष और संस्थापक सदस्य प्रोफेसर त्रिलोचन शास्त्री ने बताया, 'महज 25 दिनों के सत्र में विधायक लोगों के मुद्दों को कैसे हल कर सकते हैं?' उन्होंने कहा कि अगर यह कॉलेज में खराब उपस्थिति वाले छात्रों के लिए होता,तो उन्हें लिखित परीक्षा में बैठने की अनुमति ही नहीं दी जाती.
शांतिनगर से कांग्रेस के विधायक एन ए हारिस सबसे ज्यादा सवाल (591) पूछने वाले विधायकों की सूची में सबसे ऊपर हैं, इसके बाद कांग्रेस के इंडी विधायक यशवत्रयगौड़ा पाटिल (532) ने सबसे ज्यादा सवाल पूछे हैं. रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि कि पूर्व मुख्यमंत्रियों- सिद्धारमैया, एच डी कुमारस्वामी, बी एस येदियुरप्पा और जगदीश शेट्टार ने विधानसभा में एक भी सवाल नहीं पूछा.
सामान्य प्रशासन और वित्त को लेकर 2,200 से अधिक प्रश्न पूछे गए, जबकि समाज कल्याण श्रेणी में 1,516 प्रश्न पूछे गए. पार्टी-वार औसत प्रश्नों की श्रेणी के तहत, जेडीएस के विधायक 163 प्रश्नों के साथ सूची में शीर्ष पर रहे और भाजपा विधायक 90 प्रश्नों के साथ सबसे निचले पायदान पर रहे. रिपोर्ट में सामने आया कि कुल 214 विधेयकों में से 202 विधेयक पारित किए गए.
'कर्नाटक चुनाव 2023 में मतदाता जागरूकता, धन और बाहुबल' नाम से आयोजित सेमिनार में प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि चुनाव आयोग ने नफरत और सांप्रदायिक भाषणों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. सामाजिक कार्यकर्ता विनय श्रीनिवास ने कहा कि जिनके पास धन बल, जाति प्रभुत्व और बाहुबल है वह चुनाव लड़ रहे हैं.
आपको बता दें कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए एक ही चरण में मतदान 10 मई को होगा और 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे.