सार्वजनिक पदाधिकारी यानी जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को किसी आपराधिक केस पर बेतुकी बयानबाजी करने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दिशानिर्देश बनाने चाहिए? सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई पूरी. संविधान पीठ ने इस पर आदेश सुरक्षित रख लिया है.
साल 2016 में बुलंदशहर गैंगरेप मामले में यूपी के तत्कालीन मंत्री आजम खान की बयानबाजी के बाद इस मामले की शुरुआत हुई थी.
क्या राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर कोई अंकुश लगाया जा सकता है? इस पेचीदा मसले पर जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने सभी पक्षकारों की दलीलें सुनी. इसके बाद इन पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा.
सुनवाई के दौरान दी गई दलीलों में कुछ अहम मुद्दे उठाए गए. सुनवाई में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अभी तक इस पर अलग कानून बनाने का कोई कारण नहीं है. लेकिन आजकल ये मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं. इस पर रोक लगाने वाला कोई कानून नहीं है. सार्वजनिक पदों पर आसीन पदाधिकारियों के लिए अब एक कानून की जरूरत है. अब यह धारणा बन रही है कि इस तरह के आत्म प्रतिबंध धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. इसलिए इस पर गौर करने की जरूरत है, यही इस मामले का उद्देश्य भी है.
क्या है आजम खान से जुड़ा मसला?
यह मामला साल 2016 में बड़ी बेंच को सौंपा गया था. इस मामले में बुलंदशहर की एक रेप पीड़िता के पिता ने रिट पिटीशन दायर की थी. आरोप लगाया गया था कि आजम खान ने इस घटना पर कहा था कि ये एक राजनीतिक साजिश के अलावा और कुछ नहीं है.