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G20: PM मोदी ने कोणार्क चक्र तो राष्ट्रपति मुर्मू ने विदेशी मेहमानों को बताया नालंदा यूनिवर्सिटी का महत्व

राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व के सबसे पुराने प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में से एक नालंदा भारत के उन्नत और शैक्षणिक अनुसंधान का एक जीवंत प्रमाण है. G20 की प्रेसीडेंसी थीम 'वसुधैव कुटुंबकम' के साथ ही सामंजस्यपूर्ण विश्व के निर्माण की प्रतिबद्धता की प्रेरणा यहीं से मिली है.

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G20 के डिनर में वेलकम स्टेज के बैकग्राउंड में नालंदा यूनिवर्सिटी की झलक दिखाई दी
G20 के डिनर में वेलकम स्टेज के बैकग्राउंड में नालंदा यूनिवर्सिटी की झलक दिखाई दी

G20 समिट का पहला दिन सफलतापूर्वक संपन्न होन चुका है. दिनभर चले बैठकों के दौर के बाद भारत मंडपम में राष्ट्रपति की ओर से डिनर का आयोजन किया गया. इस दौरान वेलकम स्टेज के बैकग्राउंड में नालंदा यूनिवर्सिटी की झलक दिखाई दी. इसके बाद राष्ट्रपति मुर्मू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सहित G20 के नेताओं को नालंदा यूनिवर्सिटी के महत्व के बारे में समझाया. उन्होंने कहा कि आधुनिक बिहार में पड़ने वाला यह विश्वविद्यालय 5वीं सदी से 12वीं सदी के बीच अस्तित्व में था. इसकी विरासत महावीर और बुद्ध के युग से चली आ रही है, जो ज्ञान के प्रसार में प्राचीन भारत की प्रगति को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि इसमें विविधता, योग्यता, विचारों की स्वतंत्रता, सामूहिक शासन, स्वायत्तता और ज्ञान की परंपरा पर बल रहा है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धातों के अनुरूप है. 

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राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व के सबसे पुराने प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में से एक नालंदा भारत के उन्नत और शैक्षणिक अनुसंधान का एक जीवंत प्रमाण है. G20 की प्रेसीडेंसी थीम 'वसुधैव कुटुंबकम' के साथ ही सामंजस्यपूर्ण विश्व के निर्माण की प्रतिबद्धता की प्रेरणा यहीं से मिली है.

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि यह बताता है कि ज्ञान और बौद्धिकता के प्रसार में प्राचीन भारत कितना आगे था. नालंदा की विरासत हमें उस समृद्ध लोकतंत्र की निरंतर याद दिलाती रहती है, जो न सिर्फ हमारे देश के अतीत का अभिन्न अंग रही है, बल्कि वर्तमान और भविष्य को भी आकार देती रही है. 

क्या है कोणार्क चक्र की खासियत?

वहीं दिन में हुए सत्र से पहले पीएम मोदी ने विदेशी मेहमानों का स्वागत किया. इस दौरान वेलकम स्टेज के बैकग्राउंड में कोणार्क के मंदिर की झलक दिखाई दी. कोणार्क चक्र को 13वीं सदी में राजा नरसिंहदेव-प्रथम के शासन में बनाया गया था. 24 तीलियों वाले चक्र को भारत के राष्ट्रीय झंडे में भी इस्तेमाल किया गया है. कोणार्क चक्र लगातार बढ़ते समय की गति, कालचक्र के साथ-साथ प्रगति और निरंतर परिवर्तन का प्रतीक है. यह लोकतंत्र के पहिये के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में कार्य करता है.

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वहीं सात घोड़े यानी हफ्ते के सात दिन. 12 पहिये यानी साल के बारह महीने. जबकि इनका जोड़ा यानी 24 पहिए मतलब दिन का 24 घंटा. इसके अलावा 8 मोटी तीलियां 8 प्रहर यानी हर तीन घंटे के समय को दर्शाती हैं. असल में इन पहियों को जीवन का पहिया (Wheel of Life) कहा जाता है. इसमें यह भी पता चलता है कि सूर्य कब उगेगा, कब अस्त होगा. इस पहिए को 13वीं सदी में राजा नरसिम्हादेव-प्रथम ने बनवाया था.

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