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अब तक का सबसे सफल समिट बना दिल्ली में हो रहा G20, पढ़ें- पहले दिन की खास बातें

G20 समिट के पहले दिन भारत मंडपम एक एतिहासिक कार्यक्रम का गवाह बना. जहां से दुनिया को शांति और तरक्की का संदेश दिया गया. दिन भर बैठकों का दौर जारी रहा.. दो सत्र में जी-20 का ये कार्यक्रम हुआ, जिसमें हिंदुस्तान की तरक्की और ताकत की झलक देखने को मिली. भारत ने ऐहसास कराया कि ये 21वी सदी उसकी है, जिसमें ये जी-20 का शिखर सम्मेलन एक बड़ा नींव का पत्थर साबित होने वाला है.

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G20 समिट के पहले दिन भारत ने कई इतिहास रच दिए हैं
G20 समिट के पहले दिन भारत ने कई इतिहास रच दिए हैं

विश्वमंथन के सबसे बड़े मंच जी-20 की बैठक के पहले दिन ही दिल्ली घोषणा पत्र पर सहमति बनने से इतिहास रच गया है. इस बार का G-20 समिट, अब तक का सबसे सफल समिट भी बन गया है. इसमें पिछले समिट की तुलना में सबसे ज्यादा काम हुआ है. भारत में हो रहे समिट के पहले दिन कुल 73 मुद्दों पर चर्चा के बाद सहमति बनी, जबकि पिछले साल इसी समिट में सिर्फ 27 मुद्दों पर ही सहमति बन पाई थी. 2021 में 36, 2020 में 22, 2019 में 13, 2018 में 12 और 2017 में जब जर्मनी में G-20 का समिट हुआ था, तब सिर्फ 8 मुद्दों पर ही चर्चा के बाद सहमति बनी थी. लेकिन भारत ने इस बार के समिट में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 73 मुद्दों पर चर्चा की और इस पर सभी देशों के राष्ट्र अध्यक्षों और नेताओं के बीच इन पर सहमति भी बना ली. 

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इस बार का G-20 समिट इसलिए भी ऐतिहासिक और खास बन गया है, क्योंकि अब ये G-20 से G-21 हो गया है. भारत की पहल पर African Union यानी अफ्रीकी देशों का संघ, G-20 का स्थाई सदस्य बन गया है. अफ्रीकी देश इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी का दिलखोल कर धन्यवाद दे रहे हैं. जी20 के पहले दिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने ये ऐलान किया कि अफ्रीकन यूनियन को G-20 का स्थाई सदस्य बनाने पर सहमति बन गई है और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस संघ के अध्यक्ष, जो कि अफ्रीकी देश 'कॉमरॉस' के राष्ट्रपति भी हैं, उन्हें बधाई देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो उन्होंने प्रधानमंत्री से हाथ मिलाने के बजाय उन्हें सीधे गले लगा लिया. इस कदम को भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है.

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पीएम ने अफ्रीका को दी गारंटी पूरी की

दरअसल, पिछले साल बाली में हुए G-20 समिट के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात अफ्रीकी देश Senegal के राष्ट्रपति से हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि अफ्रीकन यूनियन को इस संगठन में सदस्यता मिल पाएगी. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कहा था कि ऐसा होकर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है. और अब ऐसा ही हुआ.

अफ्रीकी यूनियन को भी मिला बड़ा मंच

बता दें कि में अफ्रीकी यूनियन 55 देशों का समूह है, जिसमें दुनिया की लगभग 14 पर्सेंट आबादी रहती है. हालांकि इनमें से ज्यादातर अफ्रीकी देश गरीब हैं, इसलिए विश्व जीडीपी में इन देशों की हिस्सेदारी सिर्फ तीन पर्सेंट है. लेकिन अब G-20 का स्थाई सदस्य बनने के बाद अफ्रीका के गरीब देशों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जिसमें वो भी अमेरिका और यूरोप के देशों के साथ एक मंच पर बराबरी के साथ बैठ कर अपनी मांगों को लेकर चर्चा कर पाएंगे. इससे अफ्रीकी देशों को कई रूप से लाभ पहुंचेगा और इसके लिए वो भारत के प्रयासों को भी कभी नहीं भूलेंगे. वहीं दूसरी तरफ भारत को भी इससे काफी फायदा होगा. 

अफ्रीका के जी20 में शामिल होने से भारत को मिलेगा फायदा

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अभी अफ्रीका के गरीब देशों पर या तो पश्चिमी देशों का प्रभाव रहा है या अब चीन इन देशों को कर्ज देकर उन्हें एक Shark की तरह निगलने की कोशिश कर रहा है. लेकिन भारत इन देशों के लिए एक ऐसा मित्र बन सकता है, जिस पर ये आंखें बंद करके विश्वास कर सकते हैं. कोविड के समय में जब पश्चिमी देशों की कंपनियां, अफ्रीका के गरीब देशों को कई तरह की शर्तों में उलझाकर उन्हें वैक्सीन देने के लिए उनसे एग्रीमेंट साइन करवा रही थीं, तब भारत ने अफ्रीका के 42 देशों को One Earth, One Health के तहत भारत में बनी वैक्सीन भेजी गई थीं. साथ ही भारत इन देशों में पांच सबसे बड़े निवेशकों में से भी एक है. इसलिए अफ्रीकन यूनियन का इस संगठन में शामिल होना, बहुत बड़ी उपलब्धि है. और अब ये G-20, G-21 बन गया है.

जी20 में INDIA की जगह BHARAT नाम का इस्तेमाल

पहली बार ऐसा हुआ, जब G-20 के मंच पर देश का नाम इंडिया नहीं बल्कि भारत लिखा गया. इससे पहले G-20 या ऐसे जितने भी अंतर्राष्ट्रीय समिट होते थे, उनमें देश के लिए इंडिया नाम का इस्तेमाल होता था. पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जब प्रधानमंत्री मोदी G-20 के समिट में शामिल हुए थे, तब उनके सामने INDIA ही लिखा गया था. लेकिन अब जब हमारा देश इस समिट की अध्यक्षता भारत के उस नाम से कर रहा था, जो किसी अंग्रेज ने हमें नहीं दिया है, बल्कि हम अपने मूल नाम और अपनी मूल पहचान से इस समिट में हिस्सा ले रहे हैं.

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भारत का नमस्कार अब ग्लोबल हो गया

वहीं भारत ने दुनिया के बड़े बड़े नेताओं और प्रतिनिधियों को Hello छोड़ कर, नमस्ते करना भी सिखा दिया. शनिवार सुबह जब प्रधानमंत्री मोदी ने G-20 के राष्ट्र अध्यक्षों और बाकी प्रतिनिधियों का स्वागत किया, तब ये मेहमान, Hello नहीं बल्कि 'नमस्ते भारत' कह रहे थे. IMF की मैनेजिंग डायरेक्टर से लेकर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन की डायरेक्टर जनरल और मिस्र, सिंगापुर, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, इंडोनेशिया और यूरोपीय यूनियन की काउंसिल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री मोदी को नमस्ते कहा. इसी के साथ अब हमारे ये नमस्ते भी ग्लोबल हो गया है.

भारत मध्य पूर्व यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर भी लॉन्च

जी20 समिट के पहले दिन भारत मध्य पूर्व यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर भी लॉन्च हुआ. इस लॉन्च इवेंट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ईटली की प्रधानमंत्री जॉर्जियो मेलोनी व अन्य नेता मौजूद रहे. इन्फ्रा डील से शिपिंग समय और लागत कम हो जाएगी, जिससे व्यापार सस्ता और तेज हो जाएगा. इसे चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसने पाकिस्तान, केन्या, जाम्बिया, लाओस और मंगोलिया जैसे कई विकासशील देशों को भारी कर्ज में डाल दिया है. इस योजना का लक्ष्य संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल से होते हुए भारत से यूरोप तक फैले रेलवे मार्गों और बंदरगाह लिंकेज को एकीकृत करना है. रेल लिंक से भारत और यूरोप के बीच व्यापार लगभग 40 प्रतिशत तेज हो जाएगा.

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ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस भी लॉन्च

समिट के पहले दिन ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस भी लॉन्च किया गया है. पीएम मोदी ने 'वन अर्थ' पर G20 शिखर सम्मेलन सत्र में पर्यावरण और जलवायु अवलोकन के लिए G20 सैटेलाइट मिशन शुरू करने का भी प्रस्ताव रखा और नेताओं से ग्रीन क्रेडिट पहल पर काम शुरू करने का आग्रह किया. ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस बनाने का उद्देश्य टिकाऊ बायोफ्यूल का इस्तेमाल बढ़ाना है. साथ ही इसका मकसद बायोफ्यूल मार्केट को मजबूत करना, ग्लोबल बायोफ्यूल कारोबार को सुविधाजनक बनाना, तकनीकी सहायता प्रदान करने पर जोर देना है. बायोफ्यूल का मतलब पेड़-पौधों, अनाज, शैवाल, भूसी और फूड वेस्ट से बनने वाला ईंधन है. बायोफ्यूल्स को कई तरह के मायोमास से निकाला जाता है. इसमें कार्बन की कम मात्रा होती है. अगर इसका इस्तेमाल बढ़ेगा तो दुनिया में पारंपरिक ईंधन पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी और पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा.

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