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गौरी लंकेश हत्याकांड के आरोपी को कर्नाटक हाईकोर्ट ने दी जमानत, ये है वजह

जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की एकल पीठ ने आरोपी को जमानत देने का आदेश दिया. नायक को एक लाख रुपये के निजी बॉन्ड और समान राशि के दो मुचलके भरने को कहा है और निचली अदालत के समक्ष पेश होने को कहा है. 

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गौरी लंकेश
गौरी लंकेश

कर्नाटक हाईकोर्ट ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के आरोपी मोहन नायक को जमानत दे दी है. इस मामले में जमानत पाने वाले नायक पहले आरोपी हैं.

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जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की एकल पीठ ने आरोपी को जमानत देने का आदेश दिया. नायक को एक लाख रुपये के निजी बॉन्ड और समान राशि के दो मुचलके पर जमानत दी गई है. 

हाईकोर्ट का कहना है कि आरोपी 18 जुलाई 2018 से हिरासत में है. वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर गवाहों को प्रभावित नहीं कर सकता. बता दें कि आरोपी बीते पांच साल से पुलिस कस्टडी में था. उसने सुनवाई में देरी होने के आधार पर जमानत के लिए आवेदन किया था और इसी आधार पर आरोपी को जमानत दे दी गई.

गौरी लंकेश की ऐसे हुई थी हत्या

5 सितंबर 2017 को गौरी लंकेश को बेंगलुरु में उस वक्त मौत के घाट उतार दिया गया था, जब वे जब राज राजेश्वरी नगर स्थित अपने घर लौटकर दरवाज़ा खोल रही थीं. ठीक उसी वक्त हमलावरों ने उन पर गोलियां बरसाई थीं. उनके सीने में दो और सिर पर एक गोली लगी थी. गोली लगने से मौका-ए-वारदात पर ही गौरी लंकेश की मौत हो गई थी. बेंगलुरु के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सुनील कुमार ने मीडिया को बताया था कि 5 सितंबर की शाम गौरी जब अपने घर लौटी, तब उनके घर के बाहर ये हमला हुआ था." गौरी के हत्या पर देश के पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने खासा रोष जताया था. दिल्ली में प्रेस क्लब और जंतर-मंतर पर इस हत्याकांड के विरोध में शांतिपूर्वक धरना भी आयोजित किया गया था.

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कौन थीं गौरी लंकेश

गौरी का जन्म 29 जनवरी 1962 को कर्नाटक के एक लिंगायत परिवार में हुआ था. उनके पिता पी. लंकेश कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक, कवि एवं पत्रकार थे. वे पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता भी थे. 1980 में उन्होंने लंकेश नामक कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत की थी. उनकी तीन संतानें थी- गौरी, कविता और इंद्रजीत. कविता ने फिल्म को पेशे के रूप में अपनाया और कई पुरस्कार जीते. गौरी ने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाने का निश्चय किया. पत्रकार के रूप में उनके पेशेवर जीवन की शुरुआत बेंगलुरू में 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से हुई. चिदानंद राजघट्ट से विवाह करने के बाद वे कुछ दिन दिल्ली रहीं. इसके बाद पुनः बेंगलूरू लौटकर उन्होंने 9 सालों तक 'संडे' मैग्जीन में संवाददाता के रूप में काम किया. उनकी अंग्रेजी और कन्नड़ भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. उन्होंने बेंगलूरू में रहकर मुख्यतः कन्नड़ में पत्रकारिता करने का निर्णय किया.

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