
धारीदार टीन की चद्दरों से बनी छत. बिना पलस्तर की दीवारें. संकरी गलियां और उन गलियों में एक-दूसरे को टक्कर मारते हुए निकलते लोग. ये कहानी है धारावी की. वही धारावी जिसे मुंबई का 'दिल' और 'छोटा इंडिया' भी कहा जाता है. ये बस्ती मुंबई की ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच बसी हुई है. अगर आप मुंबई में हैं और कम खर्च में सिर पर छत चाहते हैं तो धारावी सबसे अच्छा ठिकाना है. यहां लाखों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारी रहते हैं. यहां न तो शिक्षा का स्तर अच्छा है और न ही साफ-सफाई.
अब इसी धारावी का कायाकल्प होने वाला है. इसका काम अडानी इंफ्रा करेगी. अडानी इंफ्रा ने 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी. डीएलएफ कंपनी ने 2,025 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी. जबकि, तीसरी कंपनी नमन ग्रुप को डिसक्वालिफाई कर दिया गया. धारावी के रिडेवलपमेंट का प्लान 2004 से चल रहा था, लेकिन अब जाकर इसका टेंडर मंजूर हुआ है.
धारावी... मुंबई का दिल
धारावी को मुंबई का दिल भी कहा जाता है. अंग्रजों के काल में बसी ये बस्ती आज एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बस्ती है.
धारावी में कितने लोग रहते हैं? इसका सटीक आंकड़ा नहीं है. लेकिन अनुमान है कि यहां 6 से 10 लाख लोग रहते हैं. धारावी में 58 हजार परिवार और करीब 12 हजार कमर्शियल कॉम्प्लेक्स हैं.
1882 में अंग्रेजों ने धारावी को बसाया था. इसे बसाने का मकसद ये था कि मजदूरों को किफायती ठिकाना दिया जा सके. धीरे-धीरे यहां लोग बसने लगे और झुग्गी-बस्तियां बन गईं. धारावी की जमीन तो सरकारी है, लेकिन यहां लोगों ने अपने खर्चे से झुग्गी-बस्ती बनाई है.
यहां इतनी झुग्गी-बस्तियां हैं कि दूर से देखने पर जमीन दिखाई ही नहीं पड़ती. 550 एकड़ में फैली धारावी में एक किलोमीटर के दायरे में 2 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कितनी घनी आबादी है.
धारावी में 100 वर्ग फीट की छोटी सी झुग्गी में 8 से 10 लोग एकसाथ रहते हैं. कुछ झुग्गियां तो ऐसी भी बनी हैं, जिनमें कारखाने भी हैं और घर भी. लगभग 80 फीसदी लोग पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं.
'जिद्दी' लोगों की बस्ती है धारावी
धारावी की पहचान झुग्गी-बस्ती की है. ये सच भी है. लेकिन असल में ये जिद्दी लोगों की बस्ती है. यहां की तंग गलियों में दिहाड़ी मजदूर भी रहते हैं और वो भी जो अपना कारोबार करते हैं. माहिम और सायन धारावी के दोनों ओर बने रेलवे स्टेशन हैं. यहीं से हर रोज लाखों लोग धारावी आते-जाते हैं. यहां इतनी भीड़ है न कि इसमें घुसने के लिए साहस और हौसला चाहिए.
मुंबई की तरह ही धारावी भी काम के पीछे भागने वाले लोगों की बस्ती है. फर्क इतना है कि मुंबई शहर में रहने वाले लोग फ्लैट और अच्छे घरों में रहते हैं और धारावी में रहने वाले तंग, छोटे और गंदी बस्तियों में. लेकिन ये जिद्दी लोगों की बस्ती है, जो कभी थमती नहीं है.
'स्लमडॉग' की बस्ती...
2008 में फिल्म आई थी 'स्लमडॉग मिलियनियर'. इस फिल्म की शूटिंग धारावी में ही हुई थी. फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे इस झुग्गी-बस्ती में रहने वाला एक लड़का करोड़पति बन जाता है.
ये बस्ती ऐसे ही 'स्लमडॉग' की है. यहां हर चौथे घर में कोई एंटरप्रेन्योर मिल जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक, यहां 22 हजार से ज्यादा छोटे-छोटे कारोबारी हैं.
बस्ती में चमड़े की चीजें, गहने और मिट्टी के सजावटी बर्तन तैयार किए जाते हैं. इस बस्ती में बनी चीजें फिर देश-विदेशों में बिकने जातीं हैं.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन झुग्गी-बस्तियों में 5 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड कारोबारी हैं. जबकि, 15 हजार से ज्यादा कारखाने तो एक-एक कमरे में बने हुए हैं. यहां की रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री ही 2.5 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी जुड़े हैं.
ऐसा माना जाता है कि धारावी की एक-एक इंच जमीन भी किसी न किसी प्रोडक्टिव काम के लिए इस्तेमाल होती है. एक अनुमान के मुताबिक, धारावी में हर साल 1 अरब डॉलर यानी लगभग 80 अरब रुपये का कारोबार होता है.
महामारिया आईं... लेकिन धारावी बना रहा
धारावी में इतनी ज्यादा भीड़ है न कि यहां गंदगी अक्सर बनी ही रहती है. यही वजह है कि यहां बीमारियां भी काफी तेजी से फैलती हैं.
1896 में जब दुनियाभर में प्लेग फैला था, तो उसका असर धारावी पर भी पड़ा था, क्योंकि यहां उस वक्त भी बहुत बड़ी संख्या में लोग रहते थे. प्लेग खत्म होने के बाद भी अगले 25 सालों तक धारावी में लोगों को अलग-अलग तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ा था.
1986 में जब हैजा फैला तो उसका असर भी सबसे ज्यादा धारावी पर ही हुआ. माना जाता है कि उस समय मुंबई के अस्पतालों में भर्ती होने वाले ज्यादातर लोग धारावी के ही थे.
अप्रैल 2020 में धारावी में कोरोना का पहला मामला सामने आया था. उसके बाद तो यहां कोरोना बम फूट गया था. आए दिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी. सबसे बड़ी समस्या ये थी कि तंग गलियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करवाया जाए. लेकिन धारावी ने कोरोना से लड़ाई लड़ी और जीती.
अब पूरी तरह बदल जाएगी धारावी
1999 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन की सरकार थी, तब पहली बार धारावी को रिडेवलप करने का प्रस्ताव रखा गया. इसके बाद 2003-04 में महाराष्ट्र सरकार धारावी का रिडेवलपमेंट प्लान लेकर आई.
सरकार चाहती है कि धारावी की गिनती सबसे बड़ी झुग्गी-बस्तियों में न हो, बल्कि इसे सबसे अच्छी बस्ती के नाम से पहचाना जाए. यहां झोपड़ियों की जगह घर बनाए जाएं और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स भी.
धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट 20 हजार करोड़ रुपये का है और इसके 17 साल में पूरा होने की उम्मीद है. जबकि यहां रहने वाले लोगों को 7 साल में पक्के घरों में बसाने का टारगेट है. इस पूरे प्रोजेक्ट में 1 करोड़ वर्ग फीट से ज्यादा की जमीन आएगी.
इस प्रोजेक्ट के तहत, जो लोग 1 जनवरी 2000 से पहले से धारावी में रह रहे होंगे उन्हें फ्री में पक्का मकान दिया जाएगा. जबकि, जो लोग 2000 से 2011 के बीच आकर यहां बसे होंगे, उन्हें इसके लिए कीमत चुकानी होगी.