भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश की गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की है. इसको लेकर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा है. इस पर बीजेपी ने पलटवार किया है.
जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया है, जो इस साल अपना अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल ने इस प्रेस को लेकर 2015 में एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी लिखी है, जिसमें उन्होंने महात्मा के साथ इस प्रेस के संबंध, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर चल रहे संघर्ष का जिक्र किया है. गीता प्रेस को पुरस्कार देने का फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर-गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.
कांग्रेस के बयान पर बीजेपी का पलटवार
वहीं इस पर पलटवार करते हुए दिल्ली में बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि गीता प्रेस की वजह से रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण जैसे ग्रंथ घर-घर पहुंचे इसलिए उसका समर्थन कांग्रेस कैसे कर सकती है. बीजेपी सांसद ने कहा, "कांग्रेस को तो राम के नाम से ही चिढ़ है. जिनके समय में राम टेंट में रहे हों तो उनसे हम और अपेक्षा क्या कर सकते हैं. गीता प्रेस कौन है जिनके कारण तुलसीदास की रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण को आज घर-घर में किसने पहुंचाया. जिसने धर्म को घर-घर तक पहुंचाया, अधर्म के रास्ते पर नहीं चलना सिखाया, उसका कांग्रेस कैसे समर्थन कर सकती है?"
सावरकर का विरोध क्यों करती है कांग्रेस?- मनोज तिवारी
मनोज तिवारी ने आगे कहा, "गीता प्रेस का एक श्लोक है कि नर को नारायण समझकर सेवा करो, लेकिन कांग्रेस ने खुद को नारायण समझ लिया है. ये कांग्रेस का एक घृणित विचार है. कांग्रेस ने जाने-अनजाने सावरकर साहब को परिभाषित कर दिया. आज लोगों को समझ जाना चाहिए कि कांग्रेस सावरकर का विरोध क्यों करती रही और उनके खिलाफ राहुल गांधी मुखर क्यों रहते हैं?"
पुरस्कार की धनराशि नहीं लेगा गीता प्रेस
गीता प्रेस गोरखपुर को लागत से कम मूल्य में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है. ऐसा बीते 100 साल से होता आ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस गोरखपुर का चयन किया गया है, लेकिन गीता प्रेस अपनी परंपरा के मुताबिक, किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करता है. हालांकि गीता प्रेस के बोर्ड की बैठक में फैसला लिया गया है कि सरकार का सम्मान रखने के लिए पुरस्कार के साथ मिलने वाली धनराशि को छोड़कर प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति स्वीकार करेंगे.
(इनपुट- सुशांत मेहरा)