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गिलगित-बाल्टिस्तान पर भारत के तेवर सख्त, जानें सामरिक दृष्टि से क्यों है अहम?

सिंधु नदी को अपने दामन में समेटे इस इलाके को उत्तरी क्षेत्र यानी नार्दन एरियाज कहा जाता था. गिलगित-बाल्टिस्तान कश्मीर प्रांत के तहत आता है, इसलिए ये पूर्ण रुप से भारत का हिस्सा है. गिलगित-बाल्टिस्तान करीब 73 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, जहां करीब 10 लाख से ज्यादा की आबादी रहती है.

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Gilgit-Baltistan is an integral part of Kashmir
Gilgit-Baltistan is an integral part of Kashmir
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है गिलगित-बाल्टिस्तान
  • अफगानिस्तान और चीन का बॉर्डर है गिलगित-बाल्टिस्तान
  • यहीं से पाकिस्तान के अंदर जाता है चीन का आर्थिक कॉरिडोर

किसी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले लोग अक्सर अपने अपराध को जायज दिखाने के लिए उस पर बागवानी शुरू कर देते हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान में भी पाकिस्तान ऐसा ही कर रहा है. पाकिस्तान. गिलगित बाल्टिस्तान को अपना प्रांत बताकर वहां कूटनीति के फूल खिलाना चाहता है. लेकिन भारत इस कुटिल नीति को कामयाब नहीं होने देगा. भारत ने साफ साफ कह दिया है कि इमरान खान ने गिलगित बाल्टिस्तान को प्रांत बनाने और उसका दर्जा बदलने की जो कोशिश की है वो भारत को मंजूर नहीं है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी दो टूक शब्दों में कहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पूरा पीओके भारत का अभिन्न अंग है. 

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इमरान के इस फैसले के पीछे कई कारण हो सकते हैं. लेकिन सबसे सटीक लगता है कि पाकिस्तान में इमरान खान और बाजवा फिलवक्त चौतरफा घिरे हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम सूबा बनाने के ऐलान से इमरान-बाजवा एंड कंपनी को बचने का रास्ता दिख रहा होगा. बता दें कि गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां सूबा बनाने का पाकिस्तान का पुराना प्लान रहा है. लेकिन पाकिस्तान चाहकर भी ये कभी कर नहीं पाया. क्योंकि इंटरनेशनल मंच पर वो कश्मीर के पूरे इलाके को विवादित बताता है और भारत के इस अभिन्न हिस्से को भारत से अलग मानता है. 

इस कदम से पाकिस्तान को ही होगा नुकसान

गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम सूबा बनाने से गिलगित-बाल्टिस्तान के साथ पूरे पीओके पर पाकिस्तान का इंटरनेशनल एजेंडा ध्वस्त हो जाएगा. पाकिस्तान अब अपने बिछाए जाल में फंस जाएगा. क्योंकि कश्मीर पर कुछ बोलने से पहले अब उसे गिलगित-बाल्टिस्तान पर जवाब देना होगा. वहीं दूसरी ओर भारत ने दो टूक कह दिया है कि गिलगित भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसमें कोई बदलाव मंजूर नहीं. इसके साथ ही भारत ने कहा है कि पाकिस्तान पीओके तुरंत खाली करे.

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ऐसी है वहां की कहानी

पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान पर अवैध कब्जा किया था. इसलिए कभी इसका राजनैतिक और कानूनी स्टेटस क्लियर नहीं किया. 1947 में अवैध कब्जे के करीब 23 साल बाद गिलगित-बाल्टिस्तान के लिए पाकिस्तान ने अलग प्रशासन बनाया. और 62 साल बाद 2009 में इसे सीमित स्वायत्ता दी गई. गिलगित-बाल्टिस्तान में कहने के लिए अलग विधानसभा है, अलग मुख्यमंत्री होता है लेकिन असली पावर इस्लामाबाद में होती है. वहां से ही गिलगित-बाल्टिस्तान को चलाने वाले सेलेक्ट किए जाते हैं. और इसमें पाकिस्तान सेना के जनरलों की ही बात चलती है.

गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान ऐसी चालें क्यों चल रहा है?

- गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा है
- इस पर 1947 में पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया था
- 73 हजार वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में करीब 20 लाख लोग रहते हैं
- इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है, इसकी सीमाएं उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से जुड़ती हैं.
- अपने इसी भूगोल की वजह से ये इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है
- अफगानिस्तान और चीन का बॉर्डर होने से ये इलाका रणनीतिक रूप से अहम है
- इस इलाके से ही होकर पाकिस्तान के अंदर चीन का आर्थिक कॉरिडोर जाता है

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ये हो सकती हैं वजहें

पाकिस्तान का संविधान गिलगित-बाल्टिस्तान या पीओके को पाकिस्तान में मिलाने की इजाजत नहीं देता. इसके बावजूद अगर इमरान खान और जनरल बाजवा अचानक गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम सूबा बनाने का स्टंट कर रहे हैं तो इसके पीछे कई वजह हैं.

पहली वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान में इसी नवंबर में स्थानीय चुनाव होने वाले हैं
दूसरी वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान सहित पीओके की आवाज दबाने की कोशिश है
तीसरी वजह- इमरान सरकार और पाकिस्तानी सेना पर उठे सवालों से बचने की कोशिश है
चौथी वजह- इमरान और जनरल बाजवा की लड़खड़ाती कुर्सी को संभालने की कोशिश है
पांचवीं वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान के स्टेटस को लेकर चीन की तरफ से आया दबाव है

चीन भी हो सकता है परदे के पीछे

गिलगित-बाल्टिस्तान पर फैसले की एक बड़ी वजह चीन भी हो सकता है. चीन ने इस इलाके में अरबों डॉलर लगाए हैं. लेकिन भारत के कड़े रवैये से चीन अपने इस निवेश पर परेशान है. इसीलिए वो पाकिस्तान से गिलगित-बाल्टिस्तान का स्टेटस क्लियर करने को कह रहा है. बहुत मुमकिन है कि चीन के दबाव में ही इमरान और बाजवा ने गिलगित-बालिस्तान को अपना अंतरिम सूबा बनाने का ऐलान किया हो.

कश्मीर का ही हिस्सा है वो इलाका

सिंधु नदी को अपने दामन में समेटे इस इलाके को उत्तरी क्षेत्र यानी नार्दन एरियाज कहा जाता था. गिलगित-बाल्टिस्तान कश्मीर प्रांत के तहत आता है, इसलिए ये पूर्ण रुप से भारत का हिस्सा है. जम्मू-कश्मीर का पूरा इलाका 2 लाख 22 हजार 236 वर्ग किलोमीटर का है. जिसमें से 1 लाख 21 हजार वर्ग किलोमीटर पाकिस्तान और चीन के कब्जे में है. गिलगित-बाल्टिस्तान करीब 73 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, जहां करीब 10 लाख से ज्यादा की आबादी रहती है.

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गिलगित-बाल्टिस्तान दो बार स्वतंत्रता दिवस मनाता है. एक 14 अगस्त को, जब पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है दूसरा एक नवंबर को जब इलाका 1947 में हासिल की गई अपनी आजादी को याद करता है. ये आजादी महज 21 दिन तक टिक पाई थी. तब से आज तक पाकिस्तान का रुख इस इलाके की संप्रभुता और संवैधानिक स्थिति को लेकर स्पष्ट नहीं है.

ये है विवाद की जड़

1947 में भारत विभाजन के समय ये क्षेत्र, जम्मू कश्मीर की तरह न भारत का हिस्सा रहा और न ही पाकिस्तान का. डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ लीज डीड को 1 अगस्त 1947 को रद्द करते हुए क्षेत्र पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया लेकिन, महाराजा हरि सिंह को गिलिगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान के विद्रोह का सामना करना पड़ा. खान ने 2 नवंबर 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी का ऐलान किया. इससे पहले हरि सिंह इस रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दे चुके थे. 21 दिन बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र में दाखिल हुआ और सैन्य बल का प्रयोग करके इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.

पाकिस्तानी सरकार ने यूं की जबरदस्ती

27 अप्रैल 1949 तक गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा माना जाता था. लेकिन 28 अप्रैल 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीन कर दिया गया. इसे कराची समझौते के नाम से जाना जाता है. बड़ी बात ये है कि क्षेत्र का कोई भी नेता इस समझौते में शामिल नहीं था. ये एक तरह की राजनीतिक जबरदस्ती थी. इस तरह 28 अप्रैल 1949 से गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान सरकार का सीधा नियंत्रण है.

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पाकिस्तान ने बाद में गिलगित-बाल्टिस्तान के उत्तर में मौजूद एक इलाके को कारकोरम राजमार्ग के निर्माण के लिए चीन को 'गिफ्ट' कर दिया. चीन ने इस इलाके के खनिजों और संसाधनों के दोहन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किए हुए हैं. इस क्षेत्र में चीन की पहुंच और पाकिस्तान के अवैध शासन ने वहां पर अलगाववादी आंदोलन को भी जन्म दिया.

इस क्षेत्र के लोग तीन हजार किलोमीटर लंबे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपेक का विरोध कर रहे हैं. इस परियोजना में चीन ने 46 अरब डॉलर का निवेश किया है. चीन का प्लान ये है कि दक्षिण पाकिस्तान को सड़क, रेलवे और पाइपलाइन के एक जाल के जरिए पश्चिमी चीन से जोड़ दिया जाए. चीन अपनी इस नीति के जरिए पूरे क्षेत्र पर कंट्रोल कर लेना चाहता है.

 

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