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दिल्ली के लुटियंस जोन मेंं सांसदों को बंगला मिलने के क्या नियम हैं, कब खाली करना होता है?

नेताओं के सरकारी बंगलों को खाली कराने पर अक्सर विवाद होता रहा है. लोकसभा सांसद चिराग पासवान से भी सरकारी बंगला खाली करवा लिया गया है. वहीं, पूर्व सांसद शरद यादव को सुप्रीम कोर्ट से 31 मई तक बंगला खाली करने की मोहलत मिली है.

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टाइप VIII बंगलों सबसे उच्च श्रेणी के बंगले हैं. (फाइल फोटो)
टाइप VIII बंगलों सबसे उच्च श्रेणी के बंगले हैं. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सांसद नहीं तो 15 दिन में खाली करना होता है घर
  • सरकारी बंगलों के आवंटन का काम DOE देखता है

लोकसभा सांसद चिराग पासवान ने सरकारी बंगला खाली कर दिया है. ये बंगला उनके दिवंगत पिता और केंद्रीय मंत्री रहे रामविला पासवान को आवंटित किया गया था. अक्टूबर 2020 में रामविलास पासवान का निधन हो गया था. उनके निधन के बाद चिराग पासवान इस बंगले में रह रहे थे. उनसे सरकार ने अब बंगला खाली करवा लिया है. 

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चिराग पासवान से जो बंगला खाली करवाया गया है, वो लुटियंस दिल्ली के जनपथ इलाके में स्थित है. ये बंगला रामविलास पासवान को 1990 में अलॉट किया गया था. चिराग का कहना है कि उनके पिता के निधन के बाद उनके परिवार को इस बंगले में रहने की इजाजत मिली थी. चिराग ने ये भी कहा कि उनका मकसद इस बंगले में हमेशा के लिए रहने का नहीं था, लेकिन जिस तरह से उनसे ये बंगला खाली करवाया गया, वो तरीका सही नहीं था.

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, अधिकारियों ने कई बार चिराग को ये बंगला खाली करने का नोटिस दिया था. ये बंगला पिछले साल अगस्त में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को अलॉट किया गया था.

चिराग की तरह ही राज्यसभा के पूर्व सांसद शरद यादव को भी 31 मई तक सरकारी बंगला खाली करना होगा. सरकार तो चाहती थी कि शरद यादव अभी घर खाली कर दें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 31 मई तक की डेडलाइन दे दी है. 2017 में शरद यादव को राज्यसभा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था. 

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नेताओं से सरकारी बंगलों को खाली करवाने पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं. राजनीतिक पार्टियां इसे बदले की कार्रवाई बताती हैं. नियम तो ये है कि सांसद के पद से हटने के 15 दिन बाद आपको सरकारी बंगला खाली करना होता है. वरना जुर्माना लगता है. 

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लेकिन सवाल ये कि सरकारी आवास बंटते कैसे हैं?

- सरकारी आवासों के आवंटन, रख-रखाव और किराये का काम डायरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट (DOE) देखता है. इस विभाग को 1922 में बनाया गया था. ये विभाग मिनिस्ट्री ऑफ अर्बन एंड हाउसिंग अफेयर्स के तहत आता है. सांसदों और मंत्रियों को जो दिल्ली में सरकारी आवास बांटे जाते हैं, वो लुटियंस जोन में हैं.

- दिल्ली में सरकारी आवास आवंटित करने के लिए अलॉटमेंट ऑफ गवर्नमेंट रेसिडेंज (जनरल पूल इन दिल्ली) रूल्स 1963 हैं. इसमें 'दिल्ली' का मतलब वो इलाका है जो केंद्र सरकार के अधीन आता है. यहां सरकार आवास की पात्रता तय करती है. बंगलों का बंटवारा सैलरी और सीनियॉरिटी के आधार पर होता है.

- लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को आवास बांटने का काम दोनों सदनों की हाउसिंग कमेटी करती है. टाइप I से टाइप IV के सरकारी आवास आमतौर पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों को मिलते हैं. जबकि, टाइप VI से टाइप VIII तक के बंगले सांसदों, केंद्रीय मंत्रियों, राज्य मंत्रियों को आवंटित किए जाते हैं.

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टाइप VIII सबसे बड़े बंगले

टाइप VIII का बंगला सबसे उच्च श्रेणी का बंगला माना जाता है. ये बंगले आम तौर पर कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व प्रधानमंत्रियों, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उप-राष्ट्रपति और वित्त आयोग के चेयरमैन को मिलते हैं. टाइप VIII में 5 बेडरूम जबकि टाइप VII में 4 बेडरूम होते हैं. दोनों टाइप के बंगलों में सर्वेंट क्वार्टर, लॉन और गैरेज भी होता है. 

सभी सांसदों को सरकारी आवास में सालाना 4 हजार किलो लीटर पानी औऱ 50 हजार यूनिट तक की बिजली फ्री मिलती है. अगर किसी साल पानी और बिजली का इस्तेमाल ज्यादा हो जाता है तो उसे अगले साल एडजस्ट किया जाता है. इसके अलावा हर तीन महीने में पर्दों की धुलाई भी फ्री में होती है. 

मोदी सरकार और सरकारी बंगले

2014 में मोदी सरकार आने के बाद पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसदों से तेजी में सरकारी बंगले खाली कराए जाने लगे. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार के पहले ही साल 460 नेताओं से सरकारी बंगले खाली कराए गए थे. 

नेताओं से बंगले खाली कराने के लिए मकसद से 2019 में मोदी सरकार ने एक सख्त कानून भी बनाया था. इस कानून के मुताबिक, समय पर बंगले खाली न करने पर 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा ये भी कहा गया कि नोटिस मिलने के तीन दिन बाद सरकार बंगले खाली कराने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है.

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