जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य संगठनों द्वारा बुलाए गए प्रदर्शन का समर्थन किया है. संगठन ने दावा किया है कि मुसलमानों को अपने अधिकारों को वापस लेने के लिए सड़कों पर आने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि 12 फरवरी, 2025 को संगठन की कार्यकारी समिति की बैठक में ये फैसला लिया गया कि यदि विधेयक पारित होता है तो जमीयत उलेमा-ए-हिंद की सभी स्टेट यूनिट्स अपने संबंधित राज्यों के हाईकोर्ट में इस कानून को चुनौती देंगी.
इसके अलावा जमीयत इस विश्वास के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी कि न्याय मिलेगा, क्योंकि अदालतें ही हमारे लिए अंतिम सहारा हैं.
'सड़कों पर उतरने के लिए किया जा रहा है मजबूर'
मदनी ने 13 मार्च को नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य राष्ट्रीय संगठनों के विरोध प्रदर्शन को समर्थन देते हुए कहा, मुसलमानों को अपने अधिकारों को वापस पाने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
मदनी ने एक बयान में कहा कि पिछले 12 वर्षों से मुसलमानों ने बहुत धैर्य और सहिष्णुता का परिचय दिया है. हालांकि, अब जब वक्फ संपत्तियों के संबंध में मुसलमानों की चिंताओं की अनदेखी की जा रही है और एक असंवैधानिक कानून जबरन थोपा जा रहा है तो विरोध करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपने धार्मिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन देश के प्रत्येक नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है. जमीयत ने सभी न्यायप्रिय लोगों से इस प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की है.
'वक्फ पूरी तरह से धार्मिक मामला'
जमीयत प्रमुख ने आगे कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश होने के बाद से, 'हम सरकार को ये समझाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि वक्फ पूरी तरह से धार्मिक मामला है. वक्फ संपत्तियां हमारे पूर्वजों द्वारा समुदाय के कल्याण के लिए दिए गए दान हैं और इसलिए हम उनमें किसी भी सरकारी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं कर सकते.'
'शरीयत से नहीं कर सकते समझौता'
उन्होंने आरोप लगाया, 'मुसलमान अपने शरीयत से बिल्कुल भी समझौता नहीं कर सकते, क्योंकि यह उनके अधिकारों का मामला है, न कि केवल उनके अस्तित्व का. मौजूदा सरकार नया वक्फ संशोधन अधिनियम लाकर देश के संविधान द्वारा मुसलमानों को दिए गए अधिकारों को छीनना चाहती है.'
उन्होंने ये भी आरोप लगाया, 'हम संविधान द्वारा हमें दिए गए अधिकारों और शक्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए विरोध करने जा रहे हैं. वक्फ संशोधन विधेयक जैसे कानून लाकर इन संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने का प्रयास किया जा रहा है.'
सरकार के सहयोगी दलों से की बात: मदनी
मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत ने सरकार में शामिल उन दलों से भी अपील की है जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं और जिनकी सफलता में मुसलमानों की भी भूमिका रही है. इन दलों को ये जताने की कोशिश की गई है कि जो कुछ हो रहा है, वह बहुत गलत है. हालांकि, अब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इसे मंजूरी दे दी है, जिसका साफ मतलब है कि इन दलों ने इस विधेयक का खुलकर समर्थन किया है.'
'मुसलमानों के साथ है विश्वासघात'
जमीयत अध्यक्ष ने दावा किया कि यह मुसलमानों के साथ विश्वासघात है और देश के संविधान और कानून के साथ खिलवाड़ है. उन्होंने कहा, 'ये पार्टियां देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान और मुसलमानों से ज्यादा अपने राजनीतिक हितों को महत्व देती हैं. इसलिए धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली पार्टियां आज देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं.'
मदनी ने कहा, 'देश को विनाश और बर्बादी की ओर धकेलने में खुलेआम मदद करके उनकी भूमिका सांप्रदायिक ताकतों की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है, क्योंकि वे लोगों की पीठ में छुरा घोंपते हुए दोस्त की तरह काम कर रहे हैं.'
बता दें कि 10 मार्च सोमवार से बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू हो रहा है. इससे पहले सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक संसद में पारित कराने के संकेत दिए हैं. जिसके बाद से राजनीतिक माहौल गरमा गया है.