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CBI और CVC की समयबद्ध जांच पर सरकार को 4 हफ्ते में दाखिल करना होगा जवाब: SC 

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र को चार हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें सीबीआई जांच की बहुत धीमी प्रगति होने या काम करने की बात कही गई है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि कभी-कभी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी जाती है. कई बार अदालतें जांच की अनुमति दे देती हैं.

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Supreme Court (File Photo)
Supreme Court (File Photo)

CBI और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त CVC को समयबद्ध तरीके से जांच करने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते की मोहलत दी है. अब इस मामले की सुनवाई जुलाई में होगी. इस दौरान अदालत की सहायता के लिए एमाइकस क्यूरे नियुक्त करने पर भी विचार होगा.

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कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछले 4 सालों में इस बाबत सरकार ने अदालत में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है. याचिका के मुताबिक CBI के पास 2500 से अधिक मामले लंबित हैं.

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि कभी-कभी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी जाती है. कई बार अदालतें जांच की अनुमति दे देती हैं. हम सर्वव्यापी निर्देश नहीं दे सकते हैं, क्योंकि निर्देश विशेष मामलों की परिस्थिति के मद्देनजर होने चाहिए.

'HC भी जा सकते हैं आप'

कोर्ट ने कहा कि आप चाहें तो हाईकोर्ट भी जा सकते हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि ताकतवर लोग सत्ता में आते हैं और सीबीआई उसी के निर्देशानुसार काम करती है.

केंद्र की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार 4 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करे. उसके बाद याचिकाकर्ता प्रति उत्तर दाखिल करे.

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याचिका में हैं कई मामलों का जिक्र

ये याचिका विभिन्न मामलों का हवाला देते हुए दायर की गई थी. उनमें सीबीआई जांच की बहुत धीमी प्रगति होने या काम करने की बात कही गई है.

याचिका में जांच में देरी के लिए दिल्ली पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम 1946 या केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम 2013 में समयबद्ध जांच पूरी करने के दिशा-निर्देशों की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है.

दशकों से लंबित कई मामले

याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार कई मामलों की जांच में देरी होती है. खासकर अगर वे राजनीति या नौकरशाही के उच्च और शक्तिशाली लोगों से जुड़े हाई प्रोफाइल मामले हों और इस तरह कई मामले सालों या दशकों से लंबित हैं.

इसी कारण से एजेंसी की कई बार आलोचना भी हुई है, क्योंकि इसने अतीत में कई घोटालों और मामलों को ठीक से नहीं संभाला है. पीवी नरसिम्हा राव, जयललिता, लालू प्रसाद यादव, मायावती और मुलायम सिंह यादव जैसे प्रमुख राजनेताओं की जांच में देरी करने के मामलों की भी याचिका में चर्चा की गई है.

इस रणनीति के कारण या तो वे बरी हो जाते हैं या उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाता. अब सरकार इन मुद्दों पर आंकड़ों के साथ जवाब दाखिल करेगी.

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