महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को संविधान पीठ ने सुनवाई की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के दौरान राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि बेंच इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं. राज्यपाल को ऐसे क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से विशेष परिणाम निकले.
इतना ही नहीं बेंच ने कहा, ''सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं, क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था?'' सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते. लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है. सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता.
राज्यपाल को विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था- CJI
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने राज्यपाल से कहा कि उन्हें उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था. उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? उन्होंने पूछा कि राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है?
मूक दर्शक नहीं बने रह सकते राज्यपाल- तुषार मेहता
उधर, राज्यपाल की ओर से पेश वकील तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल यह निर्धारित नहीं कर रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने विश्वास खो दिया है या नहीं, वह सिर्फ बहुमत साबित करने के लिए उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए आमंत्रित कर रहे थे. मेहता ने कहा, राज्यपाल विधायकों को जान से मारने की धमकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकते. मैं इसे नजर अंदाज नहीं कर सकता. राज्यपाल इस तरह की स्थिति पर मूक दर्शक नहीं बने रह सकते.
इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में शिंदे कैंप की तरफ से पक्ष रखा गया. वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से सब कुछ नही सुलझ सकता. अदालत इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री को वापस आने के लिए निर्देश नहीं दे सकती. जब भी कोई ऐसा सवाल खड़ा हो तो राज्यपाल को विश्वासमत के लिए सदन बुलाना चाहिए. इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
साल्वे ने कहा है कि लोकतंत्र को सदन के पटल पर ही चलने दें. एसआर बोम्मई मामले में भी यही स्थिति रखी गई है. फ्लोर टेस्ट बुलाकर राज्यपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया. जहां तक नबाम रेबिया की बात है तो इस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है. अगर वास्तव में विश्वास मत होता तो क्या होता? इस अदालत ने कभी भी यह निष्कर्ष नहीं निकाला है कि सदन में बने रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए अयोग्यता की चुनौती का लंबित होना उस व्यक्ति को कानूनी रूप से अयोग्य घोषित नहीं करता है. जब तक कि उसे अंतिम तौर पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाता है.
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी. इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई थी. शिंदे ने शिवसेना के बागी विधायकों के साथ बीजेपी के समर्थन में सरकार बनाई. इसके बाद ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सुप्रीम कोर्ट में 5 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन याचिकाओं में डिप्टी स्पीकर द्वारा शिंदे गुट के 14 विधायकों के बर्खास्तगी नोटिस, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने और एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनने के लिए आमंत्रण देने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी गई है. इन्हीं याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.