पिछले पांच सालों में गुजरात के गिर जंगल में 669 एशियाई शेरों की मौत हुई है, लेकिन इनमें से किसी भी मौत का कारण शिकार नहीं रहा. यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में एक लिखित जवाब में दी. गिर जंगल एशियाई शेरों का दुनिया में एकमात्र प्राकृतिक आवास है.
कीर्ति वर्धन सिंह ने बताया कि 2020 में 142, 2021 में 124, 2022 में 117, 2023 में 121 और 2024 में 165 शेरों की मौत हुई. उन्होंने कहा, "गुजरात सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, इन मौतों के कारणों में बुढ़ापा, बीमारी, आपसी लड़ाई से चोट, शावकों की मृत्यु, खुले कुओं में गिरना, बिजली का झटका और दुर्घटनाएं शामिल हैं. शिकार से कोई मौत नहीं हुई." जून 2020 के अनुमान के मुताबिक, शेरों की आबादी 674 थी, जो 2015 में 523 थी. मई 2025 में नया जनसंख्या अनुमान जारी होगा.
फरवरी में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा था कि गिर में शेरों के लिए पर्याप्त शिकार उपलब्ध है और शिकार जानवरों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि, विशेषज्ञ शेरों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग करते रहे हैं, ताकि महामारी या प्राकृतिक आपदा से उनकी रक्षा हो सके. सितंबर 2018 में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) से 27 शेरों की मौत हुई थी, जिसके बाद 37 को क्वारंटाइन करना पड़ा.
गुजरात वन विभाग के दस्तावेज के अनुसार, शेरों का वितरण क्षेत्र 2015 में 22,000 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2020 में 30,000 वर्ग किलोमीटर हो गया. ‘नेचर जर्नल’ की 2022 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 674 शेरों में से 48% संरक्षित क्षेत्रों से बाहर नौ जिलों और 13 वन प्रभागों में फैल गए थे.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने शेरों को गुजरात से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था, लेकिन यह लागू नहीं हुआ. इसके बजाय, 2022 में अफ्रीका से चीते कूनो लाए गए.
दिसंबर 2022 में तत्कालीन पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बरदा वन्यजीव अभयारण्य को शेरों के लिए वैकल्पिक स्थल के रूप में चुना है, जहां 40 वयस्क और उप-वयस्क शेरों को समायोजित किया जा सकता है. गुजरात वन विभाग बरदा में शाकाहारी जानवरों का प्रजनन केंद्र भी चला रहा है, ताकि शेरों के लिए शिकार आधार बढ़ाया जा सके.