scorecardresearch
 

दूसरे धर्म और जाति में शादी को लेकर कितना खुलापन? GDB सर्वे में सामने आए ये पहलू

सर्वे में केरल सामाजिक समावेशिता के मामले में शीर्ष पर उभरा है. यहां के उत्तरदाता खानपान की पाबंदियों को खारिज करते हैं, रोजगार में भेदभाव का विरोध करते हैं और अंतरधार्मिक व अंतर-जाति विवाहों का समर्थन करते हैं. इसके उलट, मध्य प्रदेश सबसे निचले पायदान पर रहा, जहां अंतरधार्मिक विवाहों का भारी विरोध और रोजगार में धार्मिक भेदभाव की स्वीकार्यता देखी गईं. 

Advertisement
X
अंतरधार्मिक विवाह को लेकर नहीं है खुलापन
अंतरधार्मिक विवाह को लेकर नहीं है खुलापन

इंडिया टुडे के हालिया सकल घरेलू व्यवहार सर्वे ने भारत में सामाजिक समावेश के प्रति लोगों के रवैये को उजागर किया है, जो देश की विविधता और भेदभाव के बीच गहरे अंतरविरोधों को दर्शाता है. सर्वे के मुताबिक, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव को जायज ठहराने वालों की संख्या में कमी आई है, लेकिन अंतरधार्मिक और अंतर-जाति विवाहों के प्रति रूढ़िवादी सोच अब भी कायम है. यह सर्वे पांच प्रमुख सवालों के जरिए देश भर के सामाजिक रवैये की पड़ताल करता है, जिसमें राष्ट्रीय बहुमत धार्मिक और जातिगत विविधता के प्रति खुलापन दिखाता है, लेकिन आंकड़े गहरे पूर्वाग्रहों की मौजूदगी को भी रेखांकित करते हैं.

Advertisement

सर्वे में केरल शीर्ष पर
सर्वे में केरल सामाजिक समावेशिता के मामले में शीर्ष पर उभरा है. यहां के उत्तरदाता खानपान की पाबंदियों को खारिज करते हैं, रोजगार में भेदभाव का विरोध करते हैं और अंतरधार्मिक व अंतर-जाति विवाहों का समर्थन करते हैं. इसके उलट, मध्य प्रदेश सबसे निचले पायदान पर रहा, जहां अंतरधार्मिक विवाहों का भारी विरोध और रोजगार में धार्मिक भेदभाव की स्वीकार्यता देखी गईं. 

धार्मिक विविधता के लिए लोग कितने तैयार
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भी इस मामले में पीछे हैं. इन राज्यों में क्षेत्रीय असमानताएं सामाजिक रवैये में स्पष्ट रूप से झलकती हैं. पड़ोस में विविधता के सवाल पर 70 प्रतिशत भारतीयों ने अलग-अलग धर्मों के लोगों के साथ रहने में सहजता जताई. पश्चिम बंगाल इस मामले में अव्वल रहा, जहां 91 प्रतिशत लोगों ने धार्मिक विविधता का स्वागत किया. वहीं, उत्तराखंड में 72 प्रतिशत लोगों ने इसे अस्वीकार किया. 

Advertisement

वर्कप्लेस पर भेदभाव?
कार्यस्थल पर भेदभाव के मुद्दे पर 60 प्रतिशत भारतीयों ने धार्मिक आधार पर भर्तियों में भेदभाव का विरोध किया, जिसमें केरल 88 प्रतिशत के साथ सबसे आगे रहा. हालांकि, अंतरधार्मिक और अंतर-जाति विवाहों के प्रति विरोध चिंताजनक है. सर्वे में 61 प्रतिशत लोगों ने अंतरधार्मिक विवाहों और 56 प्रतिशत ने अंतर-जाति विवाहों का विरोध किया.

कर्नाटक में 94 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 84 प्रतिशत लोगों ने क्रमशः अंतरधार्मिक और अंतर-जाति विवाहों को नकार दिया. ये आंकड़े भारत के बहुलतावादी आदर्शों और सामाजिक बंटवारे के बीच चल रहे संघर्ष को उजागर करते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह सर्वे देश में समावेशिता की दिशा में प्रगति के साथ-साथ चुनौतियों को भी सामने लाता है.

Live TV

Advertisement
Advertisement