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Gujarat riots 2002: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 2002 गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका की सुनवाई हुई. जिसमें दंगों की जांच के लिए गठित SIT ने जाकिया जाफरी के बड़ी साजिश के आरोपों को नकार दिया है. SIT ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले में FIR या चार्जशीट दर्ज करने के लिए कोई आधार नहीं मिला है. जाकिया की शिकायत पर गहन जांच की गई लेकिन कोई सामग्री नहीं मिली. यहां तक कि स्टिंग की सामग्री को भी अदालत ने ठुकरा दिया
इस बारे में SIT की ओर मुकुल रोहतगी ने जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच के सामने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि SIT इस नतीजे पर पहुंची कि पहले से दायर चार्जशीट के अलावा, 2006 की उनकी शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी. उन्होंने कहा राज्य पुलिस पर आरोप तेज़ी से लग रहे थे. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने SIT नियुक्त की. मुकुल रोहतगी ने कहा हमने अपना काम किया है. कोई सहमत हो सकता है और असहमत भी.
2009 में गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका में चूंकि SIT पहले से ही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया के मामले की जांच के लिए भी कहा था. राज्य पुलिस ने पहले ही कई पूरक चार्जशीट के साथ 9 मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी. जब SIT ने कार्यभार संभाला तो चार्जशीट में कई आरोपी जोड़े गये. इसके बाद तहलका टेप सामने आया, टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन SIT ने पाया कि टेप की सामग्री में स्टिंग ऑपरेशन से लेकर आशीष खेतान के सामने दिए गए बयानों से अविश्वास पैदा हुआ है. दरअसल जाकिया जाफरी ने SIT पर आरोपियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया था. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT के लिए मिलीभगत एक कठोर शब्द है. ये वही SIT जिसने अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी और आरोपियों को दोषी ठहराया गया था. उन कार्यवाही में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली.
जाकिया के वकील सिब्बल ने क्या कहा?
जाकिया जाफरी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा जब SIT की बात आती है, आरोपी के साथ मिलीभगत के स्पष्ट सबूत मिलते हैं. राजनीतिक वर्ग भी सहयोगी बन गया. SIT ने मुख्य दस्तावेजों की जांच नहीं की और स्टिंग ऑपरेशन टेप, मोबाइल फोन जब्त नहीं किया. क्या SIT कुछ लोगों को बचा रही थी? शिकायत की गई तो भी अपराधियों के नाम नोट नहीं किए गए. यह राज्य की मशीनरी के सहयोग को दर्शाता है. लगभग सभी मामलों में एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई. इस मामले में जो अंतिम शिकार बना वह खुद न्याय था.
ये है पूरा मामला
2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने SIT रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. रिपोर्ट में राज्य के उच्च पदाधिकारियों द्वारा गोधरा हत्याकांड के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़काने में किसी भी "बड़ी साजिश" से इनकार किया गया है. 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने SIT की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया की विरोध शिकायत को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज करने के खिलाफ उसकी चुनौती को खारिज कर दिया था.
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