Gyanvapi Masjid Row Live Updates: ज्ञानवापी मस्जिद मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जुलाई के दूसरे हफ्ते में सुनवाई होगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद केस जिला जज को ट्रांसफर कर दिया है. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की दलील पर कहा कि इस मामले में धार्मिक चरित्र तय करना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए कमिशन नियुक्त करना न्यास संगत है. सर्वे की रिपोर्ट भी स्वीकार की जा सकती है.
ज्ञानवापी मामले को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान ने सुप्रीम कोर्ट ने तीन बड़ी बातें कहीं. कोर्ट ने वाराणसी जिला जज को केस ट्रांसफर कर दिया है. वहीं कोर्ट ने कहा कि वुजू की व्यवस्था की जाएगी. इसके साथ ही शिवलिंग का एरिया सील रहेगा.
ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील अहमदी ने कहा कि मस्जिद के अस्तित्व और मस्जिद के धार्मिक चरित्र पर कोई विवाद नहीं है. इस पर हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील वैद्यनाथन ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह विवाद में है. इस पर अहमदी ने अपने बात दोहराते हुए कहा कि यह विवाद में नहीं है. मस्जिद 500 साल से है. POW अधिनियम कहता है कि स्वतंत्रता के समय जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था वह वैसे ही रहेगा. अगर इसमें कोई बदलाव करता है तो नियम का उल्लंघन होगा. देश में कई ऐसी जगह हैं, जहां कई धर्मों के प्रतीक मौजूद हैं. पहले मंदिर था, फिर मस्जिद, फिर दूसरा मंदिर या बौद्ध मंदिर. विवाद को रोकने के लिए POW अधिनियम बनाया गया था.
अहमदी ने कहा कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर स्पष्ट रूप से रोक है. आयोग का गठन क्यों किया गया था? यह देखना था कि वहां क्या था?
जस्टिस चंद्रचूड़- लेकिन किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना वर्जित नहीं है.
मान लीजिए कोई अगियारी है. मान लीजिए कि अगियारी के दूसरे हिस्से में क्रॉस है. क्या अगियारी की उपस्थिति क्रॉस को अगियारी बनाती है? या क्रॉस की उपस्थिति अगियारी को ईसाई जगह बनाती है?
ईसाई धर्म के एक लेख की उपस्थिति इसे ईसाई नहीं बनाएगी और पारसी की उपस्थिति इसे ऐसा नहीं बनाएगी.
क्या ट्रायल जज अधिकार क्षेत्र से बाहर चला गया था और क्या रिपोर्ट लीक हुई थी, यह अलग-अलग मुद्दे हैं. हम बाद में देखेंगे.
अहमदी- कमीशन नियुक्त करने का मतलब ये पता लगाना था कि परिसर में किसी देवता की मूर्ति या धार्मिक चिह्न तो नहीं हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कहीं अगियारी और क्रॉस मिलते हैं तो दो धर्मों का अस्तित्व बताते हैं.
आयोग की रिपोर्ट लीक होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा कि आयोग की रिपोर्ट लीक नहीं होनी चाहिए और केवल न्यायाधीश के समक्ष पेश की जानी चाहिए. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि मीडिया में लीक बंद होनी चाहिए. रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी थी. कोर्ट को इसे खोलना चाहिए था. हमें जमीन पर संतुलन और शांति की भावना बनाए रखने की जरूरत है. एक तरह से हीलिंग टच की जरूरत है. हम देश में संतुलन की भावना को बनाए रखने के लिए एक संयुक्त मिशन पर हैं.
सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील अहमदी ने कहा कि मस्जिद में हमें वज़ू करने की अनुमति नहीं है. पूरे इलाके को सील कर दिया गया है जहां वज़ू किया जाता है. इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम जिलाधिकारी से वैकल्पिक इंतजाम करने को कहेंगे. वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इसके भी इंतजाम किए गए हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज के विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारा और शांति हमारे लिए सबसे ऊपर है. हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है. इससे सब ओर शांति बनी रहेगी. पहले ट्रायल कोर्ट को मुस्लिम पक्ष की अपील, दलील और 1991 के उपासना स्थल कानून के उल्लंघन की अर्जी पर सुनवाई करने दें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम ट्रायल कोर्ट को चलने से नहीं रोक सकते. शांति बनाए रखने के लिए संविधान में एक ढांचा बनाया गया है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि निचली अदालत को निर्देश देने के बजाय हमें संतुलन बनाना चाहिए.
अहमदी ने उपासना स्थल कानून पर चर्चा शुरू की तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये आपका दूसरा नजरिया है. हम आदेश सात के नियम 11 की बात पर चर्चा कर रहे हैं.
हिंदू पक्षकार की ओर से सीनियर वकील वैद्यनाथन ने कहा कि हम न्यायाधीश के विवेक पर किसी तरह का दबाव या अंकुश नहीं चाहते. सुनवाई के दौरान पहले क्या होना चाहिए, ये जिला जज के विवेक पर छोड़ देना चाहिए.
उधर, अहमदी ने कहा कि वाराणसी कोर्ट के ऑर्डर के आधार पर 5 और मस्जिदों के लिए ये सब इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आज इसे अनुमति दी जाती है तो कल कोई इसी तरह से किसी और मस्जिद के नीचे मंदिर होने का नैरेटिव सेट कर देगा. इससे देश भर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा. लेकिन अदालती आदेश के बाद पिछले 500 साल से चली आ रही यथास्थिति को बदल दिया गया है.
मस्जिद कमेटी के वकील हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि हमारी SLP आयोग की नियुक्ति के खिलाफ है. इस प्रकार की शरारत को रोकने के लिए ही 1991 का अधिनियम बनाया गया था. कहानी बनाने के लिए आयोग की रिपोर्ट को चुनिंदा रूप से लीक किया गया है.
अहमदी ने कहा कि मामले को अगर निचली अदालत को भेजा जाता है तो ज्ञानवापी मस्जिद पर यथस्थिति को बनाए रखा जाए. अव्वल तो सर्वे के लिए कमीशन बनाया जाना ही असंवैधानिक है. यही नहीं रिपोर्ट को लीक किया जा रहा है. हमें मौका दिया जाए कि एक नैरेटिव सेट किया जा रहा है ये मामला इतना आसान नहीं है. परिसर में यथास्थिति तो बीते 500 साल से है. मेरी मांग है कि यदि मामला वाराणसी कोर्ट जाता है तो भी वही यथास्थिति बनाए रखी जाए.
कोर्ट ने कहा कि यह तय करने के लिए कि जांच कमीशन की नियुक्ति का आदेश सही था या नहीं उस बारे में एक पैनल नियुक्त किया जा सकता है. लेकिन जिस क्षण हम अंतरिम आदेश जारी रखते हैं, इसका मतलब है कि हमारा आदेश जारी है.
मुस्लिम पक्षकारों के वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि अब तक जो भी आदेश ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए हैं वो माहौल खराब कर सकते हैं. कमीशन बनाने से लेकर अब तक जो भी आदेश आए हैं, उसके जरिए दूसरे पक्षकार गड़बड़ कर सकते हैं. स्टेटस को यानी यथा स्थिति बनाए रखी जा सकती है.
अहमदी ने कहा कि 500 साल से उस स्थान को जैसे इस्तेमाल किया जा रहा था उसे बरकरार रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट: हमने जो महसूस किया वह सबसे पहले हम आदेश 7 नियम 11 पर निर्णय लेने के लिए कहेंगे और जब तक यह तय नहीं हो जाता है कि हमारा अंतरिम आदेश संतुलित तरीके से लागू रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव है कि अगर हमारे अंतरिम आदेश को जारी रखा जाता है और डिस्ट्रिक्ट जज को मामले की सुनवाई की अनुमति दी जाती है, तो यह सभी पक्षों के हितों की रक्षा करेगा.
वकील वैद्यनाथन- मुस्लिम पक्ष की दलील का कोई मतलब नहीं है. आयोग की रिपोर्ट पर न्यायालय विचार करे तो उचित होगा.
जस्टिस चंद्रचूड़- इसलिए हम सोच रहे थे कि जिला जज मामले की सुनवाई कर सकते हैं. वे जिला न्यायपालिका में सीनियर जज हैं. वे जानते हैं कि आयोग की रिपोर्ट जैसे मुद्दों को कैसे संभालना है. हम यह निर्देश नहीं देना चाहते कि उन्हें क्या करना चाहिए.
वकीलों से मुलाकात के बाद ऑर्डर 7 के नियम 11 के बारे में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जिला न्यायाधीश को ही सुनना चाहिए. जिला जज अनुभवी न्यायिक अधिकारी होते हैं. उनका सुनना सभी पक्षकारों के हित में होगा. CS वैद्यनाथन ने कहा कि धार्मिक स्थिति और कैरेक्टर को लेकर जो रिपोर्ट आई है, जिला अदालत को पहले उस पर विचार करने को कहा जाए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम उनको निर्देश नहीं दे सकते कि कैसे सुनवाई करनी है. उनको अपने हिसाब से करने दिया जाए.
ज्ञानवापी मस्जिद के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कुछ देर में सुनवाई शुरू हो गई है. इससे पहले गुरुवार को हिंदू पक्ष ने 274 पन्नों का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था. जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने पहले सभी पक्षकारों के वकीलों के बारे में जाना. इसके बाद ऑर्डर 7 के नियम 11 के बारे में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जिला न्यायाधीश को ही सुनना चाहिए.
ज्ञानवापी मस्जिद में जुमे की नमाज खत्म हो चुकी है. नमाजी अब मस्जिद से बाहर आ रहे हैं. उनका कहना है कि मस्जिद पूरी तरह फुल थी.
ज्ञानवापी में इस वक्त माहौल गरम है. जुमे की नमाज के लिए भारी भीड़ जमा हुई है जिसकी वजह से ज्ञानवापी मस्जिद फुल हो गई है. फिलहाल मौलवी नमाजियों से दूसरी मस्जिद में जाने को कह रहे हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी मसले पर सुनवाई टल गई है. अब इस मसले पर कोर्ट की गर्मियों की छुट्टी के बाद 6 जुलाई को सुनवाई होगी. हाईकोर्ट को यह तय करना है कि 31 साल पहले 1991 में दाखिल वाद की सुनवाई हो सकती है या नहीं. इस मामले में 16 मई को पिछली सुनवाई हुई थी. पिछली सुनवाई पर हिंदू पक्ष की बहस पूरी नहीं हो सकी थी. इसके पूरे होने के बाद मुस्लिम पक्षकार अपनी दलीलें पेश करेंगे.
जानकारी के मुताबिक हिंदू पक्ष की बहस पूरी हो गई है. आज यूपी सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने अपना पक्ष रखा, अगली सुनवाई में भी वह ही बहस करेंगे.
ज्ञानवापी में जुमे की नमाज के लिए भीड़ उमड़ी है. पहले वहां 30 लोगों के नमाज पढ़ने की जानकारी थी, लेकिन अब कहा जा रहा है कि मस्जिद में 700 नमाजी पहुंचे हैं. इसके बाद मस्जिद के गेट को बंद कर दिया गया है. इसके साथ ही वजूखाना सील होने की वजह से नमाजियों से कहा गया है कि वे घर से वजू करके आएं. भीड़ होने पर लोगों से दूसरी मस्जिद में जाने को कहा जा रहा है.
हिंदू पक्षकारों ने 278 पन्नों का विस्तृत हलफनामा दिया है. कहा है कि गया ज्ञानवापी मामला उपासना स्थल कानून 1991 के दायरे में नहीं आता क्योंकि उपासना स्थल कानून 15 अगस्त 1947 को किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को लेकर है जबकि ज्ञानवापी परिसर में स्थित देवी श्रृंगार गौरी की उपासना, पूजा और दर्शन तो पिछली सदी के आखिरी दशक तक हो रहे थे. तो अदालत पहले धार्मिक स्थलों की स्थिति के सवाल पर पहले सुनवाई करे। फिर उसके कैरेक्टर और स्थिति की समीक्षा हो.
ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट में आज तीन बजे सुनवाई होगी. यहां मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी कोर्ट द्वारा सर्वे कराये जाने का विरोध करते हुए याचिका दायर की है. इसका हिंदू पक्ष ने विरोध किया है. मामले पर कल सुनवाई हुई थी जिसमें हिंदू पक्ष ने जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त मांगा था. अब यह हलफनामा दायर हो चुका है.
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं पर जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच में आज सुनवाई होगी. हाईकोर्ट को यह तय करना है कि 31 साल पहले 1991 में दाखिल वाद की सुनवाई हो सकती है या नहीं. इस मामले में 16 मई को पिछली सुनवाई हुई थी.
आज की सुनवाई में स्वयंभू भगवान विशेश्वर यानी हिंदू पक्ष की ओर पेश की जाएगी दलीलें. पिछली सुनवाई पर हिंदू पक्ष की बहस पूरी नहीं हो सकी थी. सबसे पहले हिंदू पक्ष अपनी बची हुई बहस पूरी करेगा. उसके बाद दोनों मुस्लिम पक्षकार अपनी दलीलें पेश करेंगे.