हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट (Hijab Hearing Karnataka High Court) में आज दोपहर 2.30 बजे फिर से सुनवाई होगी. इसी बीच कर्नाटक के उडुपी के महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज में कक्षा 12 की प्रैक्टिकल परीक्षा स्थगित कर दी गई है. ये वही कॉलेज है जहां से हिजाब को लेकर विवाद शुरू हुआ था.
इससे पहले बुधवार को हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान छात्राओं के वकीलों ने कोर्ट के सामने अपनी जोरदार दलीलें रखीं और मांग की है कि सिर्फ आवश्यक धार्मिक प्रथा के पैमाने पर इसे न तौलकर, विश्वास को देखना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने कहा कि अकेले हिजाब का ही जिक्र क्यों है जब दुपट्टा, चूड़ियां, पगड़ी, क्रॉस और बिंदी जैसे सैकड़ों धार्मिक प्रतीक चिन्ह लोगों द्वारा रोजाना पहने जाते हैं.
घूंघट, चूड़ी, पगड़ी, क्रॉस को छूट तो हिजाब पर सवाल क्यों?
अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने कहा, मैं केवल समाज के सभी वर्गों में धार्मिक प्रतीकों की विविधता को उजागर कर रहा हूं. सरकार अकेले हिजाब को चुनकर भेदभाव क्यों कर रही है? चूड़ियां पहनी जाती हैं? क्या वे धार्मिक प्रतीक नहीं है? कुमार ने कहा, यह केवल उनके धर्म के कारण है कि याचिककर्ता को कक्षा से बाहर भेजा जा रहा है. बिंदी लगाने वाली लड़की को बाहर नहीं भेजा जा रहा, चूड़ी पहने वाली लड़की को भी नहीं. क्रॉस पहनने वाली ईसाइयों को भी नहीं, केवल इन्हें ही क्यों. यह संविधान के आर्टिकल 15 का उल्लंघन है. वरिष्ठ अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने राज्य सरकार की अधिसूचना को अवैध ठहराते हुए कहा है कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट में इस संबंध में प्रावधान नहीं है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से यह विवाद शुरू हुआ था. मुस्लिम छात्राओं के वकील आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए इसे जरूरी इस्लामिक प्रथा बता रहे हैं. हाई कोर्ट में सीनियर एडवोकेट देवदत्त काम ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को अवैध ठहराते हुए कहा है कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट में इस संबंध में प्रावधान नहीं है.
हिजाब विवाद पर राजनीति भी तेज
एक तरफ हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है तो दूसरी तरफ इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है. राजनेताओं के बाद मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन (Taslima Nasreen) ने भी इस मामले पर अपनी राय दी है. उन्होंने कहा, 'कुछ मुसलमान सोचते हैं कि हिजाब जरूरी है और कुछ सोचते हैं कि हिजाब जरूरी नहीं है. हिजाब को 7 वीं शताब्दी में कुछ महिलाओं द्वारा पेश किया गया था क्योंकि उस समय महिलाओं को यौन वस्तु के तौर पर देखा जाता था. उस वक्त लोगों का मानना था कि यदि पुरुष, महिलाओं को देखते हैं तो उनमें यौन इच्छा जाग जाएगी. इसलिए महिलाओं को हिजाब या बुर्का पहनना पड़ता है. उन्हें पुरुषों से खुद को छिपाना पड़ता था.'