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सेब के लिए दुनियाभर में मशहूर है हिमाचल का किन्नौर, इस बार हुई बंपर पैदावार

हिमाचल का किन्नौर इलाका अपने सेब की पैदावार और अलग-अलग किस्मों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. किन्नौर में वैसे तो सेब की कई किस्में होती हैं, लेकिन किन्नौर का रॉयल लाल और बड़ा से देखते ही लोगों के मन में खाने का लालच पैदा करता है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • दुनियाभर में मशहूर है किन्नौर के सेब
  • साढ़े पांच हजार करोड़ सालाना का कारोबार

हिमाचल का किन्नौर इलाका अपने सेब की पैदावार और अलग-अलग किस्मों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. किन्नौर में वैसे तो सेब की कई किस्में होती हैं, लेकिन किन्नौर का रॉयल लाल और बड़ा से देखते ही लोगों के मन में खाने का लालच पैदा करता है. इस बार किन्नौर में सेब की बंपर फसल हुई है.

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सेब को लेकर कई तरह के भ्रम और भ्रांतियां सोशल मीडिया पर फैलती रहती थीं, जिसमें ये कहा जाता था कि सेब को ज़्यादा कलरफुल बनाने के लिए उस पर कई तरह के छिड़काव किए जाते हैं, लेकिन अब अगर बात करें तो किसानों ने ज्यादातर ऑर्गेनिक सेब उगाने शुरू कर दिए हैं. सेब के ऊपर किसी तरह का भी स्प्रे या वैक्स नहीं की जाती है. सेब की ग्रेडिंग करके उसे अलग अलग केटगरी में पेक जरूर किया जाता है और उसी के हिसाब से सेब की क़ीमत तय की जाती है.

अगर पूरे राज्य की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में करीब 100000 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब की बागवानी होती है और साढ़े पांच हजार करोड़ के आसपास का सालाना कारोबार होता है, लेकिन इस सब से बढ़कर पूरे राज्य में किन्नौर की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होती है और देश-विदेश में भी किन्नौर के सेब की ही ज्यादा डिमांड होती है. किन्नौर का ज्यादातर इलाका लाहौल स्पीति और चीन बॉर्डर के आस-पास लगता है. ज्यादा ऊंचाई होने के कारण इस इलाक़े में ठंड जादा होती है बर्फ़बारी ज़्यादा होती है यही वजह है कि यहाँ के सेब की क्वालिटी अन्य जगहों के मुक़ाबले में ज़्यादा बेहतर जूसी और क्रंची होती है.

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किन्नौर में सेब की जो पारंपरिक किसमें होती हैं उनमें रॉयल,गोल्डन, रिचर्ड और रेड है लेकिन अब किसानों ने नई तकनीक से सपर वैराइटी भी उगाना शुरू कर दी है. पहले सेब के एक पेड़ पर फल आने में 10 से 12 साल लग जाते थे. लेकिन उस दौरान एक पेड़ पर 70 से लेकर 100 पेटियां पैदावार होती थीं, लेकिन अब लोगों ने जो नई क़िस्म उगाने शुरू करी है. उन में दो साल से ही पेड़ पर फल आना शुरू हो जाता है और ये कहा जा रहा है कि इन पेड़ों की हाइट के हिसाब से पेड़ों के फल की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है. ज़्यादातर लोगों ने अब स्प्रे दवाई या कीटनाशक का प्रयोग करना बंद कर दिया है. इससे उनकी लागत भी कम होती है और साथ ही ऑर्गेनिक सेब की डिमांड ज़्यादा होती है. साथ ही उसकी क़ीमत भी बाज़ार में अच्छी मिलती है. लिहाज़ा लोग अब ऑर्गेनिक खेती की ओर लौटने लगे हैं.

 

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