महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद को लेकर बुधवार को एक अहम बैठक हुई. जिसमें गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात की. इसके बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि मामले के समाधान के लिए दोनों राज्यों के तीन-तीन मंत्रियों की बैठक होगी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक कोई भी राज्य एक दूसरे पर दावा नहीं करेगा.
अमित शाह ने कहा कि दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ अच्छी बात हुई है. दोनों पक्षों के सीएम मौजूद थे, बहुत अच्छा माहौल था, सकारात्मक माहौल था. इस बात पर सहमति हुई है कि विवाद का समाधान लोकतंत्र के अंदर रोड पर नहीं हो सकता, सविंधान के मार्ग से हो सकता है. कुछ फैसले हुए हैं. जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, कोई भी राज्य एक दूसरे पर दावा नहीं करेगा. दोनों ओर से तीन-तीन मंत्री यानी 6 मंत्री बैठेंगे और इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा और गहन करेंगे. छोटे-छोटे और भी मुद्दे हैं, जो अक्सर पड़ोसी राज्यों में देखे जाते हैं, ऐसे मुद्दों का फैसला भी दोनों ओर के मंत्री ही करेंगे.
दोनों राज्यों में कानून और व्यवस्था ठीक रहे, अन्य भाषी नागरिक, व्यापारी या यात्री को किसी भी तरह की परेशानी न झेलनी पड़े, इसके लिए भी एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर की अध्यक्षता में दोनों राज्य कमेटी बनाने के लिए तैयार हुए हैं. जो कानून व्यवस्था बनाने में सहयोग करेगी. पूरे मामले में फेक ट्विटर ने भी बड़ा रोल निभाया है. कुछ फेक अकाउंट नेताओं के नामों से बनाए गए. ये तय हुआ है जहां-जहां भी ऐसे अकाउंट बनाए गए हैं, उन पर एफआईआर दर्ज की जाएगी और इनके पीछे शामिल लोगों का भी जनता के सामने पर्दाफाश किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि मैं दोनों राज्यों के विपक्ष पार्टियों के मित्रों से भी देश का गृहमंत्री होने के नाते अपील करना चाहता हूं कि राजनीतिक विरोध जो भी हो, परंतु दोनों राज्यों के हित में अब इसको मुद्दा न बनाया जाए. जो कमेटी बनी है उसकी रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाए. मुझे विश्वास है कि दोनों राज्यों में कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे जी का ग्रुप इस बात में सहयोग करेंगे कि इसका राजनीतिकरण न किया जाए.
क्या है पूरा विवाद?
आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है. इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की. जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. हालांकि, महाराष्ट्र बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. इस रिपोर्ट पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई थी. महाराष्ट्र दावा करता है कि उन गांवों में मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है, इसलिए वो उसे दिए जाएं. जबकि, कर्नाटक का कहना है कि राज्य की सीमाएं पुनर्गठन कानून के तहत तय हुई हैं, इसलिए वही आखिरी है.