केंद्रीय गृह मंत्रालय (Home Ministry) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (States and UTs) को निर्देश दिया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी पुलिस स्टेशनों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की निरस्त धारा 66 ए (repealed Section 66A of the Information Technology Act, 2000) के तहत मामले दर्ज नहीं करे.
गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को खत्म करने के लिए 24 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुपालन के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के लिए भी कहा है.
दरअसल, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा एक याचिका दायर की गई, जिसमें बताया गया था कि इस धारा के निरस्त होने के सात साल बाद भी मार्च 2021 तक 11 राज्यों की जिला अदालतों में कुल 745 मामले अभी भी लंबित हैं. इन मामलों के आरोपियों पर आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है.
इस याचिका पर गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है. गृह मंत्रालय ने राज्यों से अपील की है कि अगर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई मामला दर्ज किया गया है, तो ऐसे मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह जानकर हैरानी हुई कि राज्य ऑनलाइन संचार को दंडित करने के लिए आईटी अधिनियम की धारा 66 ए का उपयोग कर रहे थे. राज्यों को गृह मंत्रालय की ओर से भेजी गई एडवाइजरी में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में अपने फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए को हटा दिया, आदेश की तिथि से प्रभावी है और इसलिए इसके तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है.