प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में आस्था का सैलाब देखने को मिल रहा है. कई लोग गृहस्थ जीवन छोड़कर अध्यात्म का सहारा लेते भी दिख रहे हैं. जिसको लेकर तमाम चर्चाएं जोरों पर हैं. ताजा मामला फिल्म अभिनेत्री ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने का है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर महामंडलेश्वर के पद का क्या मतलब है, इसकी महत्ता क्या है और ये कैसे काम करते हैं...
भारत में आध्यात्मिक और धार्मिक प्रथाएं सदियों पुरानी हैं. इन मान्यताओं के चलते अलग-अलग आध्यात्मिक नेता और संप्रदाय भी उभरे हैं, जिनकी अपनी विशेषताएं और पद-स्थापनाएं हैं. इन पदों में महामंडलेश्वर का पद भी अहम है. जिसे आमतौर पर विभिन्न अखाड़ों में सम्मानित किया जाता है.
क्या है महामंडलेश्वर का पद
महामंडलेश्वर एक उच्चतम आध्यात्मिक और धार्मिक पद है, जो हिन्दू धर्म के प्रमुख अखाड़ों में मान्य है. यह पद विशेष रूप से उन धार्मिक प्रमुखों के लिए है जो किसी संप्रदाय, पीठ या आध्यात्मिक संगठन के नेतृत्व में होते हैं. महामंडलेश्वर शब्द संस्कृत के "महामंडल " (बड़ा या उच्च मंडल) और ईश्वर से लिया गया है, जो इस पद की श्रेष्ठता को दर्शाता है. इसे कभी-कभी "महामंडलेश्वराचार्य" या "महामंडल स्वामी" के रूप में भी संबोधित किया जाता है. महामंडलेश्वर का कार्य मुख्य रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है.
- आध्यात्मिक नेतृत्व: महामंडलेश्वर धार्मिक समुदाय का मार्गदर्शन करता है. यह अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक ज्ञान और उन्नति के लिए प्रेरित करता है.
-साधु-संप्रदाय का नेतृत्व: यह पद एक धार्मिक समृद्धि का प्रतीक है, जो साधुओं और भक्तों के बीच सामाजिक और धार्मिक एकता को बनाए रखता है.
-धार्मिक फैसलेः महामंडलेश्वर किसी भी धार्मिक विवाद में अंतिम निर्णय देने का अधिकार रखता है. इसका कार्य धार्मिक मामलों में न्यायाधीश के रूप में कार्य करना है.
- आध्यात्मिक अनुष्ठान: महामंडलेश्वर बड़े धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों का नेतृत्व करता है. यह पूजा-पाठ, हवन, और अन्य धार्मिक कृत्यों के संचालन में मुख्य भूमिका निभाता है.
शंकराचार्य के बाद महामंडलेश्वर का पद
सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सबसे बड़ा माना जाता है. शंकराचार्य को वेदों और धर्म का सबसे बड़ा उपदेशक माना जाता है. उनकी उपाधि सभी हिन्दू समुदायों में सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके बाद, महामंडलेश्वर का पद आता है. महामंडलेश्वर का पद शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पद माना जाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां विभिन्न अखाड़ों का शासन और धार्मिक निर्णय होता है. महामंडलेश्वर समाज को मार्गदर्शन देने का कार्य करता है और जब किसी धर्मिक समुदाय को कोई समस्या या विवाद होता है, तो उनका निर्णय अंतिम होता है.
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अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद प्रभावशाली होता है. छत्र-चंवर लगाकर चांदी के सिंहासन पर आसीन होकर महामंडलेश्वर की सवारी निकलती है. महामंडलेश्वर का जीवन त्याग से परिपूर्ण होता है. यह पदवी पाने के लिए कई तरह के त्याग करने होते हैं. पदवी मिलने के बाद तमाम प्रतिबंध से जीवनभर बंधकर रहना पड़ता है.
थानापति से होती है पड़ताल
अखाड़ों से कोई व्यक्ति संन्यास या महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए संपर्क करता है तो उसे अपना नाम, पता, शैक्षिक योग्यता, सगे-संबंधियों का ब्योरा और नौकरी-व्यवसाय की जानकारी देनी होती है. अखाड़े के थानापति के जरिए उसकी पड़ताल कराई जाती है. फिर अखाड़े के सचिव अलग-अलग जांच करते हैं.
कुंभ के दौरान दिए जाते हैं अखाड़ों में पद
महाकुंभ के आयोजन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि इसमें नए साधुओं का अखाड़ा प्रवेश और संन्यासियों को नागा दीक्षा दिलवाई जाती है. इसके लिए जो भी जरूरी अनुष्ठान होते हैं, वह कुंभ के ही साथ आयोजित होते हैं. इसी दौरान अखाड़ों में पद भी दिए जाते हैं, जिनमें कोतवाल, खजांची, भंडारी जैसे पद शामिल होते हैं. इसके साथ ही नागा, सदर नागा जैसी उपाधियां भी मिलती हैं. कुंभ के ही दौरान अखाड़े महंत, श्रीमहंत और महामंडलेश्वर जैसे पद भी देते हैं. इनकी भी एक प्रक्रिया होती है, जिसमें पिंडदान करना और पट्टाभिषेक किया जाना मुख्य होता है.
ममता कुलकर्णी ने जताई थी इच्छा
किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर लक्ष्मी त्रिपाठी ने जानकारी दी कि ममता पिछले दो वर्षों से सनातन धर्म से जुड़ने की इच्छा प्रकट कर रही थीं. पहले वह जूना अखाड़ा में शिष्या थीं और फिर किन्नर अखाड़ा के संपर्क में आईं. उन्होंने अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने की मांग की थी, जिसके बाद उन्हें इसकी प्रक्रिया और जिम्मेदारियों के बारे में बताया गया. लक्ष्मी त्रिपाठी ने बताया कि ममता कुलकर्णी का नाम बदलकर अब 'श्री यामिनी ममता नंद गिरी' हो जाएगा. उन्होंने बताया कि ममता का चूड़ाकर्म (चोटी काटना) और पिंडदान होगा, जो किन्नर अखाड़े की परंपराओं का हिस्सा है.
क्या है किन्नर अखांड़े का इतिहास
किन्नर अखाड़ा की स्थापना 13 अक्टूबर, 2015 को उज्जैन में की गई थी. इस अखाड़े ने पहली बार 2016 में उज्जैन में आयोजित कुंभ मेले में भाग लिया था. इसके बाद 2019 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में इस अखाड़े ने अपने आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में भाग लिया. देश के सबसे बड़े अखाड़े, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े, ने यह कहते हुए किन्नर अखाड़े को स्वयं से जोड़ा कि इससे सनातन परंपरा को मजबूती मिलेगी.2019 के कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े ने न केवल देवत्व यात्रा (पेशवाई का ही एक रूप) निकाली, बल्कि शाही (अब अमृत स्नान) स्नानों सहित सभी छह स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.
अखाड़े के इष्टदेव अर्धनारीश्वर और इष्टदेवी बहुचरा माता हैं. किन्नर अखाड़े की धर्म ध्वजा सफेद रंग की होती है, जिसका किनारा सुनहरे रंग का होता है. जूना अखाड़े के साथ हुए एक समझौते के अनुरूप, किन्नर अखाड़े की धर्म ध्वजा भी जूना अखाड़े के साथ फहराई जाती है.