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Printed cornea: भारतीयों वैज्ञानिकों ने कैसे बनाया 3D प्रिंटेड कॉर्निया?

भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार 3D प्रिंटेड कॉर्निया (printed cornea) बनाया है. इससे आंखों की परेशानी से जूझ रहे मरीजों की मदद हो सकेगी. कॉर्निया आंख की बाहरी परत है, जिसके खराब होने से धुंधलापन या अंधापन आ जाता है. ऐसे में 3D प्रिंटेड कॉर्निया से मरीजों की आंखों की रोशनी बचाई जा सकती है.

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कॉर्निया आंख की बाहरी परत होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
कॉर्निया आंख की बाहरी परत होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पूरी तरह मेड इन इंडिया है 3D कॉर्निया
  • हजारों कॉर्निया ट्रांसप्लांट होते हैं सालाना

भारत को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार 3D प्रिंटेड कॉर्निया बना लिया है. इससे आंखों की परेशानी से जूझ रहे लोगों की मदद हो सकेगी. 

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ये 3D प्रिंटेड कॉर्निया एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (LVPEI), आईआईटी हैदराबाद (IITH) और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है. इस कॉर्निया को एक खरगोश में ट्रांसप्लांट भी किया गया है. इस कॉर्निया को इंसान की आंख के कॉर्नियल टिशू से बनाया गया है. 

इस कॉर्निया को पूरी तरह से देश के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से ही बनाया है. इसमें कोई सिंथेटिक कंपोनेंट नहीं है और इसे मरीजों को भी लगाया जा सकता है.

क्या होता है कॉर्निया?

कॉर्निया आंख की बाहरी परत होती है. ये उभरा हुआ होता है. इसकी वजह से ही आंखें सुरक्षित रहती हैं. कॉर्निया चोट लगने से, संक्रमण से, आंखों के कैंसर से या खराब खान-पान से खराब हो जाता है. इससे धुंधलापन आ जाता है और कई बार रोशनी भी चली जाती है. कॉर्निया खराब हो जाए, तो आंखों की रोशनी बनाए रखने के लिए इसको ट्रांसप्लांट करना पड़ता है. 

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भारत में हर साल हजारों लोग अपने कॉर्निया का ट्रांसप्लांट करवाते हैं. आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच 50,953 कॉर्निया ट्रांसप्लांट हुए थे. वहीं, अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच 27,075 ट्रांसप्लांट हुए थे. 

कैसे बना 3D कॉर्निया?

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, LVPEI, IITH और CCMB के वैज्ञानिकों ने इंसानी आंख से डिसेल्युलराइज्ड कॉर्नियल टिशू और स्टेम सेल्स निकालकर बायोमिमीटिक हाइड्रोजेल बनाया. इसी हाइड्रोजेल से 3D प्रिंटेड कॉर्निया बनाया गया.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ये 3D प्रिंटेड कॉर्निया इंसान की आंख के कॉर्नियल टिशू से तैयार किया गया है, इसलिए ये पूरी तरह से बायोकम्पेटिबल और नैचुरल है. 

LVPEI के वैज्ञानिक डॉ. सयान बसु और डॉ. विवेक सिंह ने बताया कि इससे कॉर्नियल स्कैरिंग (जिसमें कॉर्निया अपारदर्शी हो जाता है) और केराटोकोनस (जिसमें कॉर्निया पतला हो जाता है) जैसी बीमारियों का इलाज करने में मददगार साबित होगा.

उनका कहना है कि ये पूरी तरह से मेड इन इंडिया प्रोडक्ट है और पहला 3D प्रिंटेड ह्यूमन कॉर्निया है जो ट्रांसप्लांटेशन के लिए भी सही है. उन्होंने बताया कि कई बार चोट की वजह से आर्मी जवानों का कॉर्निया खराब हो जाता है. ऐसे में 3D प्रिंटेड कॉर्निया से उन जवानों की रोशनी को बचाया जा सकता है.

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