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एअर इंडिया के 6 पैसेंजर विमान सर्विलांस प्लेन में होंगे तब्दील, चीन-पाकिस्तान सीमा पर होंगे तैनात

चीन और पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में निगरानी बढ़ाने के लिए सरकारी क्षेत्र की कंपनी डीआरडीओ 6 नए विमान विकसित करने जा रही है. इन विमानों को एअर इंडिया के मौजूदा यात्री प्लेन में ही विकसित किया जाएगा.

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टोही विमान (प्रतीकात्मक तस्वीर )
टोही विमान (प्रतीकात्मक तस्वीर )
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चीन-पाकिस्तान सीमा पर किए जाएंगे तैनात
  • एअर इंडिया के इन 6 विमानों को यूरोप भेजा जाएगा

चीन और पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में निगरानी बढ़ाने के लिए सरकारी क्षेत्र की कंपनी डीआरडीओ 6 नए विमान विकसित करने जा रही है. इन विमानों को एअर इंडिया के मौजूदा यात्री प्लेन में ही विकसित किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट में 10,500 करोड़ रुपये खर्च आएंगे. 

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सरकारी सूत्रों ने आजतक से बात करते हुए कहा कि डीआरडीओ इन विमानों को विकसित कर एयरफोर्स को सौंपेगी. इस प्रोजेक्ट को जल्द ही उच्च स्तर पर क्लियरेंस मिलने की संभावना है. 

इन 6 विमानों को Airborne Warning and Control System (AWACS)  के नाम से जाना जाएगा. ये विमान पुराने टोही विमान 'नेत्र' से ज्यादा शक्तिशाली होंगे और मिशन के दौरान दुश्मन के क्षेत्र की 360 डिग्री कवरेज देंगे.

इस काम को शुरू करने के लिए DRDO को कई औपचारिकताएं करनी पड़ेगी, जिनमें एअर इंडिया को फंड ट्रांसफर करना शामिल है. सूत्रों ने कहा कि सरकार के इस फैसले का यह भी असर हो सकता है कि भारत अब यूरोपियन फर्म से 6 एयरबस 330 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की खरीदारी पर विराम लगा दे.  

देखें: आजतक LIVE TV 

बता दें कि DRDO ने पहले इन 6 एयरबस 330 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट पर ही Airborne Warning and Control System विकसित करने की तैयारी की थी. इसके लिए बेंगलुरु में कुछ सुविधाएं बनाई जानी थी. अब नई योजना के मुताबिक एअर इंडिया के इन 6 विमानों को यूरोप भेजा जाएगा. जहां इस विमान में परिवर्तन कर इसमें रडार समेत कई दूसर यंत्र लगाए जाएंगे. 

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सूत्रों ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. डीआरडीओ का एयरबॉर्न स्टडी सेंटर इसे कम समय में पूरा करने की कोशिश कर रहा है. बता दें कि अभी एयरफोर्स के पास तीन PHALCON AWACS सिस्टम है, जिसे इजरायल और रूस से खरीदा गया है. इसके लिए रडार इजरायल द्वारा उपलब्ध कराया जाता है और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट रूस का प्रयोग किया जाता है. 

 

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