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वाराणसी: क्या ज्ञानवापी में हुए सर्वे के आधार पर कोर्ट सुनाएगा फैसला? जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट की गुरुवार की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी. अब मामले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने जिस वक्त वाराणसी कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगाई तब वहां सुनवाई जारी ही थी, ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े सर्वे रिपोर्ट पेश की जा रही थी.

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सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वे को लेकर सुनवाई आज (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वे को लेकर सुनवाई आज (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पूजा स्थल अधिनियम 1991 को आधार बनाकर सर्वे को दी है चुनौती
  • सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को मुस्लिमों को मस्जिद में नमाज पढ़ने की दी थी छूट

ज्ञानवापी परिसर का सर्वे पूरा हो चुका है. सर्वे के तहत मस्जिद में मंदिर होने के सबूत मिलने के दावे किए जा रहे हैं. ऐसे में अब कोर्ट का अगला कदम क्या होगा? क्या सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद केस का निपटारा हो जाएगा? कानून के जानकारों की मानें तो ऐसा नहीं होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी सर्वे की कानूनी वैधता को चुनौती दी जा चुकी है. इसके लिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को आधार बनाया गया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ज्ञानवापी में शिवलिंग और प्राचीन मंदिर के सबूत मिलने के बाद भी हिंदू पक्ष का केस खारिज हो सकता है. 

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निर्णय लेने में मदद करता है सर्वे, रिजेक्ट भी हो सकता है

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज गुप्ता इस मामले में कहते हैं कि लोकल कमिश्नर की रिपोर्ट किसी मामले में निष्कर्ष तक पहुंचने में मदद करती है. जहां तक रिपोर्ट का सवाल है, अगर कोर्ट के सामने रिपोर्ट को लेकर आपत्ति दाखिल की जाएगी और अगर कोर्ट को लगेगा तो वह कमिश्नर को बुलाकर पूछताछ कर सकता है. अगर रिपोर्ट स्वीकार हो जाती है तो यह प्रमाण का हिस्सा हो जाएगी. अगर कोर्ट को रिपोर्ट अधूरी या उसमें कोई कमी नजर आएगी तो वह उसे रिजेक्ट भी कर सकता है.

अगर पूजा करने की मांगी इजाजत तो सर्वे बेवजह कराया

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन है या नहीं ? लेकिन हिंदू पक्ष सर्वे को पूरी तरह कानूनी साबित करने के लिए तर्क दे रहा है.

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पहला तर्क तो यह है कि ज्ञानवापी परिसर में मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की अनुमति मांगी गई है न कि मंदिर निर्माण की. दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि मस्जिद उसी जमीन पर बन सकती है जिस पर पहले से कोई स्ट्रक्चर न हो. ऐसे में ज्ञानवापी को मस्जिद नहीं कहा जा सकता. कानून के जानकार मानते हैं कि अगर पूजा करने की इजाजत मांगी गई है तो फिर सर्वे करना बेवजह है.

बाबरी मस्जिद पर आए फैसला का ले सकते हैं रेफरेंस

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय के चड्ढा का कहना है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के मुताबिक अगर कोई प्राचीन धार्मिक स्थल में बदलाव करने की कोशिश करता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी केस में सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुना सकता है, इसका अंदाजा लगाने के लिए बाबरी मस्जिद विवाद पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का रेफरेंस लिया जा सकता है. ये हैं फैसले के कुछ अहम अंश-

- पैराग्राफ नंबर 652 में SC में कहा था कि यह कोर्ट हिंदू पूजा स्थलों के खिलाफ मुगल शासकों की कार्रवाइयों के दावों पर विचार नहीं कर सकता है. हमारा इतिहास उन कार्यों से भरा पड़ा है जो नैतिक रूप से गलत माना गया है और जिनपर भयंकर बहसें छिड़ जाएंगी.

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- पैराग्राफ नंबर 82 में सुप्रीम कोर्ट ने The Places of Worship Act, 1991 पर कहा था कि यह कानून हर धार्मिक समुदाय को विश्वास दिलाता है कि उनके पूजा स्थल को संरक्षित रखा जाएगा, उनके चरित्र को नहीं बदला जाएगा.

- पैराग्राफ नंबर 82 में सुप्रीम कोर्ट कहा था कि The Places of Worship Act, 1991 भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा के लिए डिजाइन किया गया एक कानूनी साधन है.

क्या कहता है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 

1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया था. इस एक्ट की धारा-3 किसी भी पूजा या उपासना स्थल की स्थिति में बदलाव पर रोक लगाने की बात कहती है. कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस अवस्था में वह वैसा ही बना रहेगा. वहीं धारा-4 में कहा गया है कि किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने के संबंध में कोई मुकदमा नहीं दाखिल किया जा सकता है.

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