पिछले महीने तक विशेषज्ञों और दिग्गजों की ओर से लगातार दावा किया जाता रहा कि अगली सर्दियों में लद्दाख में जारी भारत-चीन सैन्य गतिरोध का जवाब किस तरह से दिया जा सकता है. आपने पहले ऐसी कई तस्वीरें भी देखी होंगी जिसमें भारत और चीन के सैनिक सर्दियों के मौसम में बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्र में किस तरह गरम कपड़ों में ढके होते हैं. दोनों तरफ से इस बार भी जबर्दस्त ठंड से बचने को लेकर खासी तैयारी की जा रही है.
खैर, अब और इंतजार नहीं करना है. वह खतरनाक सर्दी आ गई है.
पैंगोंग सेक्टर में, जहां 29 अगस्त से स्थिति विशेष रूप से तनावपूर्ण है, इस हफ्ते पैंगोंग झील के किनारे जमने लगे हैं. फिंगर 4 में जहां भारतीय और चीनी सैनिक हैं वहां का तापमान गिरकर शून्य से 4 डिग्री नीचे चला गया है. अक्टूबर के मध्य तक, झील की सतह पूरी तरह से जम जाएगी.
सब-सेक्टर नॉर्थ में -14 डिग्री तापमान
लद्दाख के सब-सेक्टर नॉर्थ (SSN) के डेपसांग और दौलत बेग ओल्डी क्षेत्रों में, न्यूनतम तापमान पहले से ही माइनस 14 डिग्री के आसपास पहुंच गया है, और हर गुजरते दिन के साथ तेजी से तापमान में गिरावट आएगी.
29 अगस्त से 8 सितंबर के बीच दोनों पक्षों के सैनिकों की ओर से चेतावनी के रूप में 4 बार हवा में गोलीबारी की जा चुकी है. मौसम में तेजी से बदलाव आने लगा है. पिछले चार दिनों में, भारत की ओर से फिंगर्स एरिया में उच्च ऊंचाई वाले स्थानों से स्ट्रेचर के जरिए पीएलए सैनिकों को इलाज के लिए ले जाते हुए देखा गया है. इस दौरान तेज हवा और अत्यधिक ठंड की स्थिति और खराब होती जा रही है.
हर गुजरते दिन के साथ यहां पर स्थितियां और खराब होती जाएंगी. वहां से हटाए गए सैनिकों की जगह नियमित रूप में नए सैनिकों को उनकी जगह लाया जा रहा है और यह सब कुछ भारतीय पोजिशन से महज एक किलोमीटर से कम की दूरी है.
सैन्य सूत्रों का कहना है कि फिंगर 4 क्षेत्र से निकाले गए चीनी सैनिकों को अंतरिम उपचार के लिए फिंगर 6 के पास एक फील्ड अस्पताल में ले जाया जा रहा है. दोनों पक्षों में सैनिकों की संख्या बढ़ने से डेपसांग क्षेत्र के दोनों तरफ फील्ड अस्पताल खुल गए हैं, जहां पैंगोंग क्षेत्र को लेकर तनाव बना हुआ है.
अब बदल गया माहौल
भारतीय और चीनी फॉरवर्ड पोस्ट एक-दूसरे की सेना पर मौसम के प्रभाव पर लगातार नजर रख रहे हैं. जबकि एक साल पहले तक स्थिति यह थी कि दोनों ओर के सैनिक एक-दूसरे की मेडिकल स्तर पर मदद किया करते थे. लेकिन अब बदले हालात में अविश्वास और शत्रुता के माहौल में ऐसा सोचना असंभव सा है.
निश्चित रूप से, ऐसा नहीं है कि भारतीय सैनिक उच्च ऊंचाई की स्थिति के लिए असुरक्षित नहीं हैं. हालांकि चीनी पोस्टों की तरह, भारतीय पोस्टों में भी विशेष चिकित्सा उपकरणों और स्ट्रेचर के साथ मेडिकल की सुविधा उपलब्ध हैं, जिसमें सैनिकों को भीषण ठंड से होने वाले शीतदंश (frostbite), चिलब्लेन्स (chilblains) और हाई अल्टीट्यूड पुलमोनरी ओडेमा (HAPO) जैसे खतरनाक स्थितियों के शिकार लोगों के इलाज की व्यवस्था की गई है.
हालांकि भारतीय सेना के सैनिकों को पैंगोंग झील की तुलना में कहीं अधिक ऊंचाई पर रहने का लंबा और गहरा अनुभव है. भारतीय सेना बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों सियाचिन ग्लेशियर और साल्टोरो रिज में साल भर तैनात रहती है.
पैंगोंग हाइट्स में जहां 16,000 फीट की ऊंचाई पर सैनिक तैनात किए जाते हैं तो सियाचिन में पद करीब 22,000 फीट की ऊंचाई पर सैनिकों की तैनाती होती है. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 29,000 फीट है. दशकों से बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों की तैनाती की वजह से भारतीय सेना को ऐसी परिस्थितियों का सामना करने का खासा अनुभव है.