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पैंगोंग विवादः सेना...सख्ती...सूझबूझ...साल भर बाद ऐसे रास्ते पर आया चीन!

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को देश की संसद में ऐलान किया कि भारत-चीन पूर्वी लद्दाख में जारी विवाद को खत्म करने पर सहमत हुए हैं. दोनों ही देश की सेनाएं पैंगोंग लेक के नॉर्थ-साउथ इलाके से अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाएगा.

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लद्दाख में भारतीय सेना ने जमाए रखे अपने पैर (फाइल: PTI)
लद्दाख में भारतीय सेना ने जमाए रखे अपने पैर (फाइल: PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भारत और चीन के बीच लद्दाख विवाद पर समझौता
  • पैंगोंग लेक से पीछे हटेंगी दोनों देश की सेनाएं

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के इलाके में पिछले करीब दस महीनों से जारी सीमा का विवाद अब खत्म होने की ओर है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को देश की संसद में ऐलान किया कि भारत-चीन पूर्वी लद्दाख में जारी विवाद को खत्म करने पर सहमत हुए हैं. दोनों ही देश की सेनाएं पैंगोंग लेक के नॉर्थ-साउथ इलाके से अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाएगा.

पिछले साल अप्रैल में शुरू हुए इस विवाद के पूरे कार्यकाल में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर काफी तनाव बना रहा. हजारों की संख्या में जवानों की तैनाती हुई, संघर्ष भी हुआ और यहां तक की गोली भी चली. लेकिन आखिरकार भारत और चीन दोनों ही इस सहमति पर पहुंचे हैं कि इस विवाद को खत्म किया जाए.

ऐसे में आखिरकार भारत ने किस तरह चीन को उसकी जिद से पीछे हटाया और बॉर्डर इलाके को खाली करने पर मजबूर किया. पूरे विवाद के कार्यकालमें भारत की रणनीति पर एक नज़र डालें...

भारत और चीन के बीच ये विवाद अप्रैल 2020 में शुरू हुआ था, तब चीन की सेना ने पैंगोंग लेक के पास तय LAC को पार किया था. साथ ही चीन ने पुरानी LAC को मानने से इनकार किया, पैंगोंग लेक के फिंगर 4 तक आया और वहां अपने कैंप बनाने शुरू कर दिए. हालांकि, भारत के अनुसार पैंगोंग लेक के फिंगर 8 तक LAC जाती है लेकिन चीन इसे मानने से इनकार करता रहा.

इन तीन मोर्चों पर भारत के प्रभाव ने चीन को पीछे धकेला...

1.    सेना की तैनाती
ड्रैगन की चुनौती से निपटने के लिए भारत ने कई मोर्चों पर काम किया. फिर चाहे हो रणनीतिक हो या फिर राजनीतिक. अप्रैल में जब पूर्वी लद्दाख के पास चीन ने चुनौती देना शुरू किया और पूर्व की स्थिति ना लागू करने की बात कही तो भारत ने भी LAC पर अपनी सेना की मौजूदगी को बढ़ा दिया था.

सरकार की ओर से LAC पर सेना की मौजूदगी को बढ़ाया गया, चीन ने जब करीब दस हजार जवानों की तैनाती की तो भारत ने भी इतने ही जवानों को LAC पर लगा दिया. इतना ही नहीं मई के महीने में भारत की ओर से चीन सीमा पर टैंकों की तैनाती कर दी गई थी. वक्त बीतने के साथ-साथ भारत की सतर्कता बढ़ती गई और सितंबर-अक्टूबर तक सैनिकों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई थी. 

चीन सीमा पर तनाव के बीच भारत की ओर से टाइप 15 लाइट टैंक्स, इंफैंट्री फाइटिंग व्हिकल्स, AH4 हॉवित्जर गन्स, HJ-12 एंटी टैंक्स गाइडेड मिसाइल्स, NAR-751 लाइट मशीनगन, W-85 हैवी मशीनगन की तैनाती कर दी गई थी.

सेना के मोर्चे पर भारत और चीन के बीच तनाव जून महीने में अधिक हो गया था, क्योंकि जून में गलवान घाटी में भारत-चीन के जवान आमने-सामने आ गए थे. इस हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि चीन को भी बड़ा नुकसान हुआ था. ऐसा दशकों बाद हुआ था जब चीन सीमा पर हिंसा में किसी जवान की जान गई हो.

जमीन पर तैनाती के अलावा आसमान में भी भारतीय सेना ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई. लद्दाख के आसमान में तेजस, राफेल, मिग, अपाचे, चिनूक समेत कई सेनाओं के विमानों और एयरफोर्स के जवानों ने मोर्चा संभाला और चीन को साफ संदेश देने का काम किया.

2.    दिल्ली में सरकार की सख्ती
एक ओर जहां सीमा पर भारत सैन्य मोर्चे पर मजबूत होता जा रहा था और लगातार चीन को जवाब दे रहा था. वहीं दिल्ली में भारत सरकार की ओर से भी सख्त रुख अख्यितार किया गया. मोदी सरकार की ओर से सबसे पहले सेना को खुली छूट दी गई और सैन्य लेवल पर ही मसले को सुलझाने पर जोर दिया. इसके अलावा जब सैन्य लेवल पर बात नहीं बनी, तब चीन मामले के विशेषज्ञ कहे जाने वाले एनएसए अजीत डोभाल ने मोर्चा संभाला. साथ ही विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री लेवल पर भी सरकार ने अपनी ओर से वार्ता की.

अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो उन्होंने इस मसले पर सर्वदलीय बैठक की, साथ ही चीन को सख्त संदेश दिया. इतना ही नहीं जब चीन के साथ विवाद अपने उच्च स्तर पर था, तब पीएम मोदी ने अचानक लद्दाख का दौरा किया और जवानों से मुलाकात कर अपने जवानों का हौसला बढ़ाया. यहां से पीएम मोदी ने संदेश दिया कि विस्तारवाद का जमाना अब खत्म हो गया है.

सैन्य-कूटनीति से इतर भारत ने चीन के प्रति रवैये में सख्ती बरती. सरकार की ओर से कई चीनी एप पर बैन लगा दिया गया, देश में कई बड़े प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों को हाथ धोना पड़ा और चीनी निवेश के विषय पर देश में भी अलग माहौल बना. यही कारण रहा कि सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विश्व में चीन के प्रति एक अलग माहौल खड़ा हुआ और कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश की गई.

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3.    पहाड़ियों पर कब्जे की सूझबूझ
भारत-चीन विवाद के बीच कई मौके ऐसे आए, जहां तमाम चर्चाओं के बाद भी चीन पीछे नहीं हटना चाह रहा था. तब भारतीय सेना ने उसे उसके ही जाल में फंसा दिया. जब चीन LAC पर अलग-अलग तरीके से अपनी ताकत बढ़ा रहा था, तब भारतीय सेनाओं ने अलग-अलग पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया.

इन पहाड़ियों पर कब्जे से भारत को रणनीतिक फायदा हुआ और चीन को झुकना पड़ा. भारतीय सेना ने मागर हिल, गुरुंग हिल, रेजांग ला राचाना ला, मोखपारी और फिंगर 4 रिज लाइन की कई पहाड़ियों पर कब्जा किया था. इन पहाड़ियों पर कब्जे के बाद ही सैन्य लेवल पर बात करने और चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. 

अब भारत और चीन के बीच क्या हुआ समझौता? 
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को देश की संसद में भारत-चीन के बीच हुए समझौते को लेकर जानकारी दी. राज्यसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को देश की संसद में भारत-चीन के बीच हुए समझौते को लेकर जानकारी दी.

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राज्यसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बताया गया कि जब दोनों सेनाएं पूरी तरह से हट जाएंगी, उसके बाद भी 48 घंटे के भीतर दोनों देशों के बीच बैठक होगी. चीन अपनी सेना की टुकड़ी को नॉर्थ बैंक में फिंगर 8 के पूर्व में रखेगा, भारत फिंगर 3 के पास अपने परमानेंट बेस पर रखेगा. ऐसा ही तरीका साउथ बैंक के पास अपनाया जाएगा. अप्रैल 2020 के बाद दोनों देशों ने नॉर्थ और साउथ बैंक पर निर्माण किया है, उसे हटाया जाएगा. हाल के कुछ वक्त के लिए अस्थाई स्तर पर पेट्रोलिंग को खत्म कर दिया गया है. 


 

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