भारत सरकार, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) और असम के बीच त्रिपक्षीय शांति समझौते पर आज शुक्रवार को हस्ताक्षर हो गए हैं. 40 साल में पहली बार सशस्त्र उग्रवादी संगठन उल्फा से भारत और असम सरकार के नुमाइंदे के बीच शांति समाधान समझौता मसौदे पर हस्ताक्षर हुए हैं. भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम है. कारण, उल्फा पिछले कई सालों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था.
इसको लेकर दिल्ली में अहम बैठक हुई, जिसमें पूर्वोत्तर में शांति समझौता के लिए उल्फा के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा सरमा, गृह सचिव अजय भल्ला, असम के DGP जीपी सिंह सहित उल्फा ग्रुप के सदस्य मौजूद रहे.
परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं है. कारण, उसने सरकार द्वारा प्रस्तावित समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है.
उल्फा और भारत सरकार के बीच आज हुए समझौते के मुख्य पॉइंट-
- असम के लोगों की सांस्कृतिक विरासत बरकरार रहेगी.
- असम के लोगों के लिए और भी बेहतर रोजगार के साधन राज्य में मौजूद रहेंगे.
- इनके काडरों को रोजगार के पर्याप्त अवसर सरकार मुहैया करवाएगी.
- उल्फा के सदस्यों को जिन्होंने सशस्त्र आंदोलन का रास्ता छोड़ दिया है, उन्हें मुख्य धारा में लाने का भारत सरकार हर संभव प्रयास करेगी.
असम के भविष्य के लिए उज्जवल दिन: अमित शाह
उल्फा के साथ समझौते पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह असम के भविष्य के लिए एक उज्ज्वल दिन है. राज्य और उत्तर-पूर्व में पिछले कई दशकों से हिंसा देखी जा रही है. जब से नरेंद्र मोदी आए हैं हम पूर्वोत्तर को हिंसा मुक्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं. पिछले पांच वर्षों में पूर्वोत्तर में 9 शांति समझौते (सीमा शांति और शांति समझौते सहित) हुए.
उन्होंने बताया कि असम के 85% इलाकों से AFSPA हटाया गया. त्रिपक्षीय समझौते से असम में हिंसा का समाधान हो सकेगा. उल्फा द्वारा दशकों तक की गई हिंसा में 10,000 लोग मारे गए. यह असम में उग्रवाद का संपूर्ण समाधान है. सभी धाराओं को समयबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा. आज उल्फा के 700 कैडरों ने आज आत्मसमर्पण कर दिया.
एक हफ्ते से उल्फा के 20 नेता दिल्ली में थे मौजूद
दरअसल, उल्फा यानी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के एक धड़े के 20 नेता पिछले एक हफ्ते से दिल्ली में थे. भारत सरकार और असम सरकार के आला अधिकारी इस समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर के लिए उन्हें तैयार कर रहे थे. उल्फा के जिस धड़े ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं वह अनूप चेतिया गुट का है. 2011 से उल्फा के इस गुट ने हथियार नहीं उठाए हैं लेकिन यह पहली बार है जब बकायदा एक शांति समझौते का मसौदा तैयार किया गया है और दोनों पक्षों के नुमाइंदों ने उस पर हस्ताक्षर किए हैं. पूर्वोत्तर में सशस्त्र उग्रवादी संगठनों से इस साल भारत सरकार का यह चौथा बड़ा समझौता है.
1979 में हुआ उल्फा का गठन
बता दें कि उल्फा का गठन 1979 में "संप्रभु असम" की मांग के साथ किया गया था. तब से, यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था. उल्फा के साथ भारत सरकार ने कई बार बात करनी चाही. लेकिन उल्फा में आपस में टकराव से इस कोशिश में बाधा पैदा होती रही. आखिरकार 2010 में उल्फा दो भागों में बंट गया. एक हिस्से का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा ने किया, जो सरकार के साथ बातचीत के पक्ष में थे और दूसरे का नेतृत्व बरुआ के नेतृत्व में था, जो बातचीत के विरोध में था. उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट 3 सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था.