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2020 में एक बड़ी जंग अस्पतालों में लड़ी गई. कोरोना वायरस महामारी से लोगों की रक्षा करने के मोर्चे पर बड़ी संख्या में फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स की जानें गईं. पिछले साल भारतीय सशस्त्र सेनाओं में जितने जवान हताहत हुए, उससे सात गुना संख्या में हमने अपने डॉक्टरों को खोया. 2020 में लाइन ऑफ ड्यूटी पर कम से कम 734 डॉक्टरों की जान गई, वहीं इसी साल 106 सुरक्षाकर्मियों ने सर्वोच्च बलिदान दिया.
AIIMS रेजिडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन (RDA) के पूर्व अध्यक्ष हरजीत सिंह भट्टी ने इंडिया टुडे डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) को बताया, “कोविड-19 नया वायरस था और मेडिकल विज्ञान के लिए नई चुनौती, डॉक्टर्स नहीं जानते थे कि इससे कैसे निपटना है. निजी सुरक्षा उपकरण (PPE) किट्स पर्याप्त संख्या में उपलब्ध न होने से डॉक्टर्स के लिए संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया, जिससे बड़ी संख्या में मौतें हुईं.”
डॉ. भट्टी प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट्स फोरम (PMSF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने आगे कहा, “महामारी के शुरुआती दिनों में भारत में डॉक्टर्स को कोविड वार्ड्स में 14 दिनों के लिए काम करना था. इसके बाद उन्हें अगले 14 दिन के लिए क्वारनटीन में जाना होता था जिससे कि उनको पेश आए खतरे को मापा जा सके और जल्दी डायग्नोसिस किया जा सके. हालांकि इस नियम की धीरे धीरे अनदेखी की जाने लगी क्योंकि केसलोड बहुत ज्यादा हो गया था, डॉक्टर्स को सिर्फ तभी टेस्ट किया गया जब उनमें लक्षण दिखाई देने लगे.”
डॉक्टर्स के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और नीति से जुड़ी खामियों ने दिक्कतें बढ़ाईं, वहीं उनकी अपनी लाइफस्टाइल डिजीज ने भी उन्हें नोवेल वायरस से पेश आने वाला खतरा बढ़ाया.
मुजफ्फरपुर के एडीशनल चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. बिनय शर्मा के मुताबिक, 'डॉक्टर्स की बड़ी संख्या में मौतों के लिए कोमॉर्बडिटी (सह-रुग्णता) भी बड़े कारणों में से एक रही. सारी सावधिनयों के बावजूद डॉयबिटीज, हायपरटेंशन आदि लाइफस्टाइल डिजीज ने डॉक्टर्स के लिए संक्रमण का खतरा और बढ़ा दिया.'
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कोविड-19 के खिलाफ जंग में डॉक्टर्स और अन्य हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए वायरस का खतरा अधिक रहा क्योंकि उन्हें संक्रमण के विभिन्न स्तरों वाले अलग अलग मरीजों को अटेंड करना पड़ता था.
हालांकि, डॉक्टर्स और अन्य हेल्थकेयर वर्कर्स की कोशिशों ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक्टिव केसों की संख्या को नीचे रखने में बेहतर स्थिति पर पहुंचाया.
भारत में सोमवार को एक्टिव केसों की संख्या 2 लाख से थोड़ी ज्यादा रही. संसद के दस्तावेज के मुताबिक यद्यपि भारत की मौजूदा अनुमानित 135 करोड़ की जनसंख्या में डॉक्टर-आबादी का अनुपात 1:1343 है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक 1:1000 है.
734 डॉक्टर्स की मौत के मायने हैं कि देश में करीब दस लाख मरीजों के लिए और डॉक्टर्स की अनुपलब्धता.