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COP29 में भारत ने खारिज किया 300 अरब डॉलर का पैकेज, कहा- इतने पैसों से पूरी नहीं होंगी विकासशील देशों की जरूरत

भारत ने अजरबैजान की राजधानी बाकू में 29वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) के दौरान विकासशील देशों की मदद के लिए बनाए गए 300 अरब डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज को खारिज कर दिया है. भारत ने इस रकम को विकासशील देशों की जरूरतों के मुकाबले काफी कम बताया है.

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COP29
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अजरबैजान में क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर चल रहे कोप ट्वेंटी नाइन यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) समाप्त हो गया है, लेकिन दुनिया भर के तमाम देश एक व्यापक समझौते पर पहुंचने में कुछ हद तक ही कामयाब रहे हैं. दरअसल, भारत ने अजरबैजान की राजधानी बाकू में 29वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) के दौरान विकासशील देशों की मदद के लिए बनाए गए 300 अरब डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज को खारिज कर दिया है. भारत ने इस रकम को विकासशील देशों की जरूरतों के मुकाबले काफी कम बताया है. 

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दुनिया में जियोपालिटकल स्तर पर हो रहे द्वंद्व और बदलावों व विश्व में जीवाश्म ईंधन के सबसे बड़े उत्पादक देश अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति चुने जाने जैसी बड़ी और मुश्किल घटनाओं के बीच भी यूएन क्लाईमेट टॉक्स में सदस्य देश एक समझौते पर पहुंचने में सफल रहने का दावा किया गया, लेकिन अंतिम समय पर भारत ने दखल दिया और कोप ट्वेंटी नाइन की आखिरी डॉक्यूमेंट पर आपत्ति जताई है. 

भारत ने 300 अरब डॉलर का क्लाइमेट पैकेज खारिज किया

भारत की प्रतिनिधित्व कर रही इकोनमिक अफेयर्स विभाग में सलाहाकर चांदनी रैना ने इस डाक्यूमेंट को स्वीकारने पर आपत्ति जताई और कहा, ‘मुझे खेद है कि यह डाक्यूमेंट एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं है. हमारे विचार में यह हम सबके सामने खड़ी विशाल चुनौती का सामना नही कर सकेगा. इस कारण हम इस डाक्यूमेंट का समर्थम नहीं करते हैं.’ 

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बता दें कि बीते रविवार को COP29 में विकासशील देशों को 2035 तक हर साल 300 बिलियन डॉलर देने पर सहमति बनी है. इसका मकसद विकासशील देशों को फॉसिल फ्यूल में कमी करने करने के लिए बढ़ावा देना, क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए तैयार करना और इससे होने वाले नुकसान को दूर करने में मदद करना है. फाइनेंस कॉप कहे जा रहे इस बैठक में अमीर देशों और ग़रीब देशों के बीच लकीर साफ तौर पर दिखाई दी, जहां पूरी वार्ता के दौरान विकसित देशों ने अपनी ज़िम्मेदारियां विकासशील देशों की ओर मोड़ दी. 

युद्ध और कोविड आपदा के कारण और बढ़ी अमीर और गरीब देशों के बीच खाई और विश्वास की कमी का असर काप में देशों की प्रतिक्रियाओं पर साफ दिखा, लेकिन विकासशील देशों ने ग्लोबल नार्थ में साझेदारों के साथ मिलकर काम करते हुए जलवायु परिवर्तन रोकने को 2035 तक 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के लक्ष्य के सापेक्ष वैश्विक अर्थतंत्र को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास किया है. अमीर देशों ने पहली बार खासकर दक्षिण की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने साल 2035 तक 300 बिलियन अमेरिकी डालर के वित्त प्रबंधन की व्यवस्था को सफल बनाने के लिए कुछ भुगतान पर भी रजामंदी दी. भले ही इससे व्यय में बड़ी वृद्धि न दिखती हो, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर जलवायु संबंधी एक्शन के लक्ष्य को पाने की दिशा में अहम कदम जरूर है. 

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COP29 से दुनिया को क्या हासिल हुआ?

फाइनेंस  के मुद्दे पर दुनिया के तमाम देशों ने ये तय किया कि 300 बिलियन डालर के कोर टारगेट तक 2035 तक पहुंचना तो ओवरआल टारगेट 1.3 ट्रिलियन डालर रखना चाहिए. वार्ता में विकासशील देशों को स्वैच्छिक योगदान के लिए प्रेरित करना भी तय हुआ. एडाप्टेशन गारंटी के तहत सर्वाधिक खतरे की जद वाले देशों के लिए एडाप्टेशन फंड से मदद तीन गुनी करने का सोचा गया है. वहीं, रिब्यू मैकेनिज्म 1.3 ट्रिलियन डालर के कुल लक्ष्य की समीक्षा के लिए 2026 और 2027 में रिव्यू रिपोर्ट्स की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा स्माल आईलैंड्स, एलडीसी, अफ्रीका पैसिफिक एलडीसी और एसआईडीसी के लिए फाइनेंस बढ़ाने की तैयारी के साथ 2026 व 2027 में न्यूनतम एलोकेशन की व्यवस्था की जाएगी. क्वालिटी आफ डालर पब्लिक और ग्रांट आधारित आर्थिक मदद पर जोर दिया गया है. लास और डैमेज फाइनेंसिंग में अंतर की पहचान के साथ उन्हें कम करने पर जोर दिया गया है. 

क्लाईमेट ट्रेंडस की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि ‘सौ बिलियन डालर प्रतिवर्ष के स्थान पर नया क्लाईमेट फाइनेंस लक्ष्य विकसित देशों से पैसा एकत्र कर पाने की मुश्किलों से घिरा है. सभी स्रोतों से 2035 तक 300 बिलियन डालर जुटाना भी अनिश्चित और अस्पष्ट है, लेकिन फिर भी विश्व में बढ़ रहे तनावके बीच सर्वश्रेष्ठ उपाय है. फाइनल एग्रीमेंट पर भारत ने आपत्ति की है. धन जुटाने के लिहाज से यह अपर्याप्त है और कड़वी गोली निगलने के समान है. हालांकि कम विकसित देशो के लिए धन की व्यवस्था करने का कदम थोड़ी प्रगति वाला है. कुछ देशों के लिए जलवायु परिवर्तन जीवन और मृत्यु का सवाल है.’

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टेरी में अर्थ साइंस और क्लाईमेट चेंज के डिस्टिंग्सिश्ड फेलो और आईपीसी एआर6 डब्लूजी3 के लेखक दीपक दासगुप्ता कहते हैं कि ‘पंडोरा बाक्स में उम्मीद आखिरी आइटम था. 300 बिलियन पर रजामंदी स्वागत योग्य है अगर यह ग्रांट या अत्यधिक रियायत वाले धन के रूप में हो न कि एमडीबी या निजी क्षेत्र से लोन के रूप में. दूसरी बात यदि 1.3 ट्रिलियन डालर का लक्ष्य टिका रहता है तो स्वागत योग्य है.’ अगली फऱवरी तक अधिकांश विकसित देशों को आगे बढ़कर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना होगा. कॉप29 का परिणाम दुनिया भर में स्टाक मार्केट, बोर्डरूम और सरकारी विभागों में हो रहे फैसलों को समर्थन देने का भी स्पष्ट संकेत देता है. 

बाकू में यूनाईटेड किंगडम और ब्राजील ने बहुत मजबूत राष्ट्रीय क्लाईमेट प्लान सामने रखे हैं. जी20 देशों ने इस बात का इशारा किया कि वे अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंशियल सिस्टम और टैक्स प्रदूषकों को सुधारने की जरूरत को समझते हैं ताकि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अधिक धन की व्यवस्था की जा सके. यह फैसला चाहता है कि ब्राजील में अगले साल होने वाले कॉप30 में एक सकारात्मक हल निकले और विश्व में इस बढ़ती समस्या के समाधान के लिए धन की व्यवस्था हो. 

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने इसे परिवर्तनकारी कॉप कहा है और उनके पास मौका होगा कि वह कॉप30 को एक परिणाम देने वाला कार्यक्रम बनाएं. उत्सर्जन अब भी गलत दिशा मे ही हो रहे हैं और जब दुनिया में बीते 20 साल में  चरम मौसमी घटनाओं के कारण करीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है और इनका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है तब लगातार बिगड़ रहे मौसम से दुनिया को हर साल 227 बिलियन डालर का नुकसान हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा कि अंतिम पाठ में कहा गया है कि नया वित्त लक्ष्य मानवता के लिए एक बीमा पॉलिसी है, जो हर देश को प्रभावित करने वाले बिगड़ते जलवायु प्रभावों के बीच है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को उम्मीद है कि 2024 में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा निवेश पहली बार दो ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो जाएगा. 

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपने समापन वक्तव्य में कहा कि ऋणग्रस्त आपदा से त्रस्त और नवीकरणीय क्रांतियों में पीछे छूट गए विकासशील देशों को धन की अत्यंत आवश्यकता है और 1.5 डिग्री की सीमा को जीवित रखने के लिए कॉप 29 पर समझौता अत्यंत आवश्यक है और देशों ने इसे पूरा किया है." वहीं विशेषज्ञ इसे भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए सबसे बेहतर संभव समझौता मानते हैं. भारत ने वैश्विक दक्षिण की चिंताओं का समर्थन किया और इस पाठ को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करता. कई देशों ने भारत के बयान का समर्थन किया है. 

भारत ने अंतिम समझौते को अपनाए जाने पर आपत्ति जताते हुए इसे एक "दृष्टि भ्रम" बताया, जो वास्तविक जलवायु चुनौतियों का समाधान नहीं करेगा. 2035 तक जलवायु वित्त को तीन गुना बढ़ाकर 300 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष करने पर सहमति और 2035 तक सभी सार्वजनिक और निजी स्रोतों से इसे बढ़ाकर 1.3 ट्रिलियन डॉलर करने का प्रयास किया जाएगा. 2025 में आने वाली राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रगति को मापने में महत्वपूर्ण होंगी. यू.के. ने 2035 तक 1990 के स्तर से 81% तक उत्सर्जन कम करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और अन्य देशों से भी इसका अनुसरण करने का आग्रह किया है. 

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तमाम विपरीत परिस्थितियों और अव्यवस्थित प्रक्रिया के बावजूद सौदा हो गया COP29 में अमीर देशों ने लगभग पूरी तरह से जिम्मेदारी को अन्य बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं पर डालने पर ध्यान केंद्रित किया और सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोगों के लिए आवश्यक तत्काल सहायता और ध्यान को नजरअंदाज कर दिया. जवाब में अमीर और गरीब देशों के बीच विश्वास की कमी स्पष्ट थी. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय प्रणाली में बदलाव किया गया. अमीर देशों ने 2035 तक सालाना 300 बिलियन डॉलर खर्च करने का वादा किया, जिसमें प्रमुख दक्षिणी अर्थव्यवस्थाओं का योगदान भी शामिल है. हालांकि यह खर्च में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं है, लेकिन यह दीर्घकालिक वैश्विक जलवायु साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है. 

इस बार जीवाश्म ईंधन अर्थव्यवस्थाएं विफल रहीं, लेकिन अगर इस प्रक्रिया को भविष्य में तेजी से आगे बढ़ाना है तो इसके कारण पैदा होने वाली जड़ता को दूर करना होगा. सी.ओ.पी. के अंतिम घंटों में जी-20 नेताओं और कमजोर देशों ने मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की है. अब सबकी निगाहें ब्राज़ील पर हैं. इसका नतीजा ब्राज़ील में होने वाले COP30 के सकारात्मक नतीजों पर निर्भर करता है और संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों की मदद के लिए धन सुनिश्चित करता है. अब ब्राजील के राष्ट्रपति लूला पर COP30 को “बदलाव लाने वाले COP” के रूप में प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी है. वहीं, फरवरी 2025 में देशों से अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है. सबसे विकसित देशों को ऊर्जा पर वैश्विक स्टॉकटेक परिणामों को प्रतिबिंबित करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता होगी. 

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