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बिहार विधानसभा चुनाव के साथ मध्य प्रदेश की 28 सीटों के उपचुनावों के नतीजों पर भी सबकी नजरें हैं. इन्हें मध्य प्रदेश के लिए ‘मिनी चुनाव’ माना जा रहा है. इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक इन उपचुनावों में बीजेपी को बढ़त मिलने का अनुमान है, जिससे शिवराज सिंह चौहान सरकार को लेकर जनादेश और मजबूत होने जा रहा है. एग्जिट पोल के मुताबिक 28 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी 16 से 18 सीटों पर जीत हासिल हो सकती हैं. वहीं कांग्रेस को 10 से 12 सीटों पर ही संतोष करना होगा.
दरअसल, इंडिया टुडे के एग्जिट पोल के मुताबिक मध्यप्रदेश में बीजेपी अपनी सरकार बचाने में तो कामयाब हो रही है, लेकिन इसके साथ ही मध्य प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को एक दमदार चेहरा भी इस उपचुनाव में मिल गया है. मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों का ऐलान 10 नवंबर को होने जा रहा है.
एग्जिट पोल के आंकड़े यदि नतीजों में बदलते हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को इससे काफी राहत मिलती दिख रही है, क्योंकि जिन 28 सीटों पर बीजेपी ने प्रत्याशी खड़े किए थे उनमें से ज्यादातर सिंधिया समर्थक थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह उपचुनाव उनकी जीवन की सबसे बड़ी सियासी चुनौतियों में से एक माना जा रहा था.
एग्जिट पोल पर यकीन करें तो पूरे चुनाव में कांग्रेस का 'गद्दार' और 'बिकाऊ-टिकाऊ' का नारा काम नहीं आया और लोगों ने सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के फैसले पर एक तरह से मुहर लगाते हुए वोट किया है.
दरअसल, एग्जिट पोल के आंकड़े यदि 10 नवंबर को नतीजों में परिवर्तित होते हैं तो सिंधिया इस चुनाव के सबसे बड़े सुपरस्टार साबित होने जा रहे हैं. ये चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से ही हुआ था और माना जा रहा था कि उनके अपने प्रभाव वाले क्षेत्र यानी ग्वालियर-चंबल संभाग में ही लोग इससे खुश नहीं हैं तभी यहां पूरे प्रदेश के मुकाबले वोटिंग का प्रतिशत कम रहा था.
एग्जिट पोल के आंकड़े बता रहे हैं कि लोगों ने सिंधिया पर भरोसा जताया है और उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ा कि सिंधिया कांग्रेस में रहे या बीजेपी में.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इन सीटों पर उपचुनाव में प्रचार के दौरान पूरी ताकत झोंक दी थी. हालांकि बीजेपी में सबसे बड़ा चेहरा तो शिवराज ही थे लेकिन सिंधिया भी प्रचार में पीछे नहीं रहे. होना भी यही था क्योंकि इनमें से ज्यादातर तो सिंधिया समर्थक नेता ही थे जो उनके कहने पर मंत्री पद और विधायकी को दांव पर लगा दिया था.
दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान यही कहा था कि यह चुनाव भाजपा-कांग्रेस का नहीं, बल्कि सिंधिया परिवार का है. एग्जिट पोल के आंकड़ों से लग रहा गई कि सिंधिया का हर दांव बिल्कुल सही बैठा है और वोटरों ने खुद को सिंधिया से कनेक्ट किया.
ज्योतिरादित्य सिंधिया वोटरों को समझाने में सफल रहे कि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आना उनकी मजबूरी थी क्योंकि कमलनाथ सरकार में ना तो उन्हें महत्व दिया जा रहा था और ना ही उनके समर्थक नेताओं को.
कांग्रेस जहां एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक नेताओं को गद्दार कह रही थी तो दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया और भारतीय जनता पार्टी ने कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की जोड़ी पर लोगों से गद्दारी करने का आरोप लगाते हुए पलटवार किया. सिंधिया ने चुनावी कैंपेन में लोगों को यही बताया कि जिस तरीके से कांग्रेस ने वचन पत्र में दिए बातों को नहीं निभाया और सिंधिया समर्थक नेताओं के क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं होने दिए वह असल गद्दारी थी जिसके चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने का फैसला करना पड़ा.
एग्जिट पोल और चुनावी नतीजे एक जैसे होते हैं तो मध्य प्रदेश की राजनीति का एक नया दौर शुरू हो जाएगा. इससे यह साबित हो जाएगा कि नेता भले ही दलबदलू है जनता को उनके दल बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि वह चेहरा देख कर ही वोट देती है.
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वहीं दूसरी तरफ सिंधिया समर्थक नेताओं के जीतने से मध्य प्रदेश और भारतीय जनता पार्टी में सिंधिया का कद और बढ़ जाएगा क्योंकि शिवराज सरकार की कैबिनेट में तो उनके मंत्रियों की संख्या ज्यादा रहेगी ही, वही विधानसभा में भी सिंधिया समर्थक विधायक अच्छी खासी संख्या में रहेंगे.
शिवराज पर भारी पड़ेंगे महाराज?
एग्जिट पोल के आंकड़े यदि नतीजों में परिवर्तित होते हैं तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज पर महाराज आने वाले सालों में भारी पड़ सकते हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि फिलहाल मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराज सबसे बड़ा चेहरा है और जनता के बीच मामा के नाम से उनकी छवि अभी भी अन्य नेताओं के मुकाबले ज्यादा बेहतर स्थिति में है. लेकिन उपचुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय शिवराज के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी जरूर जाएगा.
हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया फिलहाल राज्यसभा के सांसद हैं और माना जा रहा है कि उन्हें केंद्र में पोर्टफोलियो दिया जा सकता है लेकिन भविष्य की राजनीति को देखें तो मध्यप्रदेश में शिवराज के बाद अब भारतीय जनता पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा चेहरे को तैयार कर लिया है.
वर्तमान में विधानसभा की स्थिति
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. लेकिन हाल ही में दमोह से विधायक राहुल सिंह के इस्तीफे के बाद फिलहाल अब जब बहुमत साबित करने की बारी आएगी तो 229 सीटों के हिसाब से बहुमत का आंकड़ा 115 रहेगा. फिलहाल बीजेपी के पास 107 विधायक हैं और ऐसे में बहुमत के लिए उसे 28 में से सिर्फ 8 सीट जीतनी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के पास 87 विधायक हैं और उसे बहुमत के लिए सभी 28 सीट जीतना जरूरी है.