भारत की विरासत, इतिहास, अभिमान पर बात करते वक्त इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021 (India Today Conclave 2021) में वीर सावरकर का भी जिक्र आया. इसपर शशि थरूर ने कहा कि संसद में महात्मा गांधी के बगल में सावरकर की तस्वीर क्यों है यह कई लोगों के लिए समझना मुश्किल है. वहीं चर्चा में मौजूद इतिहासकार विक्रम संपत ने सावरकर से जुड़ी कई अन्य बातें कहीं.
Bulls in our Memory Shop: Debating heritage, history, hubris (विरासत, इतिहास, अभिमान) टॉपिक पर बात करते वक्त राजदीप सरदेसाई ने सवाल किया कि आखिर सावरकर कौन थे? फ्रीडम फाइटर? हिंदुवादी नेता? या वह सिर्फ मुस्लिम विरोधी नेता थे? उनको क्या माना जाए? इसपर इतिहासकार विक्रम संपत जिन्होंने सावरकर पर किताबें लिखी हैं उन्होंने कहा कि मेरी नजर में तो सावरकर इन सब का मिश्रण थे.
India Today Conclave 2021 में आगे शशि थरूर ने कहा कि इसपर (सावरकर) विक्रम ने काफी अच्छा काम किया है. फिर हल्के अंदाज में थरूर बोले कि उन्होंने विक्रम की दोनों किताबों का एक-एक शब्द तो नहीं पढ़ा है क्योंकि इसमें एक साल लग सकता है.
संसद में सावरकर की फोटो क्यों - थरूर
थरूर ने कहा कि सावरकर की बात करें तो एक तबका उनको राष्ट्रवादी के तौर पर देखता है तो दूसरा उनको अंग्रेजों से प्रार्थना करने वाले के रूप में देखते हैं जो बाद में अंग्रेजों से पेंशन भी पाते रहे. थरूर ने आगे कहा, 'हम में से कुछ के लिए यह समझना मुश्किल है कि संसद में गांधी के बराबर में वीर सावरकर का फोटो क्यों है.' बता दें कि संसद के सेंट्रल हॉल में वीर सावरकर का चित्र 26 फरवरी 2003 को लगा था.
फिर संपत ने कहा कि जिन याचिकाओं की बात की जाती है वह सावरकर की दया याचिकाएं नहीं थीं. वहीं जिस पेंशन की बात उठती है वैसी कई और स्वतंत्रता सेनानियों को मिलती थीं, जिनकी डिग्रियां अंग्रेजी हुकूमत छीन लेती थी. संपत बोले, 'अंग्रेजों से सावरकर के रिश्तों पर बात करें तो अंग्रेज मानते थे सावरकर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, दुर्गा भाभी, राज बिहारी बोस से संपर्क में हैं. इसलिए उनकी सजा साल पांच से 13 साल तक बढ़ती गई.'
आया विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का जिक्र
आगे विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (partition horror remembrance day) का जिक्र आया. जो कि अब 14 अगस्त को मनाया जाएगा जिसकी घोषणा पीएम मोदी ने की थी. शशि थरूर ने इसका विरोध जताया था. इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा कि जो इतिहास को याद रखते हैं वह उसके दोहराए जाने का विरोध करते हैं, इसलिए इस तरह स्मृति दिवस मनाए जाने में उनको कोई दिक्कत नहीं लगती.
वह बोले कि इजरायल, जर्मनी, यूएस में जब लोग प्रलय संग्रहालयों (holocaust museum) में जाते हैं तो उनको पता चलता है कि गैंस चैंबर्स में क्या हुआ था. उनको समझ आता है कि ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए.
इसपर शशि थरूर ने कहा कि बंटवारे का दर्द ही देखना है तो अमृतसर में अच्छा म्यूजियम है उसे देख सकते हैं. थरूर ने आगे कहा कि दरअसल, हमारे सामने ऐसे लोग हैं, ऐसी सरकार है जो हादसों को भूलना नहीं चाहती, साथ के साथ चीजों को दोबारा याद दिलाना चाहती है जिसमें सच्चाई और मनगढ़ंत चीजें दोनों शामिल हैं. इससे लोग माफ करने की जगह उन लोगों को सजा देने का मन बना लेते हैं जिनके पूर्वजों ने ऐसी कोई गलती की हो.