इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के दूसरे दिन बांग्लादेश की आजादी और पाकिस्तान पर भारत की जीत के 50 साल पूरे होने पर ''नेबरहुड नेविगेशन: 50 ईयर्स ऑफ बांग्लादेश: द फ्यूचर अहेड'' सेशन में 1971 युद्ध को लेकर चर्चा हुई. इसमें तीन योद्धाओं ने भारत की शानदार जीत को याद कर अपने अनुभव को साझा किया.
जनरल शंकर रॉय चौधरी से जब पूछा गया कि 1971 युद्ध की सबसे बड़ी बात क्या रही. उन्होंने कहा, ''इस युद्ध से कई चीजें सीखने की जरूरत है. पहली बार किसी युद्ध में भारत को इतनी स्पष्ट जीत मिली. हमने मुक्ति वाहिनी की मदद करते हुए लड़ाई लड़ी और पाकिस्तान को पूरी तरह हराया. ज्यादातर लड़ाई में ऐसी जीत देखने को नहीं मिलती है.''
जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत को अब पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर की और देखने की जरूरत है तो उन्होंने कहा कि अभी ब्लूचिस्तान पर नजर रखने का समय है. बाद में पीओके पर ध्यान देने की जरूरत है.
1971 के युद्ध से क्या सबक लेने की जरूरत है? इसके जवाब में उन्होने कहा कि आपको अपने दुश्मन को समझना चाहिए और उसी के अनुसार तैयार रहना चाहिए. दुश्मन की ताकत को समझना चाहिए फिर उसके अनुसार तैयारी करना चाहिए.
बांग्लादेश के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल सज्जाद जाहिर ने बताया कि कैसे भारत उस लड़ाई में विजय हुआ था. उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के अंदर 66 मील तक घुस गया था. पाकिस्तान ने उनको लेकर डेथ सेंटेंस की घोषणा की थी. उन्होंने बहादुरी से वो युद्ध लड़ा और पाकिस्तानियों की वजह से उन्हें उनके परिवार को उस समय भारत भेजना पड़ा. पाकिस्तानी सैनिकों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया. अंत में उन्होंने कहा कि एक सैनिक को कभी डरना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा कि दोनों देशों की नई पीढ़ी को इस युद्ध के महत्व को समझना चाहिए.
कर्नल अशोक कुमार तारा ने बताया कि कैसे युद्ध के दौरान उन्होंने शेख मुजीबुर रहमान के परिवार को पाकिस्तानियों से कब्जे से रिहा कराया था. उन्होंने घटना को याद करते हुए कहा, ''17 दिसंबर 1971 को 16 पाकिस्तानी सैनिक सरेंडर कर चुके थे. मैं ढाका एयरपोर्ट पर पहुंचा तो बताया गया कि शेख मुजीबुर रहमान के परिवार को उनके घर में बंधक बना लिया गया है. तब मेरे साथ सिर्फ 2 सैनिक थे. फिर भी हमने हिम्मत दिखाई और उनके घर की ओर बढ़ गया. पाकिस्तानियों ने उनके घर को घेर रखा था. हम उन्हें चुनौती देते हुए घर की ओर बढ़े. उन्होंने हम पर फायरिंग भी की. लेकिन हमने उन्हें मात दिया पूरे परिवार को छुड़ाया. तब शेख मुजीबुर रहमान ने मुझे शाबासी भी दी और बाद में मुलाकात के लिए भी बुलाया.''