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'महाकुंभ में एक ही घाट पर राष्ट्रपति से रामू तक की डुबकी, ये बराबरी ही हमारी संस्कृति', बोले स्वामी चिदानंद

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, "महाकुंभ के आयोजन में जो बदलाव देखने को मिला है, वह अद्भुत है. इस बार लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ है, जिसे हमने संगम तट पर महसूस किया. वहीं, स्वामी कैलाशानंद गिरी ने गंगा और यमुना के महत्व को बताते हुए कहा कि सबसे पवित्र जल तो यमुना नदी का है, और गंगाजल, जल नहीं साक्षात अमृत है.

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स्वामी चिदानंद सरस्वती ने बताई महाकुंभ और सनातन परंपरा की ताकत
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने बताई महाकुंभ और सनातन परंपरा की ताकत

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में शुक्रवार को परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष, स्वामी चिदानंद सरस्वती ने शिरकत की. Mahakumbh: The Tipping Point of Sanatan Dharma सेशन में  अपनी बात रखते हुए उन्होंने इस ओर ध्यान दिलाया कि कैसे इस बार के महाकुंभ ने विश्व को भारतीय संस्कृति और परंपरा से बड़े पैमाने पर परिचित कराया. उन्होंने कहा कि इस बार के इस सांस्कृति आयोजन ने जहां एक तरफ लोगों की सोच में बड़ा बदलाव किया वहीं, इसके जरिए वह यह भी समझ पाए कि असल में सनातन परंपरा है क्या और इसकी प्रकृति कैसी है. 

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सनातन परंपरा में सब बराबर का संदेश
उन्होंने अपनी बात में इस तथ्य को रेखांकित किया कि सनातन परंपरा कहती है कि सब बराबर हैं, लेकिन इस सब बराबर वाली बात के दर्शन महाकुंभ में होते हैं. जहां एक ही घाट पर राष्ट्रपति और रामू दोनों ही डुबकी लगा रहे थे. 

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, "महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और एकता का प्रतीक है." उन्होंने इस बार के आयोजन में हुए परिवर्तनों को रेखांकित करते हुए कहा कि लोग अब आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुक रहे हैं, और यह बदलाव संगम तट पर स्पष्ट रूप से महसूस किया गया.

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने महाकुंभ को भारतीय समाज की एकता का जीवंत उदाहरण बताया. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एक साधारण कर्मचारी ने संगम में एक ही घाट पर स्नान किया. इससे बड़ा समरसता और समानता का संदेश और क्या हो सकता है?" उन्होंने इस आयोजन को भारतीय संस्कृति की शक्ति बताया, जिसमें जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव मिट जाते हैं.

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शांति और सद्भाव का संदेश
उन्होंने बताया कि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान शांति और सौहार्द का अभूतपूर्व माहौल देखने को मिला. उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं घटी और सभी समुदायों ने मिलकर इस आयोजन को सफल बनाया.

परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संतुलन
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि महाकुंभ केवल एक पारंपरिक आयोजन नहीं रह गया, बल्कि यह एक ट्रेंडी और समसामयिक आयोजन बन चुका है. उन्होंने कहा, "इस बार युवाओं का उत्साह देखने लायक था. कुंभ ने उन्हें परंपरा और आधुनिकता के संगम का अनुभव कराया."

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युवाओं को संदेश – "जीन्स पहनो, लेकिन जींस मत भूलो"
आधुनिकता और संस्कृति के संतुलन पर जोर देते हुए उन्होंने युवाओं को संदेश दिया, "तुम भले ही जीन्स पहनो, लेकिन जींस मत भूलो." यानी आधुनिकता को अपनाओ, लेकिन अपनी जड़ों और संस्कृति को मत भूलो.

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