भारत अब आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर बढ़ रहा है और इस बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश का लक्ष्य है कि साल 2030 तक 70 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सके. इस बीच इंडिया टुडे और हाउ इंडिया लिव्ज के 'सकल घरेलू व्यवहार' (जीडीबी) सर्वेक्षण ने देश के सामाजिक ताने-बाने में गंभीर खामियों को उजागर किया है. 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 98 जिलों में 9,188 लोगों से बातचीत के आधार पर यह सर्वेक्षण शालीनता, हमदर्दी और नेकनीयती जैसे मूल्यों पर केंद्रित था, जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं.
रिश्वत देने को तैयार हैं लोग
सामने आया है कि 61% लोग काम करवाने के लिए रिश्वत देने को तैयार हैं, वहीं 52% कर चोरी के लिए नकद लेन-देन को सही ठहराते हैं, और 69% का मानना है कि घरेलू फैसले पुरुषों के ही होने चाहिए. इसके अलावा, देश की आधी आबादी अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों के खिलाफ है. यह सर्वेक्षण इस सवाल को उठाता है कि क्या भारत सिर्फ आर्थिक आंकड़ों से 'विकसित भारत' का सपना पूरा कर सकता है?
व्यवहार में नहीं शामिल हो पा रहे मौलिक कर्तव्य
विशेषज्ञों का कहना है कि आर्थिक प्रगति के साथ-साथ नागरिक शिष्टाचार, समानता और सामाजिक जिम्मेदारी में सुधार जरूरी है. संविधान के अनुच्छेद 51ए में मौलिक कर्तव्यों के तहत ये मूल्य पहले से ही निर्धारित हैं, जैसे सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, समान भाईचारा और पर्यावरण संरक्षण. फिर भी, सर्वेक्षण बताता है कि इन मूल्यों को व्यवहार में लाने में देश पिछड़ रहा है.
सिंगापुर और जापान जैसे देशों ने नागरिक अनुशासन और सामूहिक जिम्मेदारी के दम पर आर्थिक सफलता हासिल की है. भारत में भी डिजिटल भुगतान को अपनाने की बढ़ती प्रवृत्ति (76% लोग इसे पसंद करते हैं) सकारात्मक संकेत देती है, लेकिन भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसी समस्याएं बरकरार हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक, लोग सही-गलत की समझ रखते हैं, मगर व्यवहार में बदलाव नहीं लाते.
उदाहरण के लिए, 85% लोग बिना टिकट यात्रा को गलत मानते हैं, लेकिन रेलवे में 3.6 करोड़ ऐसे मामले दर्ज हुए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'विकसित भारत' के नारे को साकार करने के लिए विशेषज्ञ आचार-व्यवहार में क्रांति की जरूरत बताते हैं. इंडिया टुडे का यह सर्वेक्षण समाज को आईना दिखाने और राज्यों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का प्रयास है.